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________________ हविष्मत् प्राचीन चरित्रकोश हारिद्रुमत नाम यशोदा था, जो अंशुमत् राजा की पत्नी, एवं दिलीप ___हस्तिदान-कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण । राजा की माँ थी। हस्तिन्--(सो. पूरु.) एक सुविख्यात पूवंशीय ५. एक देव, जो अंगिरस् एवं सुरूपा के पुत्रों में से राजा, जो भागवत, विष्णु एवं मत्स्य के अनुसार बृहत्क्षत्र एक था (मत्स्य. १८६)। राजा का, एवं वायु के अनुसार सुहोत्र राजा का पुत्र था __ हविष्मत् आंगिरस-एक सामद्रष्टा आचार्य, जिसका (भा. ९.२१.२०-२१; वायु. ९९.१६५)। महाभारत निर्देश हविष्कृत् आंगिरस नामक आचार्य के साथ प्राप्त में इसे सुहोत्र एवं जयंती का पुत्र कहा गया है, एवं इसकी है (हविष्कृत् आंगिरस देखिये)। पत्नी का नाम त्रैगर्ती यशोदा (यशोधरा) दिया गया है, हविष्मती-अंगिरस ऋषि की पाँच कन्याओं में से जिससे इसे विकुंटन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (म.आ. एक (म. व. २०८.६)। ९०.३६ )। इसीने ही हस्तिनापुर नगर को नया वैभव हवीन्द्र--स्वारोचिष मन्वन्तर का प्रजापति, जो वसिष्ट प्राप्त करा दिया, जिस कारण उस नगर को 'हस्तिनापुर' ऋषि का एक पुत्र था। नाम प्राप्त हुआ। हव्य-स्वायंभुव मनु का एक पुत्र । २. ( सो. कुरु.) धृतराष्ट्र (प्रथम) राजा का एक पुत्र । २. हव्यवाहन नामक दक्षसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षि | हस्तिपद, हस्तिपिण्ड एवं हस्तिभद्र-कश्यपका नामान्तर। कुलोत्पन्न तीन नाग (म. आ. ३१.९, १४; उ. १०१. ३. सुख देवों में से एक। ४. आद्य देवों में से एक। हस्तिमुख-रावणपक्ष का एक राक्षस (वा.रा.तु.६)। हव्यघ्न--एक राक्षस, जो भरद्वाज ऋषि के यज्ञाग्नि के हस्तीन्द्र--स्वारोचिष मन्वन्तर का एक प्रजापति, जो' धुएँ से उत्पन्न हुआ था। एक बार भरद्वाज ऋषि ने कश्यप ऋषि का एक पुत्र था। गौतमी नदी के किनारे अपनी पैठीनसी नामक पत्नी के हारव-एक राक्षस, जो ब्रह्मा के अश्रुबिन्दुओं से साथ एक यज्ञ प्रारंभ किया। उस यज्ञ के धुएँ में से | उत्पन्न हुआ था। शिवलिंग से निकली हुई एक ज्योति यह उत्पन्न हुआ, एवं हविर्द्रव्य भक्षण करने लगा। के कारण, यह भस्म हुआ (स्कंद. ५.२.४८)। " भरद्वाज ऋषि के द्वारा पूछे जाने पर इसने कहा, हार-हूण--पश्चिमभारत का एक लोकसमूह, जिसे । 'मै ब्रह्मा के द्वारा शापित एक अभागी व्यक्ति हूँ, एवं नकुल ने अपने पश्चिमदिग्विजय में जीता था (म. स. मेरा नाम कृष्ण है। मेरी प्रार्थना है कि, आप मुझे २९.११)। गंगोदक, सुवर्ण एवं गोघृत एवं सोम से 'प्रोक्षण' करे, हारिकर्णि-अंगिरस् कुलोत्पन्न एक गोत्रकार । जिससे मैं मुक्त हो जाऊँगा। हारिकर्णिपुत्र--एक आचार्य, जो भरद्वाजीपुत्र नामक __इसकी प्रार्थना के अनुसार, भरद्वाज ऋषि ने प्रोक्षण | आचार्य का शिष्य था (बृ. उ. ६.४.३०)। किया, जिस कारण यह मुक्त हुआ (ब्रह्म. १३३)। हारितक---कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार हव्यप--रैवत मनु का एक पुत्र । हारितायन--सासिसाहारितायन नामक कश्यपकुलो२. रौच्य मम्वन्तर के सप्तर्षियों में से एक । त्पन्न गोत्रकार का नामान्तर। हव्यवत्--रैवत मनु का एक पुत्र । __ हारिद्रव--एक शाखाप्रवर्तक आचार्य, जो मैत्रायणीय हव्यवाह--धर नामक वसु का एक पुत्र । शाखान्तर्गत माना जाता है। निरुक्त में इसके प्रणीत मतों २. पवमान नामक अग्नि का एक पुत्र । का निर्देश 'हारिद्राविक' नाम से किया गया है (नि. हव्यवाहन--दक्षसावर्णि मन्वन्तर के सप्तर्षियों में | १०.५)। से एक। इसके द्वारा लिखित ' हारिद्राविक ब्राह्मण' नामक ग्रंथ हस्त-दक्ष की कन्या, जो सोम की पत्नी थी। . | का उद्धरण प्राप्त है, किन्तु वह ग्रंथ मूल स्वरूप में २. वसुदेव एवं रोचना के पुत्रों में से एक (भा. ९.२४. | आज अप्राप्य है। ४९)। हारिदुमत गौतम-एक आचार्य, जो सत्यकाम हस्तिकर्ण--एक नाग, जो कश्यप एवं कद्रू के पुत्रों | जाबाल नामक आचार्य का शिष्य था (छां. उ.' में से एक था (म. आ. ३१.१४)। ४.४.३)। ११०८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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