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शब्दमाला . ३०९ शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ वैरशुद्धि स्त्री ८०४ वैरनो बदलो वैहासिक पुं ३३१ विदूषक, मश्करो, वैराट पुं १२०९ गोकळ गाय, इन्द्रगोप
हसावनार वैराट पुं १०६६ (शे. ९४) विराट देशमां | वोटा स्त्री ५३४ दासी
उत्पन्न थयेल हीरो वोरुखान पुं १२४० गुलाबी रंगनो घोडो वैरिन् पुं ७२९ शत्रु
वोलक पुं १०७६ पाणीनी भमरी वैरोट्या स्त्री २४० १६ पैकी
वोल्लाह पुं १२३९ कपिल घोडो - धोळा १३मी विद्यादेवी
केशरा अने पूंछडावाळो घोडो . (वैरोट्या) स्त्री ४५ श्री मल्लिनाथ भगवाननी | वोहित्य पुं ८७६ वहाण शासनदेवी
वौषट् अ. १५३८ देंवोने बलि आपवामां वैवधिक पुं ३६४ भार उपाडनार
वपरातो शब्द वैवर्ण्य न. ३०७ मलिनता (फिक्कुं) व्यंसक पुं ३७७ ठग, धूर्त वैशाख पुं १५३ वैशाख महिनो व्यक्त पुं ३२ भगवान महावीरना वैशाख न. ७७७ बन्ने पग वच्चे वेंतनुं अंतर | - चोथा गणधर
राखी उभा रहे£ ते व्यक्त पुं ३४२ विद्वान, पंडित वैशाख पुं १०२३ मन्थन दंड, रवैयो | व्यक्त न. १४६७ स्पष्ट वैशेषिक पुं ८६२ वैशेषिक . व्यक्ति पुं १५१५ विशेष, भिन्न भिन्न स्वरूप वैश्य पुं ८०७ चार वर्ण पैकी त्रीजो वर्ण | व्यग्र पुं ३६६ व्याकुल, गभरायेलो वैश्य पुं ८६४ वेपारी
व्यङ्ग पुं १३५४ देडको वैश्रवण पुं १८९ कुबेर देव
व्यजन न. ६८७ पंखो, वींझणो वैश्रवणालय पुं ११३२ वड - व्यञ्जक पुं २८२ हाथ वगेरेथी वैश्वानर पुं १०९८ अग्नि
हृदयनो भाव जणाववो ते वैश्वी स्त्री ११३ उत्तराषाढा नक्षत्र व्यञ्जन न: ३९७ घी, शाक, दाळ, कढी वगेरे वैत न. ८३७ होमनी राख.
व्यञ्जन न. ५८३ (शे. १२२) दाढी-मूछ वैष्णव पुं १०५४ (शि. ९२) माक्षिक धातु | व्यतिहार पुं ८७० अदलो बदलो करवो (वैष्णवी) स्त्री २०२ ब्राह्मी वैष्णवी वि. | 'व्यडम्बक' पुं ११५० एरंडो
७ पैकी शंकरनी पांचमी माता | 'व्यडम्बन' पुं ११५० एरंडो वैसारिण पुं १३४३ मच्छ, माछखें | व्यत्यय पुं १५०२ विपरीत, उल्टुं