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अहस्य
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आक्रन्दात्
अह्रस्य -VI. iii. 109
(संख्या,वि तथा साय पूर्ववाले) अह्न शब्द को (विकल्प करके अहन् आदेश होता है, ङि प्रत्यय परे रहते)।
आ
आ -I. iv.1
आ-VII. 1.84 (कडारा: कर्मधारये' II. 1. 38 सूत्र) तक (एक सज्ञा (अष्टन अङ्गको विभक्ति परे रहते) आकारादेश हो जाता होती है, यह अधिकार है)। आ-III. ii. 134
आकम् - VII. I. 33 (प्राजभास.' III. ii. 177, इस सूत्र से विहित क्विप) (युष्मद तथा अस्मद अङ्ग से उत्तर साम् के स्थान में) पर्यन्त (जितने प्रत्यय कहे हैं; वे सब तच्छील, तद्धर्म तथा आकम आदेश होता है। तत्साधुकारी कर्ता अर्थों में जानने चाहिए)।
आकर्षात् - IV.iv.9 आ-III. iii. 141
(तृतीयासमर्थ) आकर्ष प्रातिपदिक से (चरति अर्थ में (उताप्योःसमर्थयोलिङIII. iii. 152 से) पहले जितने सूत्र हैं,(उनमें लिनिमित्त होने पर, क्रिया की अतिपत्ति में ष्ठल् प्रत्यय होता है)। भूतकाल में विकल्प से लुङ्प्रत्यय होता है)।
आकर्षादिभ्यः - V. ii. 64 आ-v.i. 19
(सप्तमीसमर्थ) आकर्षादि प्रातिपदिकों से (कुशल'अर्थ (यहाँ से आगे 'अर्हति' अर्थ) पर्यन्त (जितने अर्थ कहे में कन् प्रत्यय होता है)। गये हैं, उन सब अर्थों में सामान्य करके ठक् प्रत्यय होता ..
आकाङ्क्षम् - VIII. ii. 9 है,यह अधिकार है; गोपुच्छ, संख्या तथा परिमाणवाची शब्दों को छोड़कर)।
(अङ्ग शब्द से युक्त ) आकाङ्क्षा रखने वाले (तिङन्त आ - V.i. 120
को भर्त्सना विषय में प्लुत होता है)। यहां से लेकर (ब्रह्मणस्त्व! V.i. 135 पर्यन्त त्व तल . आकाशम् -VIII. ii. 104 प्रत्यय होते है, ऐसा अधिकार जानना चाहिए)।
(वाक्य से क्षिया, आशीः तथा प्रैष गम्यमान हो तो) आ-VI.i.90 .
साकाङ्क्ष (तिङन्त) की (टि को स्वरित प्लुत होता है)। (ओकारान्त से उत्तर अम तथा शस विभक्ति के अच .क्षिया आचारोल्लंघन, आशीः = इष्टाशंसन. परे रहते, पूर्व पर के स्थान में) आकार (एकादेश) होता है. प्रेष = शब्दप्रेरण। (संहिता के विषय में)।
आकालिकट् -V.i. 113 आ...-VI. iii. 34
(एक ही काल में उत्पत्ति एवं विनाश कहना हो तो) देखें- आकृत्वसुच: VI. iii. 34
प्रथमासमर्थ समानकाल शब्द के स्थान में आकाल आदेश
और इकट् प्रत्यय का निपातन होता है। आ-VI. iii. 90
आकिनिन् -v. iii. 52 (सर्वनाम-सज्ञक शब्दों को) आकारादेश होता है;
(अकेला' अर्थ में वर्तमान एक प्रातिपदिक से) आकि(दृक्, दृश् तथा वतुप् परे रहते)।
निच् (तथा कन् प्रत्यय और लुक् भी होते है)। आ... - VI. iv. 22 .
आकृत्वसुच: - VI. iii. 34 देखें - आभात् VI. iv. 22
(तसिलादि प्रत्ययों से लेकर) कृत्वसुच् पर्यन्त कहे गये आ-VI. iv. 117
जो प्रत्यय,उनके परे रहते (ऊवर्जित भाषितपुंस्क स्त्रीशब्द (हि परे रहते.ओहाक अङ्गको विकल्प से) आकारादेश को पुंवत् हो जाता है)। होता है (तथा इकारादेश भी)।
आक्रन्दात् - IV. iv. 38 ...आ... -VII. .39
(द्वितीयासमर्थ) आक्रन्द प्रातिपदिक से (दौड़ता है' अर्थ देखें-सुलुक VII. 1.39
में ठञ् तथा ठक् प्रत्यय होते है)।