SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हनुमत् प्राचीन चरित्रकोश हयग्रीव 'महावीर विनवउँ हनुमाना। देव सिद्ध हुआ। इस कारण क्रुद्ध हो कर, ब्रह्मा ने उसे राम जासु जस आपु बरवाना। उसका मस्तक टूट जाने का शाप दिया। आगे चल कर . (मानस. १.१६.१०)। एक अश्वमुख लगा कर यह देवताओं के यज्ञ में शामिल हुआ। यज्ञसमाप्ति के पश्चात् इसने धर्मारण्य में तप हन्त-अमिताभ देवों में से एक । किया, जहाँ शिव की कृपा से इसका अश्वमुख नष्ट हो कर हय-तुषित एवं साध्य देवों में से एक। इसे अपना पूर्वरूप प्राप्त हुआ। हयग्रीव-विष्णु का एक अवतार । यह अश्वमुखी होने के कारण इसे 'हयग्रीव' नाम प्राप्त हुआ था। हयग्रीव असुर का वध--पौराणिक साहित्य में हयग्रीव इसे 'हयशिरस्। 'अश्वशिरस्' नामांतर भी प्राप्त थे | एवं मधुकैटभ असुरों का वध करने के लिए श्रीविष्णु का (विष्णु देखिये)। | हयग्रीव नामक अवतार होने का निर्देश प्राप्त है। एक बार हयग्रीव नामक असुर ने पृथ्वी में स्थित वेदों का हरण स्वरूपवर्णन--अगस्त्य ऋषि को कांची नगरी में इसके | किया। उस पर ब्रह्मादि सारे देव हयग्रीव की शिकायत दिये दर्शन का वर्णन ब्रह्मांड में प्राप्त है, जहाँ इसे शंख, । ले कर विष्णु के पास गये। पश्चात् विष्णु आदि देव चक्र, अक्षवलय एवं 'पुस्तक' (ग्रंथ ) धारण करनेवाला हयग्रीव के पास पहुँच गये, जहाँ इन्होंने देखा कि, वह कहा गया है (ब्रह्मांड, ४.५,९.३५-४०)। असुर भूमि पर अपने धनुष रख कर पास ही सो गया वैदिक साहित्य में इस साहित्य में सर्वत्र इसे विष्णु है। तदुपरांत विष्णु ने पास ही स्थित दीमक की का नहीं, बल्कि यज्ञ का अवतार कहा गया है। किन्तु सहायता से हयग्रीव असुर के धनुष की प्रत्यंचा को तोड़ तैत्तिरीय आरण्यक में यज्ञ को विष्णु का ही एक प्रतिरूप डाला, एवं उसका नाश किया । कथन किया गया है। इससे प्रतीत होता है कि, वैदिक हयग्रीव के धनुष की प्रत्यंचा टूटते ही विष्णु का स्वयं एवं पौराणिक साहित्य में निर्दिष्ट हयग्रीवकथा का स्रोत का मुख भी टूट गया, जो आगे चल कर विश्वकर्मन् की एक ही है, जिसका प्रारंभिक रूप वैदिक साहित्य में पाया | सहायता से पुनः जोड़ा गया। उस समय विश्वकर्मन् ने जाता है। विष्णु को जो मुख प्रदान किया था, वह अश्व का था। • पंचविंश ब्राह्मण में हयग्रीव अवतार की कथा निम्न इस कारण हयग्रीव असुर का वध करनेवाले इस अवतार प्रकार बतायी गयी है। एक बार अग्नि, इंद्र, वायु एवं यज्ञ को 'हयग्रीव' नाम प्राप्त हुआ (दे. भा. १.५)। (विष्ण) ने एक यज्ञ किया। इस यज्ञ के प्रारंभ में देवी भागवत के अनुसार, हयग्रीव असर को देवी का यह तय हुआ था कि, यज्ञ को जो हविर्भाग प्राप्त होगा, | आशीर्वाद था कि, केवल 'हयग्रीव' नाम धारण करनेवाला वह सभी देवताओं में बाँट दिया जायेगा। उस समय व्यक्ति ही उसका वध कर सकती है। इस कारण हयग्रीव यज्ञ को सर्वप्रथम हविर्भाव प्राप्त हुआ, जिसे ले कर वह का अवतार ले कर विष्णु को इसका वध करना पड़ा। भाग गया। इस कारण बाकी सारे देव इसका पीछा विष्णु के इस अवतार का निर्देश महाभारत में भी प्राप्त करने लगे। है (म. उ. १२८.४९; शां. १२२.४६; ३२६.५६)। अपने दैवी धनुष की सहायता से यज्ञ ने सभी | रसातल में रहनेवाले मधु एवं कैकटक नामक राक्षसों देवताओं को हरा दिया। अन्त में एक दीमक के | का वध भी इसी अवतार के द्वारा होने का निर्देश द्वारा देवों ने यज्ञ के धनुष की प्रत्यंचा कटवा दी, एवं | महाभारत में प्राप्त है (म. शां. ३३५.५२-५५; भा.५. इस प्रकार असहाय हुए यज्ञ का मस्तक कटवा दिया। | १८.१--६)। . तत्पश्चात् अपने कृतकर्म के लिए यज्ञ देवों से माफ़ी क्रम-पाठ-इसीके आराधना से पंचाल ऋषि ने वेदों माँगने लगा । इस पर देवों ने अश्विनों के द्वारा एक का क्रमपाठ प्राप्त किया था (म. शां. ३३५.६९-७१)। अश्वमुख यज्ञ के कबंध पर लगा दिया (पं. ब्रा. ७.५.६; २. एक असुर, जो कश्यप एवं दिति के पुत्रों में से एक तै. आ. ५.१; तै. सं. ४.९.१)। | था ( पन. उ. २३०)। इसका जन्म पूर्वकल्प की रात्रि में पौराणिक साहित्य में--यही कथा स्कंद पुराण आदि हुआ था। पृथ्वीप्रलय के समय इसने वेदों का हरण किया पौराणिक साहित्य में कुछ मामूली फर्क के साथ दी गयी | जिन्हें हयग्रीव का अवतार ले कर श्रीविष्णु ने पुनः प्राप्त है। एक बार देवाताओं की प्रतियोगिता में विष्णु सर्वश्रेष्ठ | किया (हयग्रीव देखिये)। भागवत के अनुसार, इसका ११०३ त हुआ, जिसका पीछा .उ.१२
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy