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अभिधानचिन्तामणिनाममाला . ४०
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शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ शब्द / लिंग / श्लोक । अर्थ आशंसित पुं ३५० इच्छा करनार आशुग पुं ११०६ पवन आशंसु पुं ३५० इच्छा करनार आशुशुक्षणि पुं १०९७ अग्नि आशङ्का स्त्री ३०१ भय, भयानक रसनो आश्चर्य न. ३०४ आश्चर्य, अद्भुत रसनो स्थायी भाव
स्थायी भाव आशय पुं१३८३ अभिप्राय
आश्मन पुं १०२ (शे. ११) सूर्यनो सारथि, आशयाश पुं ११०० (शि. ९९) अग्नि :
- अरुण आशर पुं १८७ राक्षस
आश्रप पुं ११३ मूलनक्षत्र आशा स्त्री १६६ दिशा
आश्रम (ब.व.) पुं. न. ८०८ ब्रह्मचर्य वगेरे आशा स्त्री ४३० इच्छा
चार आश्रम आशित पुं ३९४ खानार, भक्षण करनार | आश्रम पुं न. १००१ मुनिओनुं स्थान, आश्रम आशित पुं ४२६ तृप्त, धरायेल 'आश्रय' पुं ११३ मूल नक्षत्र आशितङ्गवीन न. ९६४ गायो धराय तेवू | आश्रय पुं ७३५ बळवाननो आशरो लेवो
चरवानुं स्थान __ (राज्यने उपकारी छठ्ठो गुण) आशिर पुं ३९४ (शि. २८) खानार, । | आश्रय पुं ९९१ घर
___ भक्षण करनार | आश्रयाश पुं १०९९ अग्नि आशिर पुं ११०० (शे. १६९) अग्नि आश्रयाश पुं (शि. ९९) ११०० अग्नि आशिस् स्त्री २७२ आशीर्वाद | आश्रव पुं २७८ स्वीकार आशिष् स्त्री १३१५ सर्पनी दाढ आश्रव पुं ४३२ सांभळवामां तत्पर, आज्ञांकित
(ताळवामां रहेली) |'आश्रव' १३७५ कष्ट, दुःख, दोष आशी स्त्री १३१५ (शि. ११६) सर्पनी दाढ | आश्रुत न. १४८९ स्वीकारेलु
__ (ताळवामां रहेली) | आश्व न. १४२० घोडानो समूह आशीविष पुं १३०४ सर्प, साप | आश्वत्थ पुं ८१६ व्रतमां धारण करवा 'आशीविष' पुं १३०४ सर्प, साप
लायक पिपळानो दंड आशु पुं ११६८ डांगरनी एक जात आश्वयुज पुं १५५ आसो मास आशु अ. १५३० जल्दी
आश्विन पुं.१५५ आसो मास (आशु) अ. १४७० जल्दी
आश्विनेय (द्वि.व.) पुं १८१ (शि. १४) आशुग पुं ७७८ बाण
स्वर्गना वैद्यराज