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________________ श्वेतकेतु प्राचीन चरित्रकोश श्वेतशिख कृत्स्नके ब्रह्मबन्धौ व्याजेज्ञासिपि । ऋषि का औरस पुत्र न हो कर, उसके पत्नी से उसके एक - (पुरोहित के लिए यही चाहिए कि वह ज्ञान से प्रेम शिष्य के द्वारा उत्पन्न हुआ था (म. शां. ३५.२२)। आगे करें, एवं भौतिक सुखों की ज्यादा लालच न करें)। चल कर इसकी माता का एक ब्राह्मण ने हरण किया । उसी धर्मसूत्रों में--आपस्तंब धर्मसूत्र में इसे 'अवर' (श्रेष्ठ कारण, इसने स्त्रियों के लिए पातिव्रत्य का, एवं पुरुषों के आचाय) कहा गया है (आप. ध. १.२.५.४-६)। लिए एकपत्नीव्रत के नियमों का निर्माण किया। अन्य उत्तरकालीन वैदिक साहित्य में इसके अनेकानेक | महाभारत में इसे उद्दालक ऋषि का पुत्र कहा गया निर्देश मिलते हैं। फिर भी इसका सर्वप्रथम निर्देश | है, एवं इसके मामा का नाम अष्टावक्र बताया गया है शतपथ ब्राह्मण में प्राप्त होने के कारण, यह पाणिनि | (म. आ. ११३.२२)। जन्म से ही इस पर सरस्वती का पूर्वकालीन आचार्य माना जाता है। वरद हस्त था (म. व. १३२.१)। कामशास्त्र का प्रणयिता-वात्स्यायन कामसूत्र में प्राप्त ____ जनमेजय के सर्पसत्र का यह सदस्य था, एवं बंदिन निदशों के द्वारा प्रतीत होता है कि, नंदिन के द्वारा नामक आचार्य को इसने वाद-विवाद में परास्त किया विरचित आद्य कामशास्त्र ग्रंथ का इसने संक्षेप कर, उसे था (म. आ. ४८.७; व. १३३ ) । किंतु जनमेजय के ५०० अध्यायों में ग्रथित किया। आगे चल कर श्वतकेतु सर्पसत्र में भाग लेनेवाला श्वेतकेतु कोई उत्तरकालीन आचार्य होगा। के इसी ग्रंथ का बाभ्रव्य पांचाल ने पुनःसंक्षेप किया; एवं उसे सात अधिकरणों में ग्रंथित किया । बाभ्रव्य के इसी परिवार--देवल ऋषि कन्या सुवर्चला इसकी पत्नी ग्रंथ को पुनः एक बार संक्षेप कर, एवं उसमें दत्तकाचार्य | था। इसस उसन पुरुषाथ-साद्ध' पर वादाववाद किया कृत वैशिक,' चारणाचार्य कृत 'साधारण अधिकरण', | था ( म. शां. परि. १.१९.९९-११८)। सुवर्णनाभ कृत 'सांप्रयोगिक,' घोटकमुख कृत 'कन्या- महाभारत में इसका वंशक्रम निम्नप्रकार दिया गया संप्रयुक्त,' गोनर्टिय कृत 'भायाधिकारिक,' गोणिकापुत्र कृत है :--उपवेश--अरुण उद्दालक-श्वतकेतु । उसी ग्रंथ में पारवारिक' एवं कुचमारकृत 'औपनिषदिक' आदि इसे शाकल्य, आसुरि, मधुक, प्राचीनयोग्य एवं सत्यकाम विभिन्न ग्रंथों की सामग्री मिला कर वात्स्यायन ने अपने | ऋषियों का समकालीन कहा गया है । कामसूत्र की रचना की। फिर भी उसके मुख्य आधार- २. लांगलिन् नामक शिवावतार का शिष्य । भूत ग्रंथ श्वेतकेतु एवं बाभ्रव्य पांचाल के द्वारा लिखित श्वेतचक्षु--प्रसूत देवों में से एक । कामशास्त्रविषयक ग्रंथ ही थे। श्वेतपराशर--पराशरकुलोत्पन्न एक उपशाखा। . ब्राह्मण जाति के लिए मद्यपान एवं परस्त्रीगमन वय . श्वेतपर्ण योवनाश्व-एक राजा, जो हस्तिनापुर के ठहराने का महत्त्वपूर्ण सामाजिक सुधार श्वत केतु के पूर्व में स्थित भद्रावती नगरी का राजा था। इसके पास द्वारा ही प्रस्थापित हुई (का. सू. १.१.९)। ब्राह्मणों के एक सुंदर अश्व था, जो युधिष्ठिर के अश्वमेध यज्ञ के लिए, लिए परस्त्रीगमन वय ठहराने में इसका प्रमुख उद्देश्य भीम जीत कर लाया था (जै. अ. १७)। था कि, ब्राहाण लोग अपने स्वभार्या का संरक्षण अधिक श्वेमभद्र--एक गुह्यक यक्ष, जो कुवेर का सेवक था सुयोग्य प्रकार से कर सकें (काः सू. ५.६.४८)। इस प्रकार श्वतकेतु भारतवर्ष का पहला समाजसुधारक | (म. स. १०.१४)। प्रतीत होता है, जिसने समाजकल्याण की दृष्टि रख कर, श्वेतलोहित-श्वेत नामक शिवावतार का एक शिष्य । अनेकानेक नये यम-नियम प्रस्थापित किये । इसीने ही श्वेतवक्त्र-स्कंद का एक सैनिक (म. श ४४.६८)। सर्व प्रथम लैंगिक व्यवहारों में नीतिबंधनों का निर्माण श्वेतवराह--विष्णु के वराह अवतार का नामांतर । किया, एवं सुप्रजा, लैंगिक नीतिमत्ता, परदारागमन निषेध | इसे 'आदिवराह ' नामांतर भी प्राप्त था। आदि के संबंध में नये नये नियम किये, एवं इस प्रकार | श्वेतवाहन-(सो. क्रोष्टु.) एक यादव राजा, जो विवाहसंस्था की नींव मजबूत का। | वायु के अनुसार शूर राजा का पुत्र था (वायु. ९६. महाभारत में--वैवाहिक नीति नियमों का निर्माण करने | १३६ )। मत्स्य में इसे शूर राजा के राजाधिदेव नामक की प्रेरणा इसे किस कारण प्रतीत हुई. इस संबंध में अनेका | भाई का पुत्र कहा गया है (मत्स्य, ४४.७८ )। नेक चमत्कृतिपूर्ण कथा महाभारत में प्राप्त है। यह उद्दालक श्वेतशिख--श्वेत नामक शिवावतार का शिष्य । ९९७
SR No.016121
Book TitleBharatvarshiya Prachin Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Shastri Chitrav
PublisherBharatiya Charitra Kosh Mandal Puna
Publication Year1964
Total Pages1228
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size32 MB
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