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सीरध्वज
प्राचीन चरित्रकोश
सुकला
अर्थ 'हल' होता है। यही हल इसके कीर्ति का २. मातरिश्वन् ऋषि की पत्नी, जो मंक्रणक ऋषि की कारण बन जाने के कारण, इसे “सीरध्वज' नाम प्राप्त माता थी (म. श. ३७.५० पाठ.)। हुआ (भा. ९.१३.१८)।
सुकमल-एक यक्ष, जो मणिवर एवं देवजनी का सीता की प्राप्ति-एक बार यह अग्निचयन के लिए एक पुत्र था (ब्रह्मांड. ३.७.१२९)। भूमि पर हल चला रहा था, उस समय इसे सीता की सुकर्मन्-एक पापी पुरुष, जिसकी कथा गीता के प्राप्ति हुई (सीता देखिये)। सीता बड़ी होने पर दसरे अध्याय के पठन का माहात्म्य कथन करने के लिए सांकाश्या नगरी के सुधन्वन् राजा ने सीता की मांग की। पद्म में दी गयी है (पन. उ. १७२)। इसके द्वारा इस माँग का इन्कार किये जाने पर सुधन्वन् ने २.(सो. वृष्णि) यादव राजा श्वफल्क के पुत्रों में से इस पर हमला किया। उस युद्ध में इसने सुधन्वन् का एक (भा. ९.२४:१६)। वध किया, एवं अपने पुत्र कुशवज को सांकाश्या नगरी । ३. रुद्रसावर्णि मन्वंतर का एक देवगण । का अधिपति नियुक्त किया (वा. रा. बा. ७१.१६-१९) ४. रोच्य मन्वंतर का एक देवगण | मिथिला पर हमला-सीता अत्यंत स्वरूपसुंदर होने
५. एक आचार्य, जो विष्णु एवं भागवत के अनुसार, के कारण, भारतवर्ष के अनेकानेक राजा उससे विवाह
व्यास की सामशिष्य परंपरा में से जैमिनि नामक आचार्य करना चाहते थे। सीताविवाह के लिए इसने शिवधर्न
का, वायु के अनुसार सुत्वन् का, एवं ब्रह्मांड के अनुसार भंग का प्रण निश्चित किया । वह प्रण किसी भी राजा ने
सुन्वत् नामक आचार्य का शिष्य था। इसने सामवेद की पूर्ण नहीं किया। अन्त में सीताविवाह के संबंध में
कुल एक सहस्र शाखाएँ तैयार की , एवं वे उदीच्य निराश हुए राजाओं ने एकत्रित हो कर मिथिला नगरी |
दिशा से आये हुए पाँच सौ, एवं पूर्व दिशा के से आये . को घेर लिया। यह घेरा लगातार एक वर्ष तक चालू
हुए पाँच सौ शिष्यों में बाँट दी। रहा, जिससे यह अत्यधिक त्रस्त हुआ । अन्त में देवी
___ यह अनध्याय के दिन में भी अपने शिष्यों को सहायता के कारण, इस संकट से यह मुक्त हुआ (वा.रा.
संहिताओं के पाठ सिखाता था, जिस कारण क्रुद्ध हो कर बा. ६६)।
इंद्र ने इसके सारे शिष्यों का वध किया। पश्चात् इसने वाजपेय यज्ञ--आगे चल कर, इसने वाजपेय यज्ञ
प्रायोपवेशन कर इंद्र को प्रसन्न किया । फिर इंद्र ने इसके किया, जिस के उपलक्ष्य में विश्वामित्र ऋषि अयोध्या के मारे सिप नीति
सारे शिष्य पुनः जीवित किये, इतना ही नही, उसने राजकुमार राम एवं लक्ष्मण को मिथिला नगरी में ले
इसे हिरण्यनाभ एवं पौष्यंजि नामक दो नये शिष्य भी आये । शिवधनुभग का इसका प्रग राम ने पूरा किया, | प्रदान किये ( ब्रह्मांड, २.३५.३२)। एवं सीता का वरण किया।
६. युधिष्ठिर की राजसभा में उपस्थित एक क्षत्रिय पश्चात् इसकी दो कन्याएँ सीता एवं ऊर्मिला, एवं (म. स. ४२३)। पाठभेद ( भांडारकर संहिता)इसके भाई कुशध्वज की दो कन्याएँ मांडवी एवं श्रुतकीर्ति के नाम विवाह क्रमश अयोध्या के राजकुमार राम, लक्ष्मण, भरत | ७. कुरुक्षेत्र का एक ब्राह्मण, जिसकी कथा 'मातृपितृएवं शत्रघ्न से सुमुहूर्त पर संपन्न हुए (वा. रा. बा. | माहात्म्य' कथन करने के लिए पद्म में दी गयी है। ७०-७४) । पन में ऊर्मिला इसकी नहीं बल्कि इसके
इसने अपने माता पिताओं की सेवा कर, 'सर्ववश्यता' बंधु कुशध्वज की कन्या दी गयी है।
नामक सिद्धि प्राप्त की थी। इसी सिद्धि के बल से इसने सुकक्ष आंगिरस-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. ८. दशारण्य में उग्र तपस्या करनेवाले पिप्पलाद काश्यप ९२-९३)।
नामक ऋषि का गर्वहरण किया (पद्म. भू. ६१-६३; सुकन्या--शर्याति राजा की कन्या, जो च्यवन ऋषि ८४)। की भार्या थी (श. ब्रा. ४.१.५.६; जै. ब्रा. ३.१२१)। ८. एक स्कंद-पार्षद, जो विधातृ के द्वारा स्कंद इसके पुत्र का नाम प्रमति, एवं पौत्र का नाम रुस था | को दिये गये दो पार्षदों में से एक था। दूसरे पार्षद का (म. आ. ८.१; पन. पा. १५, च्यवन १. देखिये)। | नाम सुव्रत था। इसकी कन्या का नाम सुमेधस् था, जिसका विवाह निध्रुव सुकला--वाराणसी के कृकल नामक वैश्य की पत्नी, काण्व ऋषि से हुआ था।
| जिसकी कथा पतिपत्नियों के द्वारा एक साथ तीर्थयात्रा १०४६