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सवतिगृणोतिद्रवतिप्रवतिप्लवतिव्यवतीनाम्
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स्वपि..
स्ववतिशृणोतिद्रवतिप्रवतिप्लवतिव्यवतीनाम् - VII. स्वतवान्- VIII. iii. 11 iv.81
स्वतवान् शब्द के (नकार को रु होता है,पायु शब्द परे स्नु, थ, द्रु,गुङ, प्लुङ, च्युङ्-इनके (अवर्णपरक यण रहते)। परे है जिससे, ऐसे होने वाले उवर्णान्त अभ्यास को।
...स्वदि...- VIII. iii. 62 विकल्प से इकारादेश होता है)।
देखें-स्विदिस्वदिO VIII. iii. 62 ...स्रंसु... -VII. iv.84
...स्वचा..-II. iii. 16 देखें-कलंसु० VII. iv.84
देखें-नम:स्वस्तिस्वाहा. II.ili. 16 ..स्वंसु... - VIII. ii. 72
स्वन... -III. iii.62 देखें- वसुलंसुo VIII. 1.72
देखें-स्वनहसोः III. iii.62 ...त्रिवि.. -VI. iv.20
...स्वनः-III. iii. 64 देखें-ज्वरत्वरVI. iv. 20
देखें-गदनदO III. ili.64 ......-VII. 1. 13
स्वनः-VIII. iii.69 देखें-कसVII. 1. 13
(वि उपसर्ग से उत्तर तथा चकार से अव उपसर्ग से ...सुभ्य-I. 11.86
उत्तर भोजन अर्थ में) स्वन् धातु के (सकार को मूर्धन्य देखें- बुधयुधनशजने I. iii. 86
आदेश होता है, अड्व्यवाय एवं अभ्यासव्यवाय में भी)। ...सुभ्यः -III. 1. 48
स्वनहसो:-III. III. 62 देखें-णित्रिनुभ्यः III. 1.48
(उपसर्गरहित) स्वन और हस् धातुओं से (कर्तृभिन्न ...तुक-III. III. 27
कारक संज्ञा तथा भाव में विकल्प से अप् प्रत्यय होता देखें-दुस्तुनुकः III. iii. 27 ...सुव.. -VI. ili. 114 देखें- अविष्टाष्टO VI. iii. 114
स्वमो:-VII.i. 23. स्रोतस- IV. iv. 113
(नपुंसकलिङ्गवाले अङ्ग से उत्तर) सु और अम् का (लुक् (सप्तमीसमर्थ) स्रोतस् प्रातिपदिक से (वेदविषय में भ- होता है)। वार्थ में ड्यत्, ड्य दोनों प्रत्यय विकल्प से होते है)। स्वप-III. M. 91 स्वकरणे-I. 1.56
"जिष्वप् शये' धातु से (भाव में नन् प्रत्यय होता है)। स्वकरण = पाणिग्रहण अर्थ में (वर्तमान उपपर्वक यम
...स्वपते:- Viv. 104 धातु से आत्मनेपद होता है)।
देखें- पथ्यतिथिक्सतिस्वपते: IV. iv. 104 ...स्वाम् -VI. iv. 25
स्वपादि...-VI.1. 182 देखें-दंशस VI. iv. 25
देखें- स्वपादिहिंसाम् VI.i. 182 ...स्वाम-VIII. 1.65 ,
स्वपादिहिंसाम्- VI.i. 182 देखें-सुनोतिसुवतिO VIII. 11.65
स्वपादि धातुओं के तथा हिंस् धातु के (अजादि अनिट ...स्वाम-VIII. Iii.70
लसार्वधातुक परे हो तो विकल्प से आदि को उदात्त हो देखें-सेवसितo VIII. III. 70
जाता है)। स्वतन्त्रः-I.iv.54 क्रिया की सिद्धि में स्वतन्त्र रूप से विवक्षित (कारक
...स्वपि...-1.11.8 की कर्ता संज्ञा होती है)।
देखें-रुदक्दिमुषप्रहिस्वपिप्रच्छ: 1.1.8 ...स्वतवसाम्-VII.1.83
स्वपि.. -III. 1. 172 देखें-दक्स्व कo VII.I.83
देखें-स्वपितृवोः III. II. 172