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________________ समतापन प्राचीन चरित्रकोश संपाति समतापन--भौमतारन नामक गौरपराशरकुलोत्पन्न | तीर्थ पर ग्राहयोनि से इसका उद्धार किया (म. आ. २०८. गोत्रकार का नामांतर । १९; स. १०.११)। समशुद्धि-शततेजस् नामक शिवावतार का एक शिप्य । समुद्रसेन-पांडवपक्ष का एक राजा, जिसके पुत्र समय--अजित देवों में से एक । का नाम चंद्रसेन था (म. द्रो. २२. ५०)। भीम ने २. खत मन्वंतर के सप्तर्पियों में से एक । अपने पूर्व दिग्विजय के समय, इसे एवं इसके पुत्र चन्द्र ३. जैाप नामक गौरपराशरकुलोत्पन्न गोत्रकार का | सेन को जीता था (म. स. २७.२२)। नामांतर। | भारतीय युद्ध में यह पांडवों के पक्ष में शामिल था, समर-(सो. कुरु.) एक राजा, जो मत्स्य के जहाँ इसका पुत्र चंद्रसेन अश्वत्थामन् के द्वारा मारा गया अनुसार काव्य राजा का पुत्र था ( मत्स्य. ४९.५४ )। था (म. द्रो. १३१.१२८)। विष्णु एवं वायु में इसे नीष राजा का पुत्र, एवं संपार २. कालेयवंश का एक क्षत्रिय राजा, जो भारतीय राजा का पिता कहा गया है । इसकी राजधानी काफिल्य युद्ध में कौरवपक्ष में शामिल था। यह कालेय नामक नगरी में था (वायु. ९९.१७६)। | दैय के अंश से उत्पन्न हुआ था (म. आ. ६१. समरथ--(सू. निमि.) एक राजा, जो भागवत के ५२)। इसने पांडवपक्षीय चित्रसे राजा का वध किया अनुसार क्षेनधि राजा पुत्र, एवं स यरथ राजा का पिता था (म. क. ४.२७.७, पंक्ति १-२)। था (भा. ०.१३.२४) । पाठभेद-'कामरथ'। समृद्ध--'धृतराष्ट्रकुलोत्पन्न एक नाग, जो जनमेजय २. मत्स्यराज विराट के भाइयों में से एक (म. द्रो. के सर्पसत्र में दग्ध हुआ था (म. आ. ५२.१६ )। १३३.४० ) पाठभेद--(भांडारकर सहिता)- 'कामरथ'। समेडी-वंद की अनुचरी एक मातृका (म. समवृत्ति--एक मरुत्, जो मरुतां के छठवां गणों में श. ४५.१३)। समाविष्ट था (ब्रह्मांड. ३.५.९७)। संपाति--एक दीर्घजीवी पक्षी, जो अरुण एवं गृधि के समसौरभ--एक वेदविद्यापारंगत ब्राह्मण,जो जनमजय पुत्रों में से एक था (वा. रा. कि. ५६; ब्रह्मांड. ३.७. के संसत्र का एक सदस्य था (म. आ. ४८.९)। ४४६) अन्य पौराणिक साहित्य में इसकी माता का पाठभेद ( भांडारकर संहिता)--'समसौरभ'। नाम श्येनी दिया गया है (वायु. ७०.३१७; म. आ. समाधि-एक वैश्य, जो सुमेधस् ऋषि के आश्रम में ६०.६७) । इसके भाई का नाम जटायु था। मनःशांति के लिए कुछ काल तक रहा था (सुरथ १३, वाल्मीकि रामायण में, इसका एवं इसके भाई जटायु देखिये। का एक गीध पक्षी के नाते निर्देश पुनः पुनः प्राप्त है। . समान--सुपित देवों में से एक (वायु. ६६.१८)। फिर भी वाल्मीकि रामायण में ही प्राप्त एक निर्देश से समिथ--एक मरुत् , जो मरुतगणों के पाँचवें गण में प्रतीत होता है, यह अपने को एक पक्षी नहीं, बल्कि समाविष्ट था। मनुष्यप्राणी ही मानता था (वा. रा. कि. ५६.४)। समितार--वशवर्तिन देवों में से एक (वायु. १००. अतः संभव यही है कि, वाल्मीकि रामायण में निर्दिष्ट वानरों के समान, संपाति एवं जटायु ये भी गीधयोनिज समितिजय--एक यादव योद्धा, जो द्वारका में रहने- | पक्षी न हो कर, गीधों की पूजा करनेवाले आदिवासी वाले सात महारथियों में से एक था (म. स. १३.५७)। लोगों का प्रतिनिधित्व करते थे (वानर देखिये)। भारतीय युद्ध में यह कौरवपक्ष में शामिल था। इंद्र से युद्ध-यह एवं इसका भाई जटायु विध्यसमीक-एक यादव महारथी, जो द्रोपदीस्वयंवर में पर्वत के तलहटी में रहनेवाले निशाकर (चंद्र अथवा उपस्थित था (म.आ. १७७.१८: स. ७.१४)। भारतीय चंद्रमस् ) ऋषि की सेवा करते थे। एक बार वृत्रासर का युद्ध में यह कौरवपक्ष में शामिल था। छलकपट से वध कर लौट आनेवाले इंद्र से इसकी तथा २. शक्रसभा में उपस्थित एक ऋषि (म. स. ७.१४)। जटायु की भेंट हुई । इन्द्र ने इसको काफी दुरुत्तर दिये समीची--यमसभा की एक अप्सरा, जो वर्गा नामक | जिस कारण इन दोनों में युद्ध प्रारंभ हुआ। इन्द्र ने अपने अप्सरा की सखी थी । ब्राह्मण के शाप के कारण, इसे वज्र से इसे घायल किया, एवं वह जटायु का पीछा ग्राहयोनि में जन्म प्राप्त हुआ था। अर्जन ने 'नारी- | करने लगा। अन्त में जटायु थक कर नीचे गिरने १०२१
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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