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अन्यतरस्याम्
अन्यतरस्याम्
अन्यतरस्याम् -III. 1.54 लिप,सिच तथा हे धातुओं से कर्तृवाची लुङ् आत्म- नेपद परे रहने पर ) विकल्प से (च्लि के स्थान में अङ् आदेश होता है)। अन्यतरस्याम् -III. I. 61 (दीप, जन, बुध, पूरि, ताय तथा ओप्यायी धातुओं से उत्तरच्लि के स्थान में चिण् आदेश) विकल्प से (हो जाता है,कर्तृवाची लुङ् त शब्द परे रहते)।
अन्यतरस्याम् -III.1.75 . " (असू धातु से) विकल्प से (श्नु प्रत्यय होता है,कर्तृवाची सार्वधातुक परे रहने पर)। अन्यतरस्याम् -III. I. 122 (अमावस्या शब्द में अमापूर्वक वस् धातु से काल अधिकरण में ण्यत् परे रहते) विकल्प से (वद्धि का निपातन किया गया है)। अन्यतरस्याम् -III. 1.3 (समुच्चीयमान क्रियाओं को कहने वाली धातु से लोट प्रत्यय) विकल्प से होता है और उस लोट् के स्थान में हि
और स्व आदेश होते है,पर त और ध्वम् स्थानी लोट को विकल्प से हि,स्व आदेश होते हैं)। अन्यतरस्याम् -III. iv. 32 (वर्षा का प्रमाण गम्यमान हो तो कर्म उपपद रहते ण्यन्त पूरी धातु से णमुल् प्रत्यय होता है तथा इस पूरी धातु के ऊकार का लोप) विकल्प से (होता है)। अन्यतरस्याम् -IV.1.8 (पादन्त प्रातिपदिक से खीलिंग में) विकल्प से (डीप प्रत्यय होता है)। अन्यतरस्याम् - IV.i. 13 (दोनों से अर्थात् ऊपर कहे गये मनन्त प्रातिपदिकों से तथा बहुव्रीहि समास में जो अन्नन्त प्रातिपदिक उनसे) विकल्प से (डाप् प्रत्यय होता है)। अन्यतरस्याम् -IV.i. 24 (प्रमाण अर्थ में वर्तमान जो पुरुष शब्द,तदन्त अनुपसर्जन द्विगुसंज्ञक प्रातिपदिक से तद्धित का लुक् होने पर स्त्रीलिङ्ग में) विकल्प से (डीप् प्रत्यय नहीं होता है)। अन्यतरस्याम् - IV.1.28
(अनन्त जो उपधालोपी बहुव्रीहिसमास, उससे स्त्रीलिङ्ग में) विकल्प से (डीप् प्रत्यय होता है)।
अन्यतरस्याम् - V.I.81 (दैवयज्ञि आदि शब्दों से स्त्रीलिङ्ग में ष्यङ् प्रत्यय) विकल्प से (होता है)। अन्यतरस्याम् - IV. 1.91 (प्राग्दीव्यतीय अजादि प्रत्यय की विवक्षा में युवापत्य फक् और फिञ् का) विकल्प से (लुक् होता है)। . अन्यतरस्याम् -IV.i. 103
(षष्ठीसमर्थ द्रोणादि प्रातिपदिकों से गोत्रापत्य में) विकल्प से (फक् प्रत्यय होता है)। अन्यतरस्याम् - IV. 1. 140 (अविद्यमानपूर्वपद वाले कुल शब्द से) विकल्प से (यत् और ढकञ् प्रत्यय होते हैं, पक्ष में ख)। अन्यतरस्याम् - IV. 1. 159
. (गोत्र से भिन्न वृद्धसंज्ञक पुत्रान्त प्रातिपदिक से पूर्वसूत्र से विहित जो फिञ् प्रत्यय, उसके परे रहने पर) विकल्प से (कुक प्रत्यय होता है)। अन्यतरस्याम् - IV. ii. 18 (सप्तमीसमर्थ उदश्चित् प्रातिपदिक से 'संस्कृतं भक्षाः' । अर्थ में) विकल्प से (ठक प्रत्यय होता है, पक्ष में अण)। अन्यतरस्याम् - IV. ii. 47 . (षष्ठीसमर्थ केश तथा अश्व प्रातिपदिकों से समूहार्थ में यथासङख्य) विकल्प से (यजु तथा छ प्रत्यय होते है, पक्ष में ठक्)। अन्यतरस्याम् - IV. ii. 104
(ऐषमस्, ह्यस् तथा श्वस् प्रातिपदिकों से) विकल्प से (त्यप् प्रत्यय होता है)। अन्यतरस्याम् - IV. iii.1
(युष्मद् तथा अस्मद् शब्दों से खजू तथा चकार से छ प्रत्यय) विकल्प से होते है,पक्ष में औत्सर्गिक अण होता
अन्यतरस्याम् - IV. iii. 46 (सप्तमीसमर्थ ग्रीष्म तथा वसन्त कालवाची प्रातिपदिकों से 'बोध हुआ' अर्थ में वुञ् प्रत्यय) विकल्प से होता है)। अन्यतरस्याम् - IV. iii. 64 (सप्तमीसमर्थ वर्गान्त प्रातिपदिक से अशब्द प्रत्ययार्थ अभिधेय होने पर भव अर्थ में) विकल्प से (यत् तथा ख. प्रत्यय होते है)।