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हरिश्चंद्र
प्राचीन चरित्रकोश
हर्यन्त
वैदिक साहित्य में-इस साहित्य में इसे 'वैधस' (वेधस् पुत्रबलि--यह दीर्घकाल तक निःसंतान था। आगे चल राजा का वंशज), एवं 'ऐश्वाक' (इक्ष्वाकु राजा का वंशज) कर वरुण की कृपाप्रसाद से इसे रोहित नामक पुत्र उत्पन्न कहा गया है। ऐतरेय ब्राह्मण में इसकी कुल सौ पत्नियाँ | हुआ, जिसके बड़ा होते ही पुत्रबलि के रूप में प्रदान करने होने का निर्देश प्राप्त है, एवं वरुण देवता को अपना का आश्वासन इसने दिया था। किन्तु आंग चल कर रोहित रोहित नामक पुत्र बलि के रूप में प्रदान करने के इसके ने अपनी बलि देने से इन्कार कर दिया, एवं वह अरण्य आश्वासन का अस्पष्ट निर्देश वहाँ प्राप्त है (ऐ. ब्रा. ७.१४.२; । में भाग गया। वरुण को दिया गया आश्वासन पूर्ण न होने सां. श्री. १५.१७)।
के कारण यह 'वरुण रोग' (जलोदर) से पीडित हुआ। यह
ज्ञात होते ही रोहित अरण्य से लौट आया, एवं अपने महाभारत में--इस ग्रंथ में इसे समस्त भूपालों का
स्थान पर शुनःशेप नामक ब्राह्मणकुमार उसने यज्ञबलि के सम्राट् कहा गया है, एवं अपने जैत्र नामक रथ में बैट
लिए तैयार किया। किन्तु विश्वामित्र ने शुनःशेप की रक्षा अपने शस्त्रों के प्रताप से सातों द्वीपों पर विजय प्राप्त
की (रोहित एवं शुनःशेप देखिये)। करने का निर्देश वहाँ प्राप्त है । इसके द्वारा किये गये राजसूय यज्ञ के कारण इसे इंद्रसभा में स्थान प्राप्त हुआ
- हरिश्रवस्--(सो. कुरु.) धृतराष्ट्र के शतपुत्रों में से था, एवं इसके ही उदाहरण से प्रभावित हो कर पाण्डु
एक। राजा ने अपने पुत्र युधिष्ठिर से राजसूय यज्ञ करने का
हरिस्वामिन्--एक ब्राह्मण, जिसकी कन्या का नाम संदेश स्वर्ग से भेजा था (म. स. ११.५२-७०)।
सुलोचना था (सुलोचना देखिये )।
हारषण-ब्रासावर्णि मनु का एक पुत्र । विश्वामित्र से विरोध-अपने पिता त्रिशंकु के समान
हरी--कश्यप एवं क्रोधा की एक कन्या, जो इस संसार . इसका पुरोहित सर्वप्रथम विश्वामित्र ही था । किन्तु आगे
| के सिंह, वानर, अश्व एवं लकड़बग्घों की माता मानी जाती चल कर इक्ष्वाकुवंश के भूतपूर्व पुरोहित वसिष्ठ देवराज की
है (म. आ. ६०.६२)। प्रेरणा से अपने राजसूय यज्ञ के समय इसने विश्वामित्र
हर्यक्ष-(स्वा. उत्तान.) एक राजा, जो पृथु राजा ऋषि का अपमान किया। पश्चात् इस अपमान के कारण
एवं अर्चिस् का पुत्र था। अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् विश्वामित्र ने इसका पौरोहित्य छोड़ दिया, एवं देवराज
यह उसके पूर्व साम्राज्य का अधिपति बन गया। वसिष्ठ पुनः एक बार इसका पुरोहित बन गया (विश्वामित्र
२. कुण्डल नगरी के सुरथ राजा का पुत्र । इसके पिता देखिये)।
| के द्वारा राम के अश्वमेधीय अश्व पकड़ लिये जाने के पौराणिक साहित्य में इस साहित्य में विश्वामित्र ऋषि समय, इसने राम की सेना के साथ युद्ध किया था (पन. के द्वारा इसे अनेकानेक प्रकार से त्रस्त करने की कल्पना- पा. ४९)। रम्य कथाएँ प्राप्त हैं (मार्क. ८-९)। ब्रह्म के अनुसार, हयंग--(सो. अनु.) एक राजा, जो मत्स्य के अनुसार विश्वामित्र के दक्षिणा की पूर्ति के लिए इसे स्वयं को, अपनी चंप राजा का पुत्र, एवं भद्ररथ राजा का पिता था ( मत्स्य. पत्नी तारामती को, एवं पुत्र रोहित को वेचना पड़ा। इनमें | ४८.९८-९९)। से तारामती एवं रोहित को इसने एक वृद्ध ब्राह्मण को, अपने पिता चंपक को यह पूर्णभद्र वैभाण्डकि ऋषि की एवं स्वयं को एक स्मशानाधिकारी चांडाल को बेच दिया।। कृपा से उत्पन्न हुआ था। वायु में इसे चित्ररथ राजा का __ आगे चल कर, विश्वामित्र ने अपनी माया से रोहित पुत्र कहा गया है (वायु. ९९.१०७)। इसके द्वारा किये का सर्पदंश के द्वारा वध कराया। अपने पुत्र की मृत्यु | गये अश्वमेध यज्ञ में, इसके गुरु पूर्णभद्र ने अपने मंत्रसे शोकविह्वल हो कर यह एवं तारामती अग्निप्रवेश के प्रभाव से इंद्र का ऐरावत लाया था (ब्रह्म. १३.४३; ह. लिए उद्यत हुए। किन्तु वसिष्ठ एव देवों ने इस आपत्प्रसंग व. १.३१; मत्स्य. ४८.९८)। से इसे बचाया, एवं इसका विगत वैभव एवं राज्य पुनः र्यद्वन्त--(सो. क्षत्र.) एक राजा, जो वायु के प्राप्त कराया (ब्रह्म. १०४; मार्क. ७-८)। पुराणों में अनुसार जय राजा का पुत्र था (वायु. ९३.९)। विष्णु निर्दिष्ट ये सभी कथाएँ, वसिष्ठ एवं विश्वामित्र का पुरातन एवं भागवत में इसे क्रमशः हर्षवर्धन एवं हवन कहा विरोध कल्पनारम्य पद्धति से चित्रित करने के लिए दी | गया है। गयी प्रतीत होती है।
. हर्यन्त प्रागाथ--एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८.७२)। ११०६