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________________ सेनाबिंदु प्राचीन चरित्रकोश सोमक क्रोधहन्तृ नामान्तर भी प्राप्त था। इसकी राजधानी देव- | __ सोदन्ति--एक आचार्य, जिस पर विश्वामित्र ऋषि ने प्रस्थ नगरी में थी। विजय प्राप्त की थी (पं. ब्रा. १४.५.१३)। . द्रौपदीस्वयंवर में यह उपस्थित था (म. आ. १७७. सोभरि काण्व-एक आचार्य, जिसे ऋग्वेद के कई ८)। अर्जन ने अपने उत्तर दिग्विजय के समय, उलूक- सूक्तों के प्रणयन का श्रेय दिया गया है (ऋ. ८.१९.२२: राज के साथ इस पर आक्रमण कर इसे राज्यभ्रष्ट किया | १०३)। इसके द्वारा विरचित सूक्त में इसके सोभरि था (म. स. २४.९)। नामक पिता का, एवं इसके परिवार के लोगों का कई बार भारतीय युद्ध में यह पाण्डवपक्ष में शामिल था, एवं | उल्लेख प्राप्त है (ऋ. ८.५.२६; १९.३२, २२.१५)। इसकी श्रेणि 'रथसत्तम' थी (म. उ. १६०.१९)। यह | | त्रसदास्यु के द्वारा इसे पचास वधुओं की प्राप्ति होने का श्रीकृष्ण एवं भीमसेन के समान पराक्रमी माना जाता निर्देश वहाँ प्राप्त है । पौराणिक साहित्य में इसी कथा का था। इसके रथ के अश्व पीले रेशम के वर्ण के थे, एवं संकेत प्राप्त है। किन्तु वहाँ इसे सौभरि कहा गया है उन पर स्वर्ण का जीन लगा हुआ था (म. द्रो. २२. (सौभरि देखिये)। १६३४) । इसी युद्ध में यह कर्ण के द्वारा मारा गया (म. सोम--एक वैदिक मंत्रद्रष्टा (ऋ. १०.१२४.१:५-९)। क. ३२.३७)। २. चंद्रमा का नामांतर । यह एक प्रजापति एवं स्वायंसेयन--विश्वामित्र का एक पुत्र । भुव मन्वन्तर के अत्रि ऋषि का पुत्र था। इसकी सत्ताईस पत्नियाँ थी, जो दक्ष प्रजापति की कन्या थी (चन्द्र एवं सैहिकेय--एक सुविख्यात राक्षससमूह, जो विप्रचित्ति दक्ष देखिये)। सप्तर्षियों के द्वारा किये गये पृथ्वीदोहन दानव एवं सिंहिका के पुत्र थे। इस समूह में कुल एक सौ के समय यह बछडा बना था । इसके नगरी का नाम राक्षस थे (विप्रचित्ति देखिये)। विभावरी था, जो मेरु पर्वत की उत्तर में स्थित थी (मस्य. सहिकेय सल्वि--एक असुर, जिसका परशुराम ने २६६.२६)। देवताओं की आज्ञा से वध किया (विष्णुधर्म १.५२)। ३. एक अग्नि, जो भानु एवं निशा के दो पुत्रों में मे सैतव--एक आचार्य, जो पाराशर्य नामक आचार्य | एक था। इसकी बहन का नाम रोहिणी था (म. व. २११. का शिष्य था (बृ. उ. २.५.२१, ४.५.२७)। इसके "शिष्यों में गौतम (बृ. उ. २.६.२, ४.६); एवं आनिवेश्य ४. सवितृ एवं पृष्णि के पुत्रों में से एक । . (श. बा. १४.७.३.२७) प्रमुख थे। ५. अंगिरस्कुलोत्पन्न एक गोत्रकार । सैत्य-अंगिराकुलोत्पन्न एक प्रवर। ६. सुख देवों में से एक। सैन्धव-सिंधु देश के निवासियों का सामूहिक नाम ७. एक शिवावतार । .(म. व. ५१.२१)। ८. एक वसु, जो धर्म एवं वसु के पुत्रों में से एक था सैन्धवायन-विश्वामित्र का एक पुत्र, एवं विश्वामित्र | (विष्णु. १.१५.१११)। कुलोत्पन्न एक गोत्रकार ऋषिगण ।। ९. सोमतन्वी नामक अंगिराकुलोत्पन्न गोत्रकार का २. एक आचार्य, जो व्यास की अथर्वन् शिष्यपरं- नामान्तर । परा में से शौनक नामक आचार्य का शिष्य था। सोम प्रतिवेश्य--एक आचार्य, जो प्रतिवेश्य नामक सैबल्क--वसिष्ठकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । पाठभेद- | आचार्य का शिष्य था (सां आ. १५.१)। 'सर्वझौलाब'। सोम शुष्मायण-अट्ठाईस व्यासों में से एक । सरांध्र-कश्यपकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। सोमक-कृष्ण एवं कालिंदी का एक पुत्र । सैरंध्री--विराट नगर में अज्ञातवास के समय द्रौपदी २. सोमकवंशीय क्षत्रियों का सामूहिक नाम । के द्वारा धारण किया गया नाम । सोमक साहदेव्य (सार्जेय)-(सो. नील.) संजय २. केकयराज की एक कन्या, जो मरुत्त आविक्षित | लोगों का एक राजा (ऋ.४.१५.७-१०; सुंजय १.देखिये)। राजा की पत्नी थी (मार्क. १२८)। सहदेव का वंशज होने से इसे 'साहदेव्य' पैतृक नाम, एवं सैषिरिरि-विश्वामित्रकुलोत्पन्न एक गोत्रकार । सुजयों का वंशज होने से इसे 'सांर्जय' वांशिक नाम प्राप्त - सोक्ति--भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। । हुआ होगा (ऐ. ब्रा. ७.३४, श. ब्रा. २.४.४.४)। पर्वत
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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