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________________ हिरण्यकोशन् प्राचीन चरित्रकोश हिरण्यहस्त ग्रंथ--इसके द्वारा विरचित 'सत्याषाढ श्रौतसूत्र' १०५ संहिसाएँ बना कर उन्हें अपने विभिन्न शिष्यों में सुविख्यात है, जिसके निम्नलिखित उपभाग समाविष्ट हैं:- बाँट दी थी (वायु. ८८.२०७)। १. सत्याषाढ धर्मसूत्र (अ. २६-२७); २. सत्याषाढ | यह त्वयं योगाचार्य भी था, एवं योगविषय में पौष्यंजि गृह्यसूत्र (अ. १९-२०); ३. गुल्बसूत्र (अ. २५)। नामक आचार्य का शिष्य, एवं याज्ञवल्क्य नामक आचार्य इस सूत्र पर महादेव दिक्षित के द्वारा 'वैजयंती' नामक का गुरु था। भाष्य प्राप्त है। इस सूत्रग्रंथ का अंतिम भाग भरद्वाज | हिरण्यरतस-(स्वा. प्रिय.) कुशद्वीप का एक राजा, सूत्रों से लिया गया है। इस सूत्र का आपस्तंब सूत्रों से जो भागवत के अनुसार प्रियव्रत राजा के पुत्रों में से एक भी काफ़ी साम्य प्रतीत होता है। . था। इसके निम्नलिखित सात पुत्र थे:-१. वसु; हिरण्यकेशन लोग--इस शाखा के लोग सह्याद्रि के | २. वसुदान, ३. दृढरुचिः ४. नाभिगुप्त; ५. सत्यत्रता पश्चिम में स्थित चिपलून आदि गाँवों में रहते है। इन ६. विविक्त एवं ७. वामदेव । लोगों का निर्देश पाँचवी शताब्दी इ. स. के कोंगणी अपने इन पुत्रों को इसने अपना कुशद्वीप का राज्य राजाओं के ताम्रपट में प्राप्त है। इससे प्रतीत होता है प्रदान किया था, जो आगे चल कर उन्हीं पुत्रों के नाम कि, हिरण्यकशिन् आचार्य, एवं इसके द्वारा विरचित से सुविख्यात हुआ (भा. ५.१.२५, २०.१४)। सूत्रों का रचनाकाल पाँचवी शताब्दी इ. स. पूर्व में कहीं। २. विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। होगा (इन्डि. अॅन्टि. ४.१३६)। हिरण्यरोमन अथवा हिरण्यलोमन्-रैवत मन्वंतर. '. हिरण्यगर्भ--उत्तम मन्वन्तर में उत्पन्न ऊर्ज नामक | के सप्तर्षियों में से एक। ऋषि का पिता। २. रुक्मिणी के पिता भीष्मक का नामांतर (म. उ. . हिरण्यगर्भ प्राजापत्य--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. | १५५.१)। १०.१२१)। हिरण्यवर्मन दाशार्ण--एक राजा, जिसने अपनी हिरण्यद--इंद्रसभा में उपस्थित एक ऋषि (म. स. कन्या का विवाह शिखण्डिन् के साथ किया था। आगे ७.१६)। चल कर शिखण्डिन् के स्त्रीत्व की जानकारी होते ही, हिरण्यदत् बैद-एक तत्त्वज्ञानी आचार्य (पे. ब्रा. ३. | कुंपित हो कर इसने द्रुपद राजा पर आक्रमण किया (म.उ. ६.३; ऐ. आ. २.१.५)। इसके द्वारा बषटकार का वर्णन १९०-१९३; शिखण्डिन् देखिये)।. किया है, एवं मानवीय प्राण अग्निरूप होने का अभिमत । हिरण्यवाह--कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। इसके द्वारा प्रकट किया गया है (ऐ. बा. ३.७)। २. वासुकिकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.६)। पाठभेदहिरण्यधनुस्--एक निषाद राजा, जो एकलव्य का 'हिरण्यवाहु। पिता था (म. आ. १२३.२४)। इसे हिरण्यधेनु नामान्तर भी प्राप्त था। हिरण्यशृंग--कुवेर का एक व्रत । हिरण्यस्तूप आंगिरस-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऐ. . हिरण्यनाभ--हिरण्यनाभ कौथुमि नामक आचार्य का | ब्रा. १.३२)। ऋग्वेद सर्वानुक्रमणी में ऋग्वेद के अन्य कई नाम (कौथुमि देखिये)। सूक्तों के प्रणयन का श्रेय भी इसे दिया गया है (ऋ. हिरण्यनाम कौसल्य-कोसल देश का एक राजा, १.३१-३५, ९.४,६९)। ऐतरेय ब्राह्मण में आंगिरस नाम जिसके पुरोहित का नाम पर आटनार था (सां. श्री. से इसका स्पष्ट उल्लेख किया गया है (ऐ.बा.३.२४.११)। १६.९.१३)। प्रश्नोपनिषद में भी इसका निर्देश प्राप्त है। एक व्यक्ति के नाते इसका निर्देश ऋग्वेद एवं शतपथ यह स्वयं सामवेदी श्रुतर्षि, एवं योगाचाय था। इसके पुत्र | ब्राह्मण में प्राप्त है (ऋ. १०.१४९.५, श. बा. १.६. का नाम पुष्प था। ४.२)। पौराणिक साहित्य में--भागवत के अनुसार यह विधृति हिरण्यहस्त-वत्रिमती नामक स्त्री का एक पुत्र, राजा का. एवं विष्णु तथा वायु के अनुसार यह व्यास | जो उसे अश्विनों के द्वारा प्रदान किया गया था (ऋ. १. की परंपरा में से सुकर्मन् नामक आचार्य का शिष्य था, ११६.१३,११७.२४, ६.६२.७,१०.३९.७)। ऋग्वेद में एवं इसके शिष्य का नाम कृत था। इसने सामवेद की | अन्यत्र इसे श्याव कहा गया है (ऋ. १०.६५.१२)। १११२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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