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सौति
प्राचीन चरित्रकोश
सौदास
था। इसी कारण पौराणिक साहित्य में इसका निर्देश 'महा- | है। कई अभ्यासकों के अनुसार, महाभारत का आरंभ मुनि' एवं 'जगद्गरु' आदि गौरवात्मक उपाधियों के साथ | 'नारायणं नमस्कृत्य' श्लोक से होता है (म. आ. १.१)। किया गया है (विष्णु. ३.४.१०)। इसका सही नाम | किन्तु अन्य कई अभ्यासक इस ग्रंथ का प्रारंभ 'आस्तिक उग्रश्रवस् था।
पर्व' से (म. आ. १३), एवं अन्य कई अभ्यासक उसे कुरुक्षेत्र में समन्त पंचक क्षेत्र में, शौनका दिनैमिषारण्य- उपरिचर वसु की कथा से (म. आ. ५७ ) मानते हैं। वासी ऋषियों को महाभारत की कथा कथन करने का महाभारत के उपलब्ध संस्करण--इस ग्रंथ के मुंबई, ऐतिहासिक कार्य इसने किया। इसी कारण महाभारत- | कलकत्ता एवं मद्रास (कुंभकोणम् ) ये तीन पाठ प्रकाशित परंपरा में इसका नाम व्यास एवं वैसंपायन इतना ही | हो चुके हैं । इस ग्रंथ का एक काश्मीरी पाठ भी उपलब्ध है। आदरणीय माना जाता है।
उपर्युक्त सारे पाटों को एकत्रित कर, एवं अनेकानेक । महाभारत की परंपरा--महाभारत की कथा तीन प्राचीन पाण्डुलिपियों का संशोधन कर, इस ग्रंथ का प्रमाणविभिन्न आचार्यों के द्वारा तीन विभिन्न प्रसंगों में कथन की भृत एवं चिकित्सक संस्करण पूना के भांडारकर प्राच्यविद्या गयी थी। इस कथा का आद्य प्रवक्ता व्यास था, जिसने संशोधन मंदिर के द्वारा प्रकाशित किया गया है। इस अपना 'जय' नामक ग्रंथ अपने शिष्य वैशंपायन को | संस्करण के सारे खंड प्रकाशित हुए हैं, केवल हरिवंश ही कथन किया । उसी ग्रंथ को काफी परिवर्धित कर | बाकी है। 'भारत' नाम से वैशंपायन ने उसे जनमेजय राजा को
___ हरिवंश--इस ग्रंथ को महाभारत का खिल (परिशिष्ट) कथन किया था।
पर्व कहा जाता है, एवं इसकी रचना एकमात्र सौति के आगे चल कर सौति ने इसी ग्रंथ को अनेकानेक
| द्वारा ही हुई है । व्यास एवं वैशंपायन के द्वारा विरचित आख्यान एवं उपाख्यान जोड़ कर, एवं उसमें 'हरिवंश'
'महाभारत' में भारतीय युद्ध का सारा इतिहास संग्रहित । नामक एक स्वतंत्र परिशिष्टात्मक ग्रंथ की रचना कर, उसे
हुआ, किन्तु यादववंश में पैदा हुए कृष्ण की एवं उसके शौनकादि आचार्यों को कथन किया । सौति का यही ग्रंथ
वंशजों की जानकारी वहाँ कहीं भी नहीं है। इस त्रुटि की 'महाभारत' नाम से प्रसिद्ध हुआ, एव 'महाभारत का पर्ति करने के लिए सौति ने 'हरिवंश' की रचना की, आज उपलब्ध संस्करण सोति के द्वारा विरचित ही है।
जिसका कथन 'महाभारत' के 'स्वर्गारोहणपर्व' के पश्चात् इसी कारण, उपलब्ध महाभारत संस्करण के प्रवर्तक
सौति के द्वारा किया गया। आचार्य यद्यपि व्यास एवं वैशंपायन है, उसका रचयिता
सौत्रामणि-यांचालराजा द्रपद की पत्नी, जिसे कौकिली सौति है । सौति के द्वारा विरचित महाभारत के उपलब्ध |
नामान्तर भी प्राप्त था (म. आ. परि. १.७९.९६)। संस्करण काल २०० इ. पू. माना जाता है। महाभारत का विस्तार--भारत एवं महाभारत के |
सौदन्ति---एक पुरोहितसमुदाय, जो सुदन्त के वंशज ..
स कथन के समय, वैशंपायन एवं जनमेजयः तथा सौति एवं
| थे (पं. बा. १४.३.१३)। विश्वामित्र ऋषि के स्पर्धक के शौनक के दरम्यान जो प्रश्नोत्तर हुए, एवं तत्त्वज्ञान पर जो
रूप में इनका निर्देश प्राप्त है।। संवाद हुए, इसके कारण ही यह महाभारत ग्रंथ प्रतिदिन | सौदामिनी-एक पक्षिणी, जो कश्यप एवं विनता की बढता ही रहा, यहाँ तक कि, महाभारत के उपलब्ध | कन्या थी। संस्करण में लगभग एक लाख श्लोक संख्या है।
सौदास-सुदास राजा के पुत्रों के लिए प्रयुक्त महाभारत का कथन-जनमेजय के सर्पसत्र में वैशं| सामूहिक नाम । इन्होंने वसिष्ठ के पुत्र शक्ति को अग्नि में पायनप्रोक्त 'भारत' ग्रंथ इसने सुना था। पश्चात् शौनक
भारत हमने मना था। पश्चात शौनक | फेंक दिया था (जै. उ. ब्रा. २.३९०)। अपने पुत्र का ऋषि के द्वारा नैमिषारण्य में द्वादशवर्षीय सत्र नामक एक वध होने पर वसिष्ठ ने इनसे प्रतिशोध लेना चाहा, एवं यज्ञ का आयोजन किया गया। वहाँ शौनक ऋषि के द्वारा अन्त में उसे इस कार्य में सफलता प्राप्त हुई (ते.सं. ७. प्रार्थना किये जाने पर इसने 'महाभारत' का कथन किया | ४.७.१; को. ब्रा. ४.८, पं. ब्रा. ४.७.३)। (म. आ. १.५, ४)।
२. कोसल देश के मित्रसह कल्माषपाद राजा का . महाभारत का प्रारंभ---इस ग्रंथ का प्रारंभ कौन से श्लोक | नामान्तर, जो सुदास राजा का पुत्र होने के कारण उसे प्राप्त से होता है इस संबंध में विद्वानों में एकवाक्यता नहीं | हुआ था (कल्माषपाद देखिये)।
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