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अव्ययम्
अशनाय
अव्ययम् -II.1.6
अव्ययीभावे-VI. 1. 121 (विभक्ति, समीप, समृद्धि, व्यृद्धि, अर्थाभाव, अत्यय, (उत्तरपद कूल, तीर, तूल,मूल,शाला, अक्ष, सम- इन असम्पति, शब्दप्रादुर्भाव, पश्चात्, यथा, आनुपूर्व्य, योग- शब्दों को) अव्ययीभाव समास में (आधुदात्त होता है)। पद्य,सादृश्य,सम्पत्ति,साकल्य, अन्तवचन- इन अर्थों में विद्यमान) अव्यय पद (समर्थ सुबन्त के साथ समास को
अव्ययीभावे-VI. iii. 80 प्राप्त होता है और वह अव्ययीभाव समास होता है)। अव्ययाभाव समास म(भा अकालवाचा शब्दी के उत्तअव्ययसर्वनाम्नाम् - V. iii. 71
रपद रहते सह को स आदेश होता है)। । अव्यय तथा सर्वनामवाची प्रातिपदिकों (एवं तिङन्तों) अव्यये-III. iv. 59 से (इवार्थ से पहले पहले अकच प्रत्यय होता है और वह (इष्ट का कथन जैसा होना चाहिये वैसान होना गम्यमान टि से पूर्व होता है)।
हो तो) अव्यय शब्द उपपद रहते (कृञ् धातु से क्त्वा अव्ययात् -II. iv.82
और णमुल् प्रत्यय होते है)। अव्यय के उत्तर (आप और सुप प्रत्ययों का लुक होता अव्ययेन-II. 1. 20
(अव्यय के साथ उपपद का यदि समास हो तो वह अव्ययात् -IV. ii. 103
अमन्त) अव्यय के साथ (ही हो, अन्यों के साथ नहीं)। .. अव्यय प्रातिपदिकों से (शैषिक त्यप् प्रत्यय होता है)। ...अव्ययेभ्यः -IV. 1. 23 ...अव्ययादेः - IV.I. 26
देखें-सायंचिरम् M. II. 23 देखें-संख्याव्ययादेःV.1.26
अव्यात्... -VI. 1. 112 ...अव्ययादेः-v.iv.86
देखें-अव्यादवद्यात्. VI. 1. 112 देखें-संख्याव्ययादेः V.iv.86
अव्यादवद्यादवक्रमुखतायमवन्त्ववस्युषु-VI. 1. 112 अव्ययासन्नादूराधिकसङ्ख्याः - II. ii. 25
अव्यात्, अवद्यात्, अवक्रम, अव्रत, अयम्, अवन्तु, (सङ्ख्येय में वर्तमान सङ्ख्या के साथ) अव्यय,आसन्न, अवस्यु- इन शब्दों में (वर्तमान अकार के परे रहते पाद अदर.अधिक तथा सङ्ख्या (विकल्प से समास को प्राप्त . के मध्य में जो एङ उसको भी प्रकतिभाव हो जाता है)। होते है,और वह समास बहुव्रीहि सजक होता है)।
....अव्रत... - VI. 1. 112 . अव्ययीभावः - I.1.40
देखें- अव्यादवद्यात्. VI. 1. 112 अव्ययीभाव समास (भी अव्ययसंज्ञक होता है)।
अश्-II. iv. 32 अव्ययीभावः-II.1.5
(अन्वादेश में वर्तमान इदम् के स्थान में अनुदात्त) अश यहाँ से अव्ययीभाव समास अधिकृत होता है।
आदेश होता है.(ततीया आदि विभक्तियों के परे रहते)। अव्ययीभावः-II. iv. 18
अव्ययीभाव समास (भी नपुंसकलिंग होता है)। अश् -VII.1.27 अव्ययीभावात् -II. iv. 83.
(युष्मद् तथा अस्मत् अङ्ग से उत्तरडस के स्थान में) अश
आदेश होता है। (अदन्त) अव्ययीभाव से उत्तर (सुप् का लुक नहीं होता,
अशक्तौ - VI. ii. 157 अपितु पञ्चमीभिन्न सुप् प्रत्यय के स्थान में 'अम्' आदेश
(न से उत्तर अन्यत्ययान्त तथा अक प्रत्ययान्त उत्तरपद हो जाता है)।
को) सामर्थ्य का अभाव गम्यमान हो तो (अन्तोदात्त होता अव्ययीभावात् -IV. iii. 59 (सप्तमीसमर्थ) अव्ययीभावसंज्ञक प्रातिपदिक से (भी अशते-V.1.21 भवार्थ में व्य प्रत्यय होता है)।
(शत प्रातिपदिक से 'तदर्हति' पर्यन्त कथित अर्थों में ठन् अव्ययीभावे-v.iv. 107
और यत् प्रत्यय होते है), यदि सौ अभिधेय न हो तो। अव्ययीभाव समास में वर्तमान (शरदादि प्रातिपदिकों . से समासान्त टच् प्रत्यय होता है)।
देखें-अशनायोदय VII. iv.34