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" अभिधानचिन्तामणिनाममाला • २८४ - 7 शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ (वग्रह) पुं १६६ वरसादनो अंतराय 'वञ्चक' पुं १२९० शियाळ. (वग्राह) पुं १६६ वरसादनो अंतराय वञ्चति पुं. ११०० (शे. १७०) अग्नि वक्रि स्त्री ६२७ पडखानी पांसळी वञ्चन न. ३७९ ठगवं, छेतरवू वक्षण पुं६१३ मूत्राशयनी नीचे साथलनी | वञ्चित पुं ४४२ ठगायेलो ।
सन्धिनो भाग 'वञ्चुक' पुं १२९० शियाळ वङ्ग पुं ९५७ बंगाल देश
वझुल पुं ११३७ नेतर वङ्ग न. १०४२ कलई, सीसु. 'वझुल' पुं ११३५ अशोक वृक्ष वङ्ग न. १०४३ (शे. १६२) रूपुं 'वझुल' पुं ११४२ तणछ वङ्गशुल्वज न. १०४९ कांसु | वझूला स्त्री १२६९ घणा दूधवाळी गाय वङ्गारि पुं १०५९ हरताल
वट त्रि. ११३२ वडनुं झाड वचन न. २४१ वाणी, वचन वटक पुं न. ४०० खाद्य वस्तु, वडा वचनीयता स्त्री २७० लोकापवाद . वटवासिन् पुं १९४ यक्ष . वचस् न. २४१ वाणी, वचन वटारक पुं ९२८ दोरी, दोरडुं वज पुं ३४ दशमा दशपूर्वी
वटिका स्त्री ४०० (शे. ९७) वडी वज्र पुं ४८ श्री धर्मनाथ भगवान, लांछन | वटी स्त्री ९२८ दोरी, दोरडं वज्र पुं न. १८० वज्र, इन्द्रनुं शस्त्र वटु पुं ८१३ जनोई धारण करनार बालक, वज्र न. १०६५ हीरो
बटुक वज पुं ११४० थोर
वटूकरण न. ८१४ जनोई संस्कार वज्रकङ्कट पुं ७०५ हनुमान
वडवा स्त्री १२३३ घोडी वज्रतुण्ड पुं २३१ गरुड पक्षी | वडवा स्त्री ५३४ (शे. ११४) दासी वज्रदक्षिण पुं १७४ (शे. ३३) इन्द्र (वडवाग्नि) पुं १८ (प.) वडवानल, वज्रदशन पुं १३०० उंदर
समुद्रनो अग्नि वज्रशृङ्खला स्त्री २३९ सोळ विद्या देवीओ | (वडवानल) पुं. १८ (प.) वडवानल, पैकी त्रीजी देवी
• समुद्रनो अग्नि वजिजित् पुं २३१ गरुड पक्षी | 'वडवानल' पुं ११०० वडवानल वजिन् पुं १७१ इन्द्र
| वडवामुखं पुं ११०० वडवानल, वञ्चक पुं ३७६ ठग, धूर्त, धूतारो
समुद्रनो अग्नि