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सत्याषाढ
प्राचीन चरित्रकोश
सत्राजित्
पाढ था. फिर भी यह हिरण्य के शिन् नाम से ही सुवि- श्रीकृष्ण पर चोरी का दोषारोप--बहुत समय तक ख्यात था (हिरण्यकेशिन् देखिये)।
प्रसेन के वापस न आने पर, इसके मन में संशय उत्पन्न सत्येयु--( सो. पूरु.) एक पूरुवंशीय राजा, जो हुआ कि, श्रीकृष्ण के द्वारा ही प्रसेन का वध हुआ है, एवं रुद्राश्व एवं मिश्रकेशी अप्सरा का पुत्र था (म. आ. ८९. | यह क्रूरकर्म करने में उसका हेतु स्यमंतक मणि की प्राप्ति १०)।
के सिवा और कुछ नहीं है । इस कारण प्रसेन का खूनी सत्येष गर्त-त्रिगर्तराज सुशर्मन् का एक भाई, | एवं स्यमंतक मणि के अपहर्ता के नाते, यह श्रीकृष्ण पर जो भारतीय युद्ध में अर्जुन के द्वारा मारा गया (म. श. | प्रकट रूप में दोषारोप करने लगा। इस कारण यादव २६.२९)।
राजसमूह में श्रीकृष्ण की काफी वेइज्जती होने लगी। सत्राजित् अथवा सत्राजित-(सो. वृष्णि.) एक स्यमंतक मणि की खोज--इस कारण श्रीकृष्ण ने सुविख्यात यादव राजा, जो निम्न राजा का पुत्र था (भा. उपयुक्त दोषारोप से छुटकारा पाने के लिए, स्यमंतक ९.२४) । ब्रह्मांड एवं विष्णु में इसे विघ्न राजा का पुत्र | मणि की खोज़ शुरु की। खोजते खोजते कृष्ण जांबवत कहा गया है । विष्णु, ५.१३.१०, ब्रह्मांड. ३.७१.२१)।। की गुफा में पहुँच गया, जहाँ जांबवत् से अबाईस दिनों इसे शक्तिसेन नामांतर भी प्राप्त था (मत्स्य. ४५.३; तक युद्ध कर उसे परास्त किया, एवं उससे स्यमंतक मणि पद्म. सृ. १३)। इसके जुड़वे भाई का नाम प्रसेन था पुनः प्राप्त किया। पश्चात् कृष्ण ने वह मणि इसे वापस (भा. ९.२४.१३)। सत्यभामा के पिता, एवं स्यमंतक | दिया, एवं उसकी चोरी के संबंध में सारी घटनाएँ इससे. मणि के स्वामी के नाते यादव वंश के इतिहास में इसका | कह सुनायीं। नाम अत्यधिक प्रसिद्ध था।
कृष्ण सत्यभामा विवाह---स्यमंतक मणि के संबंध में पूर्वजन्म-पूर्वजन्म में यह मायापुरी में रहनेवाला सत्य हकीकत ज्ञात होते ही, इसने कृष्ण से क्षमा माँगी, . देवशर्मन नामक ब्राह्मण था, एवं इसकी कन्या का नाम एवं अपनी कन्या सत्यभामा का उससे विवाह कर दिया। गणवती था, जो इस जन्म में इसकी सत्यभामा नामक विवाह के समय, इसने कृष्ण को वरदक्षिणा के रूप में कन्या बनी थी।
स्यमंतक मणि देना चाहा, किंतु श्रीकृष्ण ने उसे लेने से स्यमंतक मणि की प्राप्ति--सूर्य के प्रसाद से इसे
इन्कार किया, एवं उसे इसके पास ही रख दिया। . स्यमंतक नामक एक अत्यंत तेजस्वी मणि प्राप्त हुई थी वध-आगे चल कर, कृष्ण जब हस्तिनापुर में पांडवों (भा. १०.५५.३)। इस मणि में रोगनाशक एवं समृद्धि से मिलने गया था, यही सुअवसर समझ कर, अक्रर एवं वर्धक अनेकानेक देवी गुण थे। यही नहीं, यह मणि प्रति- |
ली थे। यही नहीं यह मणि प्रति कृतवर्मन् आदि यादव राजाओं ने इसका वध करने का दिन आठ भार वर्ण देती थी। यह मणि सूर्य के षड्यंत्र रचा । ये दोनों यादव राजा सत्यभामा से विवाह समान तेजस्वी थी, एवं इसे धारण करनेवाला व्यक्ति करना चाहते थे, एवं उन्हें टाल कर कृष्ण को जमाई साक्षात् सूर्य ही प्रतीत होता था।
| बनानेवाले सत्राजित् से अत्यधिक रुष्ट थे। एक बार कृष्ण ने इसके पास स्यमंतक मणि देखा, इसी कारण उन्होंने शतधन्वन् नामक अपने कनिष्ठ जिसे देख कर उसने चाहा कि, मथुरा के राजा उग्रसेन भाई को इसका वध कर, स्यमंतक मणि की चोरी करने के पास यह मणि रहे तो अच्छा होगा। इस हेतु कृष्ण स्वयं | की आज्ञा दी। तदनुसार शतधन्वन् ने इसका निद्रित इसके प्रासाद में आया, एवं किसी भी शर्त पर यह मणि अवस्था में ही वध किया, एवं स्यमंतक मणि चुरा लिया उग्रसेन राजा को देने के लिए इससे प्रार्थना की। किन्तु (भा. १०.५७.५)। अपने मृत्यु के पश्चात, सूर्योपासना इसने कृष्ण इस माँग को साफ इन्कार कर दिया। के पुण्य के कारण इसे मुक्ति प्राप्त हुई (भवि. ब्राहा.
तदुपरांत एक दिन इसका भाई प्रसेन स्यमंतक मणि ११६-११७)। अपने पिता के निर्धण वध की वार्ता गले में पहन कर शिकार करने गया । वहाँ एक सिंह ने | सत्यभामा ने श्रीकृष्ण से कथन की, एवं किसी भी प्रकार उसका वध किया, एवं वह दैवी मणि ले कर अपनी गुहा शतधन्वन् का वध करने की इसे प्रार्थना की। की ओर जाने लगा। इतने में जांबवत् नामक राक्षस ने ___ शतधन्वन् का वध-पश्चात् शतधन्वन् का पीछा मणि की प्राप्ति की इच्छा से उस सिंह का वध किया, करता श्रीकृष्ण आनर्त देश पहुँच गया। यह ज्ञात होते एवं वह मणि छीन लिया।
ही शतधन्वन् ने स्यमंतक मणि अकर के पास दिया, २०१४