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सुग्रीव
प्राचीन चरित्रकोश
सुग्रीव
युद्ध की तैयारी--हनुमत् के द्वारा सीता का शोध | लगे। उस समय इसने लंका के सभी दरवाजे रोंक कर लगाये जाने पर इसने समस्त वानरसेना एकत्रित कर | राक्षसों का संहार किया। रावण पर आक्रमण करने की तैयारी की । लंका पर राम का राज्याभिषेक--राम-रावण युद्ध समाप्त होने आक्रमण करने के लिए समुद्र में सेतु बँधवाने की कल्पना पर, राम दाशरथि का राज्यारोहणसमरंभ अयोध्या भी इसीने ही राम को दी, एवं उसको धीरज बंधाया। में संपन्न हुआ, जहाँ यह अपने समस्त परिवार के साथ पश्चात् अपनी संपूर्ण सेना के साथ यह समुद्रतट पर | उपस्थित हुआ था। उस समारोह में राम ने इसका आ पहुँचा (वा. रा. यु.२)।
अत्यधिक सत्कार किया, एवं युद्ध में यशस्विता प्राप्त होने समुद्रतट पर पहुँचते ही रावण ने इसे संदेश भेजा का बहुत सारा श्रेय इसे प्रदान किया (बा. रा. १२३की यह राम की सहायता न करे, किन्तु यह अपने | १२८)। बाद में राम ने जब देहत्याग किया, तब किष्किंधा निश्चय पर अटल रहा, एवं इसने रावण को प्रतिसंदेश के राजगद्दी पर अंगद को बिठा कर इसने भी मृत्यु भेजा।
स्वीकार ली।
चरित्रचित्रण-वाल्मीकि रामायण में सुग्रीव का न मेऽसि मित्रं न तथानुकम्प्यो, न चोपकर्तासि न मे प्रियोऽसि ।
महत्त्व राजनैतिक है, जहाँ इसे 'शरण्य' (शरण जाने के अरिश्च रामस्य महानुबन्धः,
लिए योग्य ) कहा गया है। इसकी मैत्री के कारण राम स मेऽसि वालीव वधाई वध्यः ।
दाशरथि सीता को पुनः प्राप्त कर सका, जिस संबंध में
इसकी प्रशंसा राम के द्वारा भी की गयी है (वा. रा. (वा. रा. यु. २०.२३)
| कि. ७.१७-१८)। (तुम मेरे मित्र, उपकारकर्ता, प्रिय एवं मेरे प्रति दया
सुग्रीव कुशल सैन्यसंचालक था, एवं इसका भौगोलिक भावना रखनेवाले नहीं हो । मेरे मित्र राम के तुम शत्रु ज्ञान भी परमकोटि का था (वा. रा. कि. ४.१७-२९; होने के कारण, वालिन् की भाँति तुम भी वध करने योग्य
| ४१.७-४५, ४२.६-४९)। ही हो)।
___ सुग्रीवचरित्र के दोष--वाल्मीकि रामायण में इसके बाद में यह स्वयं छलांग मार कर रावण के राज
चरित्र के निम्नलिखित दोषों का निर्देश अंगद के द्वारा प्रासाद में पहुँच गया, जहाँ इसने उसका मुकुट गिरा
किया गया है:-१. मायाविन् राक्षस के युद्ध के समय दिया। इस प्रकार राम रावण युद्ध प्रारंभ हुआ (वा. वालिन् को गुफा में बन्द करना; २. वालिबध के रा. यु. ४०)।
पश्चात् वालिपत्नी तारा का अपहरण करना; ३. राम राम-रावण युद्ध में--इस युद्ध में इसने एवं इसकी दाशरथि को दिये गये वचन का भंग करना ( वा. रा. वानरसेना ने अत्यधिक पराक्रम दिखाया। इसने निम्न- कि. ५५.२-५)। .. लिखित राक्षसों के साथ युद्ध कर उनका वध कियाः-- परिवार-इसकी तारा एवं कमा नामक दो पत्नियाँ १. कुंभकर्णपुत्र कुंभ (वा. रा. यु. ७५-७६); २. रावण- थी। इसके विजनवास में इसके दोनों पत्नियों को इसके सेनापति विरुपाक्ष; ३. रावणसेनापति महोदर (वा. भाई वालिन् ने भ्रष्ट किया (वा. रा. कि. १८-२२)। रा. यु. ९७)। कुंभकर्ण एवं रावण से भी इसने युद्ध वालिन्वध के पश्चात् इसे पुनः राज्यप्राप्ति होने पर, किया था, जिन दोनों युद्धों में यह उनके हाथों परास्त | इसकी ये दोनों पत्नियाँ पुनः एक बार इसके पास रहने हुआ (वा. रा. यु. ५९; ६७)।
लगी। इसकी मोहना नामक अन्य एक पत्नी का निर्देश रामरावणयुद्ध में लक्ष्मण जब मूछित हुआ, तब | भी प्राप्त है ( पन. पा. ६०)। इसने वानरसेना का धीरज बँधा कर मूछित लक्ष्मण इसका कोई पुत्र न था, जिस कारण इसकी मृत्यु के को युद्धभूमि से उठाया, एवं शिबिर पहुँचा दिया (वा. पश्चात् अंगद किष्किंधा नगरी का राजा बन गया। रा. यु. ५०)।
____ मानस में तुलसी द्वारा विरचित मानस में सुग्रीव का ___ कुंभकर्णवध के पश्चात् इसने हनुमत् को आज्ञा दी कि, चरित्रचित्रण एक राजनीतिज्ञ के नाते नहीं, बल्कि राम लंका को आग लगा दी जाये। हनुमत् के द्वारा वैसा ही के एक शरणापन्न सेवक एवं सखा के नाते किया गयाकिये जाने पर लंका के सभी राक्षस इधर उधर भागने | है। इसी कारण राम से इसकी मित्रता राजनैतिक गठ
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