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साल्व
प्राचीन चरित्रकोश
सावित्री
इन लोगों के समूह में निम्नलिखित लोग शामिल थे:- ४. एक आचार्य, जिसका निर्देश उपकर्मांगतर्पण में १. उदुंबर; २. तिलखल; ३. मद्रक; ४. युगंधर; ५.भूलिंग; | प्राप्त है। ६. शरदण्ड (का शिका)
सावणि सौमदत्ति-एक आचार्य, जो वायु एवं सालडि-अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। ब्रह्मांड के अनुसार व्यास की पुराण शिष्यपरंपरा में से
सावर्ण-युधिष्ठिरसभा में उपस्थित एक ऋषि (म. रोमहर्षण नामक आचार्य का शिष्य था (वायु. ६१. स: ४.१३)।
| ५६)। सावयस--अषाढ (आषाढ) नामक आचार्य का सावर्णिक--भृगुकुलो-पन्न एक गोत्रकार । पैतृक नाम (श. ब्रा. १.१.१.७ )।
सावय-मनु सावर्णि राजा के 'सावर्णि' पैतृक नाम का सावर्णि---सावर्णि नामक आठवें मन्वन्तर के अधिपति नामान्तर (सावर्णि १. देखिये)। मनु का पैतृक नाम (ऋ. १०.६२.११)। सवर्णा नामक ) सावित्र--ग्यारह रुद्रों में से एक (मत्स्य. ५.३०)। स्त्री के वंशज होने के कारण उसे यह पैतृक नाम प्राप्त हुआ होगा (मनु सावर्णि देखिये)। रौथ के अनुसार
२.--कर्ण का नामान्तर (सावित्री ५. देखिये)। 'सवर्णा' सूर्यपत्नी सरंण्यू का ही नामान्तर होगा। इस सावित्र वसु-अष्टवसुओं में से एक, जिसने रावण पैतृक नाम का 'सावर्ण्य' एवं 'सांवरणि' पाठ भी ऋग्वेद में के पितामह सुमालिन् का वध किया था (वा. रा. उ. प्राप्त हैं (ऋ. १०.६२.९)। महाभारत में इस पैतृक नाम | २७.४३-५०)। का 'सौवर्ण' नामान्तर प्राप्त है (म. अनु. १८.४३)। सावित्री-मद्र देशाधिपति अश्वपति राजा की कन्या,
पौराणिक साहित्य में भी 'सावर्णि' मनु राजा का मातृक | जो शाल्व देश के सत्यवत् राजा की पत्नी थी। अपने नाम बताया गया है, एवं यह मातृक नाम सवर्णा का पुत्र पातिव्रत्य प्रभाव के कारण इसने अपने अल्पायु पति के • होने के कारण इसे प्राप्त हुआ था ऐसा भी निर्देश वहाँ प्राण साक्षात् यमधर्म से पुनः प्राप्त किये, जिस कारण यह
प्राप्त है (विष्णु. ३.२.१३: ब्रह्म.६.१९)। किन्तु अन्य प्राचीन भारतीय साहित्य में पातिव्रत्यधर्म की अमर पुराणों में इसकी माता का नाम सवर्णा नहीं, बल्कि प्रतिमा बन चुकी है । तैत्तिरीय ब्राह्मण में भी सावित्री 'छाया' अथवा 'मृण्मयी' दिया गया है (भा. ६.६.४१%, नाम का निर्देश प्राप्त है, जिससे प्रतीत होता है कि, माक. ७५.३१; म. अनु. ५३.२५ कुं.)।
सावित्री की कथा ब्राह्मण ग्रंथों के रचनाकाल में किसी
रूप में अस्तित्व में थी ( सीता सावित्री देखिये)। इसके बड़े भाई का नाम श्राद्ध देव था, जो सातवें मन्वन्तर का अधिपति मनु था। अपने ज्येष्ठ बन्धु के वर्ण | जन्म-इसकी माता का नाम मालती (मालवी) के समान होने के कारण इसे सावर्णि उपाधि प्राप्त हुई, था। वसिष्ठ ऋषि की आज्ञा से इसके पिता ने गायत्री ऐसी भी चमत्कृतिपूर्ण कथा कई पुराणों में प्राप्त है, किन्तु मंत्र का दस लाख बार जाप किया, जिस कारण इसका वह कल्पनारम्य प्रतीत होती है । वायु में इसका सही नाम | जन्म हुआ। 'श्रुतश्रवस्' दिया गया है (वायु. ८४.५१)। मनु सावर्णि
विवाह--यह अत्यंत स्वरूपसुंदर थी, एवं इसका राजा पूर्वजन्म में चैत्रवंशीय सुरथ नामक राजा था (दे.
पिता अत्यंत धनसंपन्न था। इस कारण इसके साथ भा. १०.१०; मार्क. ७८.३; सुरथ १३. देखिये)।
विवाह करने में सभी राजपुत्र डरते थे । अतः पति२. सत्ययुग में उत्पन्न एक ऋषि, जिसने छः हजार संशोधनार्थ यह स्वयं निकल पड़ी, एवं इसने शाल्वदेश वर्षों तक शिव की उपासना की थी । इस तपस्या के कारण
के युमत्सेन राजा के पुत्र सत्यवत् से विवाह करना शिव ने प्रसन्न हो कर इसे विख्यात ग्रंथकार होने का, निश्चित किया । सत्यवत् अत्यंत गुणसंपन्न था, किन्तु एवं अजरामर होने का आशीर्वाद प्रदान किया था (म.
अत्यंत अल्पायु होने के कारण एक वर्ष के पश्चात् ही अनु. ४५. ८७ कुं.)। पश्चात् यह इंद्रसभा का सदस्य
उसकी मृत्यु होनेवाली थी। नारद ऋषि ने सत्यवत् का भी बन गया था (म. स. ७.९)।
यह भीषण भविष्य इसे कथन किया, एवं उससे विवाह ३. एक ग्रंथकर्ता ऋषि, जो कृतयुग में उत्पन्न | करने के इसके निश्चय से विचलित करने का काफी प्रयत्न हुआ था।
किया । किन्तु यह अपने निश्चय पर अटल रही। १०३९