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________________ सनत्कुमार प्राचीन चरित्रकोश सनत्कुमार १६), ५. विभिन्न ऋषिसमुदाय--भगवत्स्वरूप (म. शां. शंकराचार्य आदि आचार्यों ने इस पर स्वतंत्र भाष्य की परि. १.२०); विश्वावसु गंधर्व--आत्मज्ञान (म. शां. भी रचना की है। ३०६.५९-६१); ७. पृतराष्ट्र-धर्मज्ञान (म. उ. पृथ्वी पर अवतार--कृष्णपुत्र प्रद्यन्न इसका ही ४२-४५); ८. ऐल--श्राद्ध (विष्णु. ३.१४.११)। - अवतार माना जाता है (म. आ. ६१.९१)। प्रद्युम्न की - सात्वत धर्म का उपदेश--सात्वत धर्म की आचार्य- मृत्यु होने पर, वह इस के ही स्वरूप में विलीन हुआ परंपरा में सनत्कुमार एक सर्वश्रेष्ठ आचार्य माना जाता | (म. स्व. ५.११)। है। इस धर्म का ज्ञान सर्वप्रथम ब्रह्मा ने इसे प्रदान तत्त्वज्ञान--नारद को उपदेशप्रदान करनेवाला सनकिया, जो आगे चल कर इसने वीरण प्रजापति को दे दिया त्कुमार एक श्रेष्ठ उपनिषद्कालीन तत्त्वज्ञ माना जाता है। (म. शां. ३३६.३७)। इसका समग्र तत्त्वज्ञान इस के द्वारा नारद को दिये गये आगे चल कर सनत्कुमार का यही उपदेश नारद ने उपदेश में प्राप्त है, जो छांदोग्योपनिषद में ग्रथित किया शुक को प्रदान किया, जिसका सार निम्नप्रकार बताया गया है। अपने उस उपदेश में इसने 'आध्यात्मिक सुखगया है :-- वाद' का प्रतिपादन किया है। इस तत्त्वज्ञान के अनुसार, नास्ति विद्यासमं चक्षु नास्ति सत्यसमं तपः । आध्यात्मिक सुख प्राप्ति के लिए मनुष्य कर्म करता है, नास्ति रागसमं दुःखं नास्ति त्यागसमं सुखम् ॥ जिससे आगे चल कर श्रद्धा निर्माण होती है। इसी श्रद्धा से ज्ञान की प्राप्ति होती है, जो आगे चल कर आत्मज्ञान . (म. शां. ३१६.६)। कराती है। अपने इस तत्त्वज्ञान में, आत्मानुभूति की (विद्या के समान श्रेष्ठ नेत्र इस संसार में नहीं है। | नैतिक सोपानपंक्ति सनत्कुमार के द्वारा सुख, कर्म, श्रद्धा, साथ ही साथ, सत्य के समान श्रेष्ठ तप, राग के समान ज्ञान, एवं साक्षात्कार, इस प्रकार बतायी गयी है (छां. उ. बड़ा दुःख, एवं त्याग के समान श्रेष्ठ सुख भी इस संसार ७.१७-२२)। में अन्य कोई नहीं है)। भूमन् ' तत्त्वज्ञान-सनत्कुमार के द्वारा की गयी नारद के द्वारा प्राप्त इस उपदेश के कारण, शुक ने 'भूमन् ' शब्द की मीमांसा इसके तत्त्वज्ञान का एक परंधाम जाने का निश्चय किया, एवं वह आदित्यलोक में महत्त्वपूर्ण भाग मानी जाती है । इस तत्त्वज्ञान के . प्रविष्ट हुआ (शुक वैयासकि देखिये)। अनुसार सृष्टि के हरएक वस्तुमात्र में एक ही परमात्मा · धृतराष्ट्र से उपदेश-महाभारत के 'प्रजागर' नामक | का साक्षात्कार होने की अवस्था को 'भूमन् ' कहा गया उपपर्व में धृतराष्ट्र को सनत्कुमार के द्वारा दिया है । इस साक्षात्कार से मनुष्य को अत्युच्च आनंद की • 'तत्त्वोपदेश प्राप्त है, जो 'सनत्सुजातीय' नाम से सुविख्यात प्राप्ति होती है, जिसकी तुलना में स्त्री, भूमि, ऐश्वर्य आदि है। यह उपदेश कृष्ण दौत्य के पूर्वरात्रि में सनत्सुजात के | ऐहिक वस्तुओं से प्राप्त होनेवाला आनंद यःकश्चित् द्वारा दिया गया था (विदुर देखिये)। प्रतीत होता है (छां. उ. ७.२३-२४)। . उस उपदेश में मानवीय आयुष्य की मृत्यु को इसने सनकुमार के अनुसार, साधक को जब आत्मज्ञान भ्रममूलक बता कर, मनुष्य की सही मृत्यु उसके द्वारा की प्राप्ति होती है (सोऽई आत्मा), उस समय उसे किये गथे प्रमादों में है, ऐसा कथन किया है। इन प्रमादों | 'भूमन् ' तत्त्व का संपूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है (छां. उ. से बचने के लिए, मौनादि साधनों का उपयोग करने का. ७.२५)। इस प्रकार, आत्मा ही इस सृष्टी के उत्पत्ति का एवं क्रोधादि दोषों को दूर रखने का उपदेश इसने धृतराष्ट | कारण है, एवं इसी आत्मा से मानवीय आशा एवं स्मृति को दिया। क्रोधादि दोषों का त्याग करने से, एवं मौनादि निर्माण होती है। इसी आत्मा से सृष्टि के हरएक वस्तु गुणों का संग्रह करने से, मनुष्य न केवल प्रमादों से दूर का विकास होता है, एवं विनाश के पश्चात् सृष्टि की रहता है, किन्तु उसे ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति भी होती है, | हरएक वस्तु इसी आत्मा में ही विलीन होती है, ऐसा ऐसा अपना अभिमत इसने स्पष्टरूप से कथन किया है सनत्कुमार का अभिमत था। (म. उ. ४२-४५)। __ ग्रंथ-इसके नाम पर निम्नलिखित ग्रंथ एवं आख्यान __ महाभारत में प्राप्त यह 'सनत्सुजातीय' उपदेश भगवद्- प्राप्त हैं:-- १. सनत्कुमार उपपुराण ( कूर्म. पूर्व. १. गीता के समान ही महत्त्वपूर्ण माना जाता है। आद्य | १७); २, सनत्सुजातीय आख्यान (म. उ. ४२-४५, प्रा. च. १२८] १०१७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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