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सीता
प्राचीन चरित्रकोश
सीता
१५)। सीता का यह अवतार उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में | शाप दिया, 'मैं तुम्हारा एवं तुम्हारे सारे परिवार का हुआ।
नाश करने के लिए लंका में फिर आउँगी। रे. बुल्के के अनुसार भमिजा सीता की अलौकिक जन्म | पश्चात् मिथिला के एक ब्राह्मण को जमीन पर हल कथा सीता नामक कृषि की अधिष्ठात्री देवी के प्रभाव से | चलाते समय वही पेटिका प्राप्त हुई, जो उसने राजधन उत्पन्न हुई थी। सीता का शब्दशः अर्थ 'हल से खींची मान कर जनक राजा को सुपूर्द किया । उस पेटिका से हुई रेखा' होता है । अतएव भमि में हल चलाते समय | निकली हुई कन्या को जनक ने बेटी के रूप में पाला, एवं इसके निकलने के कारण इसे सीता नाम प्राप्त हुआ | उसका नाम सीता रख दिया। होगा । संभव है, किसी निश्चित कुलपरंपरा के अभाव में | मातुलिंग से निकलने के कारण इसे 'मातुलिंगी ऐतिहासिक राजकुमारी सीता की जन्मकथा पर कृषि के | रत्न में होने के कारण ' रत्नावलि;' धरणी से निकलने अधिष्ठात्री देवी के व्यक्तित्व का प्रभाव पड़ा हो। के कारण 'धरणीजा;' जनक के द्वारा पाले जाने के
जन्मसंबंधी अन्य आख्यायिकाएँ--इसके जन्म के | कारण 'जानकी;' जमीन से निकलने के कारण 'सीता;' संबंध में अन्य आख्यायिकाएँ विभिन्न रामायण ग्रंथों में | अग्नि से निकलने के कारण 'अग्निजा;' एवं पूर्वजन्म के एवं पुराणों में प्राप्त है, जो निम्नप्रकार है :-- नाम के कारण 'पद्मा' आदि नामान्तर प्राप्त हुए (आ.
(1) अग्निजा सीता-'आनंद रामायण' (१५ वी रा. ७.३; भावार्थ रा. १.१५)। शताब्दी) के अनुसार इसके पिता का नाम पद्माक्ष दिया (२) रक्तजा सीता-रक्तजा के रूप में सीता गया है। पद्माक्ष राजा ने लक्ष्मी को पुत्रीरूप में पाने के का जन्म होने की कथा 'अद्भुत रामायण' में पायी जाती लिए विष्णु की उपासना की । विष्णु ने उसे महालिंग है । रावण जनस्थान के मुनियों पर अत्याचार करता था, दिया, जिससे एक सुंदर कन्या निकली, जिसका नाम | एवं अपने बाण की नोंक से ऋषियों के शरीर से रक्त • पद्मा रखा गया।
निकाल कर एक मटके में जमा करता था। इसी वन में पना के स्वयंवर के समय, दैत्यों ने स्वयंवर मंडप | गृत्समद नामक एक ऋषि रहता था, जो लक्ष्मी के समान ध्वस्त किया, एवं पद्माक्ष राजा का संपूर्ण विनाश हो कर | कन्या की इच्छा से तपस्या करता था। दर्भ के अग्रभाग 'वह स्वयं भी मारा गया। यह देख कर पद्मा ने अग्नि में से दूध को ले कर, मंत्रोच्चारण के साथ वह उसे प्रवेश किया। इसकी खोज के लिए दैत्यों ने बड़ी खोज प्रतिदिन इकट्ठा करता था। बीन की, किन्तु इसका कहीं पता न चला ।
| एक दिन रावण ने गृत्समद ऋषि का मटका चुरा लिया, एक बार यह अमिकुंड से बाहर आ कर बैठी थी, तब एवं उसमें इकट्ठा किया दूध ऋषियों के रक्त से भरे हुए विमान से जानेवाले रावण ने इसे देखा,एवं वह कामातुर | मटके में डाल दिया, एवं उसे मंदोदरी के पास रखने के हो कर इसकी ओर दौड़ा। उसे आता हुआ देख कर | लिए दे दिया। यह फिर अग्नि में प्रविष्ट हुई । इसे ढूँढने के लिए रावण आगे चल कर रावण के कुकृत्यों से तंग आ कर ने समस्त यज्ञकुंड खोद डाला, जिससे इसे जीवित सीता| मंदोदरी ने आत्महत्या के हेतु से मटके में स्थित दूधयुक्त तो न मिली, किन्तु इसीका ही एक जड़ रूप पाँच रत्नों रक्त प्राशन किया, जिससे वह गर्भवती रही। अपना यह के रूप में प्राप्त हुआ।
गर्भ उसने कुरुक्षेत्र की भूमि में गाड़ दिया। उसी गर्भ से - इन रत्नों को एक पेटिका में बन्द रख कर रावण लंका | आगे चल कर सीता का जन्म हुआ, जिसे विदर्भ देश के में गया, एवं उसे अपनी पत्नी मंदोदरी के हाथ सौंप | जनक राजा ने पालपोस कर बड़ा किया (अ. रा.८)। दिया। वहाँ पेटिका खोलते ही पद्मा अपने मूल कन्यारूप (३) रावणात्मजा सीता--सीताजन्म के संबंधित में प्रकट हुई। इस पर पद्माक्ष के सारे कुल का एवं राज्य सर्वाधिक प्राचीन कथा में, सीता को रावण की कन्या माना का विनाश करनेवाली इस कन्या को लंका से बाहर छोड़ गया है। इस कथा के अनुसार रावण ने मय राक्षस की देनेकी प्रार्थना रावण ने मंदोदरी से की । मंदोदरी की इस | कन्या मन्दोदरी से विवाह करना चाहा । उस समय मय प्रार्थना के अनुसार रावण ने इस कन्या को पुनः एक ने रावण से कहा कि, मन्दोदरी के जन्मजातक से मंदोदरी बार पेटिका में बंद किया, एवं वह पेटिका मिथिला | की पहली संतान कुलधातक उत्पन्न होनेवाली है; अतएव में गड़वा दी। पेटिका में बन्द करने के पूर्व इसने रावण को | उस संतान का वध करना उचित होगा। मय की इस
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