SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1060
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सारस्वत प्राचीन चरित्रकोश साल्व 'वेदाचार्य एवं 'प्राचीनगर्भ' नामान्तर भी प्राप्त थे । सार्पराज्ञी-सर्पराज्ञी नामक वैदिक सूक्तद्रष्ट्री का इसने स्वायंभुव मन्वन्तर में वेदविभाजन का कार्य अत्यंत नामांतर (पं. ब्रा. ४.९.४; को. ब्रा. २७.४)। यशस्वी प्रकार से किया (म. शां. ३३७.३७-३९; ६६, सार्पि-भृगुकुलोत्पन्न एक गोत्रकार ! व्यास पाराशय देखिये)। सार्वभौम--(सो. द्विमीढ.) एक राजा, जो मत्स्य __ अन्य पुराणों में इसे वैवस्वत मन्वन्तर का व्यास कहा | के अनुसार सुधर्मन् राजा का, एवं वायु के अनुसार गया है । इसे वसिष्ठ ऋषि ने वायुपुराण सिखाया था, | सुवर्मन् राजा का पुत्र था (मत्स्य. ४९.७१; वायु. ९९. जो इसने आगे चल कर अपने त्रिधामन् नामक शिष्य | १८६ )। को प्रदान किया था ( वायु. १०३.६०)। २. (सो. कुरु,) एक राजा, जो विदूरथ राजा का पुत्र, ५. एक आचार्य, जो कौशिक ऋषि के सात शिष्यों में एवं जयसेन (जयत्सेन) राजा का पिता था (भा. ९.. से एक था (अ. रा. ७)। २२.१०)। ६. पश्चिम दिशा में निवास करनेवाला एक ऋषि, जो ३. (सो. पूरु.) एक राजा, जो अहंयाति राजा एवं अत्रि ऋषि का पुत्र का था (म. शां. २०१.३०)। भानुमती का पुत्र था । इसकी पत्नी का नाम सुंदरा था, ७. तुंगकारण्य में निवास करनेवाला एक ऋषि, जिसने | जिससे इसे जयत्सेन नामक पुत्र उत्पन्न हुआ था (म. अपने अनेकानेक शिष्यों को वेदविद्या सिखायी ( पद्म. स्व. आ. ६३.१५)। ३९)। ___४. सावर्णि मन्वन्तर का एक अवतार, जो देवगुह्य एवं ८. एक लोकसमूह, जो पश्चिम भारत में निवास | सरस्वती का पुत्र था (भा. ८.१३.१७)। करता था (भा. १.१०.३४)। सार्वसेनि--शौचेय नामक आचार्य का पैतृक नाम सारिक-युधिष्ठिरसभा में उपस्थित एक ऋषि (म. (ते. सं. ७.१.१०.३)। स. ४.११)। सालकटंकट-अलंबुस नामक राक्षस का नामांतर। . सारमजय--वृष्णिकुल में उत्पन्न एक यादव (म. सालकटंकटा-विद्युत्केश राक्षस की पत्नी, जिसकी आ. १७७.१८)। पाठभेद (भांडारकर संहिता )-- माता का नाम संध्या था ( वा. रा. उ. ४.२३)। 'सारमेजय'। सालकटकटी--हिडिंबा राक्षसी का नामांतर (म.आ. : सारिसृक्क शार्ग-एक वैदिक सूक्तद्रष्टा (ऋ. १४३.१५५६४, पंक्ति ६)। १०.१४२.५-६)। महाभारत में इसे 'सारिसुक्क' कहा सालंकायन--विश्वामित्र ऋषि का एक पुत्र । गया है, एवं इसे मंदपाल ऋषि एवं जरितृ शार्ग का पुत्र | सालिमंजरिसत्य-एक आचार्य, जो वायु के अनुसार बताया गया है। व्यास की सामशिष्यपरंपरा में से हिरण्यनाभ नामक आचार्य खांडववनदाह के समय इसने अग्नि की स्तुति की, का शिष्य था। जिस कारण प्रसन्न हो कर अग्नि ने इसे दाह से मुक्त साल्व-एक प्राचीन लोकसमूह, जिसका निर्देश किया (म. आ. २२३.३)। प्राचीन साहित्य में प्रायः सर्वत्र मत्स्य लोगों के साथ प्राप्त साञ्जय-एक संजय राजा, जिसका निर्देश ऋग्वेद है । आधुनिक दक्षिण पंजाब एवं दक्षिण राजस्थान में अल्वार की एक दानस्तुति में प्राप्त है (ऋ. ६.४७.२५)। यह प्रदेश में ये लोग बसे हुए थे। भरद्वाजों का आश्रयदाता था (श. ब्रा. २.४.४.४; १२. | इन लोगों का प्राचीनतम निर्देश गोपथ ब्राह्मण में प्राप्त ८.२.३)। | है, जहाँ इन्हें मत्स्य लोगों के साथ संबंधित किया गया है २. एक पैतृक नाम, जो निम्नलिखित आचार्यों के (गो. बा. १.२.९)। पाणिनि के व्याकरण में भी इन लिए प्रमुक्त किया गया है :- १.प्रस्तोक (सां. श्री. लोगों का निर्देश प्राप्त है (पा. सू. ४.१.१७३; २.१३५)। १६.११.११); २. सहदेव (ऐ. ब्रा. ७.३.४ ); ३ सुप्लन् । महाभारत के अनुसार, ये लोग कुरुक्षेत्र के समीप बसे (श. ब्रा. २.४.४.४.४)। किंतु सायणाचार्य सहदेव हुए थे, एवं इनकी राजधानी शाल्वपुर (सौभगगनगर) एवं साञ्जय को विभिन्न व्यक्ति मानते है। नगर में थी। भारतीय युद्ध में ये लोग मत्स्य, केकय, सार्धनमि-अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। अंबष्ठ, त्रिगर्त आदि लोगों के साथ कौरवपक्ष में शामिल सार्धमुग्रीवि--अंगिराकुलोत्पन्न एक गोत्रकार। थे, एवं इनकी गणना भीष्म के सैन्य में की जाती थी। १०३८
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy