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४ अभिधानचिन्तामणिनाममाला • २६८ शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ शब्द / लिंग / श्लोक / अर्थ यूथनाथ पुं १२२० टोळानो नायक योगेष्ठ न. १०४१ सीसुं यूथपति पुं १२२० टोळानो नायक योग्य न. ४०४ (शे. ९९) तरत दोहेलुं दूध यूथिका स्त्री ११४८ जूई
योग्या स्त्री ७८८ शस्त्र कलानो अभ्यास यूप पुं ८२४ यज्ञनो खीलो
योग्यारथ पुं ७५२ शस्त्राभ्यास माटेनो रथ यूपकटक पुं ८२५ यज्ञनी समाप्ति सूचवनार | योजन न. ८८८ चार गाउ प्रमाण
थांभलाने माथे नाखेलुं लाकडा, कडुं| योजनगन्धा स्त्री ८४८ व्यासनी माता, यूपकर्ण पुं ८२५ घीथी चोपडेलो यज्ञ
. सत्यवती . स्तंभनो एक भाग योत्र न. ८९३ जोतरु यूपाग्रभाग पुं ८२५ यूपनो अग्रभाग योद्धं पुं ७६३ सुभट, लडवैयोयूष पुं ४०४ मग वगेरेनुं ओसामण योध पुं ७६३ सुभट, लड़वैयो येन अ. १५३७ (शि. १३८) हेतु, जे वडे | योनल पुं ११७८ जुवार योकत्र न. ८९३ जोतरुं
योनि पुं ६(प.) आ शब्द लगाडवाथी योग पुं७६ मुनिनुं धन, तप योग शम वगेरे जन्यवाचक शब्द बने छे. जेम के आत्मयोनि योग पुं ७७ मोक्षनो उपाय
योनि स्त्री ६०९ स्त्री- चिह्न (ज्ञान, श्रद्धा, चारित्र) योनि पुं स्त्री १५१३ हेतु, मुख्य कारण योग पुं ८५ यम वगेरे आठ अंगवाळो योग, | योनिदेवता स्त्री १११ पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र चित्तवृत्ति निरोध
योषा स्त्री ५०४ स्त्री, नारी योगनिद्रालु पुं २१९ (शे. ६९) विष्णु, योषित् स्त्री ५०४ स्त्री, नारी
योषिता स्त्री ५०४ (शि. ३९) स्त्री, नारी योगवाहिन स्त्री ९४५ साजी
यौग पुं ८६२ नैयायिक योगिन् पुं २०० (शे. ४६) शंकर यौतक न. ५२० लग्न वगेरे प्रसंगे योगिन् पुं २३५ (शे. ८१) बुद्ध
करातो चांल्लो योगिन् पुं ७१० (शे. १३९) अर्जुन | 'यौतव' न. ८८३ माप, वजन (योगिन्) पुं ७६ मुनि
यौवत न. १४१५ युवतीओनो समूह योगिनी स्त्री २०५ (शे. ५३) पार्वती यौवन न. ३३९ जुवानी योगीश पुं ८५१ (शि. ७४) याज्ञवल्क्य | यौवनिका स्त्री ३३९ (शि. २१) जुवानी योगेश पुं ८५१ याज्ञवल्क्य । | यौवनोभेद पुं२२८ (शे. ७८) कामदेव
नारायण