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________________ श्वेता प्राचीन चरित्रकोश पंडिक श्वेता-कश्यप एवं क्रोधा की कन्या, जिसे श्वेत तीसरे एवं चौथे अध्याय में सांख्य एवं शैव मत का नामक दिग्गज पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ था (म. आ. कथन प्राप्त है । पाँचवें अध्याय के दूसरे मंत्र में कपिल ६०.३४)। यह वानरजाति की भी माता मानी जाती | शब्द की आध्यात्मिक निरुक्ति दी गयी है। छठे अध्याय है, जिनकी वंशावलि विस्तृत रूप में दी गयी है (ब्रह्मांड. में सगुण ईश्वर का वर्णन प्राप्त है, जो सांप्रदाय-निरपेक्ष ३.७.१८०-१८१ वानर देखिये )। होने के कारण अत्यंत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। श्वेताश्व--श्वत नामक शिवावतार का एक शिष्य। श्वैक्न--प्रतीदर्श नामक ऋषि की उपाधि, जिसका श्वेताश्वतर-एक आचार्य, जो श्वेताश्वेतर नामक शब्दशः अर्थ 'विक्नों का राजा' माना जाता है। यह सुविख्यात उपनिषद का रचयिता माना जाता है (श्वेता- दाक्षायण यज्ञ की प्रक्रिया में निपुण था, जिस यज्ञ की श्वतर ६.२१)। इसने स्वायंभूव ऋषि से ब्रह्मविद्या प्राप्त | शिक्षा इसने सुप्लन् साञ्जय नामक आचार्य को दी थी । की थी। इसके नाम की एक कृष्णयजुर्वेदी शाखा भी (श. बा. २.४.४.३)। वेबर के अनुसार, श्चिक्न एवं उपलब्ध है। इसके नाम पर श्वताश्वतर नामक एक ब्राह्मण | संजय लोगों का यह एकत्र निर्देश इन दोनों जातियों के ग्रंथ भी निर्दिष्ट है, जो वर्तमानकाल में केवल नाममात्र ही घनिष्ठ संबंध की ओर संकेत करता है ( इन्डिशे स्टूडियन उपलब्ध है। १.२०९-२१०)। श्वेताश्वतर उपनिषद् --समस्त उपनिषद् वाङ्मय में श्वैत्य--शैव्यपुत्र संजय गजा का पैतृक नाम । पाठश्वेताश्वतर उपनिषद एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है (रुद्र- भेद-'शैब्य' (म. द्रो. परि. १.८.२७४)। शिव देखिये )। ईश्वर समस्त सृष्टि का शास्ता एवं नियंता श्वेत्रेय-एक व्यक्ति, जिसे इंद्र ने जीवित किया था है, यही इस उपनिषद का प्रमुख प्रतिपाद्य विषय है। (ऋ, ६.२६.४) । सायण के अनुसार, 'श्वेत्रेय' शब्द की दर्शनशास्त्रों में से सांख्य एवं वेदान्त दर्शन जब एक ही निरुक्ति 'श्चित्रा के वंशज' की गयी है। लुडविग के शास्त्र माने जाते थे, उस समय इस ग्रंथ की रचना की अनुसार, दशद्य एवं श्वैत्रेय एक ही था, एवं यह कल्स का गयी थी। पुत्र था। गेल्डनर के अनुसार यह श्वित्रा नामक गाय का इस उपनिषद के पहले अध्याय में त्रैमूर्यात्मक अद्वैत पुत्र था, जिसका युद्ध के लिए उपयोग किया जाता था। शैवमत की श्रेष्ठता प्रतिपादन की गयी है। दूसरे अध्याय ऋग्वेद में अन्यंत्र · श्वैत्रेय' शब्द का एक बैल के नाते में योग एवं योगपरिणाम का प्रतिपादन किया गया है। उल्लेख किया गया है। .. षट्पुर--निकुंभ राक्षस का नामांतर, जिसका वध कृष्ण के देहों का कृष्ण ने विनाश किया। कृष्ण के इसी पराक्रम के द्वारा हुआ था। को 'षट् पुर-विनाश' कहा गया है (ह. वं. २.८५-९०)। हरिवंश में प्राप्त 'पट पुर' का आख्यान शिवचरित्र में __षटांकुर-शठ एवं कट नामक राक्षसों का सामूहिक नाम । त्रिपुरदाह से मिलता जुलता प्रतीत होता है। जिस प्रकार त्रिपुर किसी व्यक्ति का नाम न हो कर, असुरों के निवास पंड-एक पुरोहित, जो सर्वसत्र में उपस्थित था (पं. वा. २५.२.५३)। शंडामर्क नामक आचायों में से स्थान का नाम था, उसी प्रकार षट्पुर भी निकुंभ राक्षस के निवासस्थान का नाम था । शंड का ही यह संभवतः नामांतर होगा। निकुंभ राक्षस अनेकानेक रूप धारण कर विभिन्न स्थानों पंडिक-केशिन नामक आचार्य के खंडिक नामक में घूमता था । उनमें से दो स्थानों का एवं वहाँ स्थित निकुंभ प्रतिस्पर्धी का नामांतर (मै. सं. १.४.१२ )।
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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