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सौदास
प्राचीन चरित्रकोश
सौमापि
३. (सो. नील.) नीलवंशीय सहदेव राजा का नामान्तर के पास गया, एवं इसने उसकी एक कन्या विवाह के (सहदेव ३. देखिये)। .
लिए माँगी। सौदेव-सुदेवपुत्र दिवोदास राजा का नामान्तर इसे बहुत बुढ़ा देख कर राजा के मन में इस प्रस्ताव (दिवोदास २. देखिये)।
के प्रति घृणा उत्पन्न हुई। इसी कारण इसे परेशान सौद्युमिन-इक्ष्वाकुवंशीय युवनाश्व राजा का पैतृक नाम करने के हेतु उसने झूटी नम्रता से कहा 'मेरी पचास (म. व. १२६.९; युवनाश्व ३. देखिये)। कन्याओं में से जो भी कन्या आपका वरण करे उससे
२. पूरुवंशीय भरत दौष्यन्ति राजा का पैतृक नाम (श. | आप विवाह कर सकते हैं। ब्रा. १३.५.४.१२)।
__ मांधातृ का कपट पहचान कर इसने अपने बुढ़े रूप सौधिक--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । का त्याग कर, एक नवयुवक का रूप धारण किया, एवं इसी सौनकर्णि-अत्रिकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। वेष में यह उसके अंतःपुर में गया। इसके नये रूप को
सौनंदा--विदरथराजा की कन्या मुदावती का | देख कर मांधात की सभी कन्याओं ने इसका वरण किया। नामान्तर।
आगे चल कर अपनी हर एक पत्नी से इसे सौ सौ पुत्र सौपुरि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । उत्पन्न हुए। सौपुष्पि-अत्रिकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । इसप्रकार संसारसुख का यथेष्ट अनुभव लेने के सौबल-गांधार देश के शकुनि राजा का पैतृक नाम । | पश्चात् इसके मन में पुनः एक बार वैराग्यभावना उत्पन्न
२. सर्पि वासि नामक आचार्य का एक शिष्य (ऐ. हुई, एवं यह वन में चला गया। इसकी पत्नियाँ भी बा. ६.२४.१६)। .
विरागी बन कर इसके साथ वन में चली गयी ( भा. ९. सौबुधि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार।
६.३८-५५, विष्णु. ४.२.३; पद्म. उ. २६२, गरुड १.
१३८)। सौभग--बृहच्छ्लोक नामक आदित्य का एक पुत्र |
२. एक ऋषि, जिसने गरुड को शाप दे कर. उसे यमुना (भा. ६.१८.८)। सौभद्र-(सो. वसु.) वसुदेव एवं रथराजी के पुत्रों
नदी में आने में प्रतिबंध डाल दिया था (भा. १०. में से एक
१७.१०)। . २. सुभद्रापुत्र अभिमन्यु का मातृक नाम। ..
३. एक आचार्य, जो भागवत के अनुसार, व्यास की .. सौभपति-सौभ देश के शाल्व राजा का नामान्तर।
ऋशिष्यपरंपरा में से देवमित्र नामक आचार्य का
शिष्य था। सौभर-पथिन् नामक आचार्य का पैतृक नाम, जो • उसे 'सोभरि' का वंशज होने के कारण प्राप्त हुआ था
४. एक ऋषि, जिसका आश्रम विंध्य पर्वत पर स्थित
था । युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के समय अर्जुन इसके (बृ. उ. २.५.२२; ४.५.२८ माध्य.)।
आश्रम में आया था, जहाँ इसने उसे उद्दालक ऋषि के 'सौभरि-एक ऋषि, जिसने मांधातृ राजा की पचास
द्वारा चंडी को दिये गये शाप की पुरातन कथा सुनायी थी। कन्याओं के साथ विवाह किया था। ऋग्वेद में एक वैदिक सूक्तद्रष्टा के नाते निर्दिष्ट सोभरि काण्व नामक ऋषि
| आगे चल कर इसने अर्जुन के द्वारा चंडी का उद्धार
कराया ( जै. अ. ९६ )। संभवतः यही होगा। ऋग्वेद में इसके द्वारा त्रसदस्यु राजा
' सौमदत्ति-यादव राजा भूरिश्रवस् का पैतृक नाम । की पचास कन्याओं के साथ विवाह करने का निर्देश
२. सावर्णि मनु का पैतृक नाम । प्राप्त है (ऋ. ८.१९.३६ )। विष्णु में इसे बढच् कहा गया है (विष्णु. ४.२)।
सौमनस्य--(स्वा. प्रिय.) एक राजा, जो भागवत पौराणिक साहित्य में--मांधात राजा की सौ कन्याओं के अनुसार यज्ञबाहु राजा का पुत्र था (भा. ५.२०.९)। के साथ इसका विवाह किस प्रकार हुआ, इसकी कथा | सौमाप--मानुतंतव्य नामक आचार्य का पैतृक नाम पौराणिक साहित्य में प्राप्त है। एक बार यमुना नदी के | (श. बा. १३.५.३.२ )। किनारे तपस्या करते समय, इसने रतिसुख में निमग्न एक / सौमापि--प्रियव्रत नामक ऋषि का पैतृक नाम, जो मछली का जोड़ा देखा, जिसे देख कर इसके मन में | उसे सोमाप ऋषि का वंशज होने के कारण प्राप्त हुआ विवाह की इच्छा उत्पन्न हुई। तदनुसार यह मांधातृ राजा | था (सां. आ, १५.१)। प्रा. च. १३७ ]
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हुआ था | था। युधिष्ठिर का
जहाँ इसने उसे