SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1027
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सती प्राचीन चरित्रकोश संजय के मन में सोची हुई बातें इसे ज्ञात होने लगीं। इसी | एक बार बन में लग गये दावानल में धृतराष्ट्र फँस वरदान के साथ साथ, युद्ध में अवध्य एवं अजेय गया। उस समय उसे बचाने की कोशिश इसने की, किंतु रहने का, एवं अत्यधिक परिश्रम करने पर भी थकान | इसके सारे प्रयत्न असफल होने पर, इसने धृतराष्ट्र से प्रतीत न होने का आशीर्वाद भी व्यास के द्वारा इसे | अपना कर्तव्य पूछा । उस समय धृतराष्ट्र ने इससे कहा, प्राप्त हुआ था (म. भी. १६.८-९)। 'मेरे जैसे वानप्रस्थियों के लिए यह मृत्यु अनिष्टयुद्ध-कथन--इसने धृतराष्ट्र से भारतीय युद्ध का जो कारी नहीं है, बल्कि उत्तम ही है । तुम जैसे गृहस्थ धर्मियों वर्णन सुनाया, वह युद्धक्षेत्रीय वृत्तनिवेदन का एक के लिए इस प्रकार आत्मघात करना उचित नहीं है, अतः आदर्श रुप माना जा सकता हैं । कौन वीर किससे लड़ मेरी यही इच्छा है, कि तुम यहा से भाग जाओं'। रहा है, कौन से वाहन पर वह सवार है, एवं कौन से | धृतराष्ट्र के कथनानुसार यह दावानल से निकल पड़ा। अस्त्रों का प्रयोग वह कर रहा है, इन सारी घटनाओं पश्चात् धृतराष्ट्र, गांधारी एवं कुन्ती के साथ भस्म हुआ। की समग्र जानकारी संजय के वृत्तनिवेदन में पायी पश्चात इसने गंगातट पर रहनेवाले तपस्वियों को धृतराष्ट्र जाती है। के दग्ध होने का समाचार सुनाया, एवं यह हिमालय संजय के वृत्ता निवेदनकौशल्य की चरम सीमा इसके की ओर चला गया (म. आश्व. ४५.३३)। 'भगवद्गीता निवेदन' में दिखाई देती है, जहाँ श्रीकृष्ण का सारा तत्त्वज्ञान ही नहीं, बल्कि उसके हावभाव, संजाति--पूरुवंशीय संयाति राजा का नामांतर मुखमुद्रा भी प्रत्यक्ष की भाँति पाठकों के सामने खड़ी हो (संयाति ३. देखिये)। जाती है। . संज्ञा-त्वष्ट की कन्या, जो विवस्वत् की पत्नी थी। युद्ध में उपस्थिति-भारतीय युद्ध में, केवल वृत्त पौराणिक साहित्य के अनुसार, इसे मनु, यम एवं यमी निवेदक के नाते ही नहीं, बल्कि एक योद्धा के नाते नामक संतान उत्पन्न हुई । तत्पश्चात् सूर्य का तेज अधिक भी इसने भाग लिया था । इसने धृष्टद्युम्न पर आक्रमण | काल तक न सह सकने के कारण, इसने छाया नामक अपनी किया था, जिसमें यह उससे परास्त हुआ था। सात्यकि नौकरानी को सूर्य के पास पत्नी के नाते भेज दिया, एवं ने भी इसे एक बार मूछित किया था, एवं जीते जी इसे यह स्वयं तपस्या करने चली गयी (भा. ८.१३.८-९)। • बन्दी बनाया था। आगे चल कर व्यास की कृपा से यह छाया का यम से शनश्चर, मनु सावाण एवं तप सात्यकि के कैदखाने से विमुक्त हुआ था (म. श. २४. नामक तीन संतान उत्पन्न हुए । तीन संतान उत्पन्न होने ५०-५१ )। युद्धभूमि से धृतराष्ट्र को उद्देश्य कर अपने के पश्चात् , यम को छाया का सही रूप ज्ञात हुआ, एवं सारे संदेश दुर्योधन इसीके ही द्वारा भेजा करता था वह संज्ञा को ढूंढने के लिए बाहर निकला । तदुपरान्त (म. श. २८.४८-४९)। | उत्तर कुरु देश के तपोवन में एक अश्वि के रूप में तपस्या - इससे प्रतीत होता है कि, यह युद्धभूमि में स्वयं करनेवाली संज्ञा से उसकी भेंट हुई । उसने अश्व का रूप उपस्थित था। संभव है, यह युद्धभूमि की सारी घटनाएँ धारण कर संज्ञा से संभोग किया, जिससे इसे अश्विनी दिन में देख कर, रात्रि के समय धृतराष्ट्र को बताता कुमार एवं रेवन्त नामक और दो पुत्र उत्पन्न हुए (म. रहा हो। आ. ७.३४; अनु. १००.१७-१८)। युद्धोपरान्त--युद्ध समाप्त हो जाने बाद, इसकी दिव्य- विवस्वत् के तेज का आधिक्य सहन न सकने की दृष्टि विनष्ट हुई (म. सौ. ९.५८)। युधिष्ठिर के राज्या- तकरार इसने अपने पिता विश्वकर्मन् से की। इस कारण रोहण के पश्चात् , उसने इस पर राज्य के आयव्यय | विश्वकर्मन् ने विवस्वत् का बहुत सारा तेज शोषण किया. निरीक्षण का कार्य सौंप दिया था (म. शां. ४१.१०)। एवं उसीसे विष्णु का सुदर्शन चक्र, शिव का त्रिशूल, कुबेर वनगमन--अंत में विदुर की सलाह से यह धृतराष्ट्र । का पुष्पक विमान, एवं कार्तिकेय की शक्ति का निर्माण एवं गांधारी के साथ वन में चला गया (भा. १.१३. किया (ब्रह्मांड. २.२४.९०; सवर्णा एवं छाया देखिये)। २८-५७)। यह वन में धृतराष्ट्र की हर प्रकार की सेवा संज्ञेय--(सो. सह.) सोमवंशीय संहत राजा का करता था, एवं उसके साथ विभिन्न विषयों पर वादसंवाद नामान्तर। भी करता था। । सती--अंगिरस ऋषि की पत्नी, जिसने अथर्वन १००५
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy