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स्तोम:- VIII. II. 83
(ज्योतिस् तथा आयुस् शब्द से उत्तर) स्तोम शब्द के (सकार को समास में मूर्धन्य आदेश होता है)। ...स्तोमयो:- VIII. II. 105
देखें-स्तुतस्तोमयोः VIII. iii. 105 स्तौति...-VIII. 1.61
देखें-स्तौतिण्यो: VIIJ. II. 61 ...स्तौति...-VIII. ill. 65
देखें-सुनोतिसुवतिः VIII. 1.65 स्तौतियोः - VIII. I.1
(अभ्यास के इण से उत्तर) स्तु तथा ण्यन्त धातुओं के (आदेश सकार को ही षत्वभूत सन् परे रहते मूर्धन्य आदेश होता है)। स्त्यः - VI. . 23 (प्र-पूर्ववाले) स्त्यै धातु को (निष्ठा परे रहते सम्प्रसारण
हो जाता है)।
स्तुकः -III. ii. 31
(यज्ञविषय में सम्पूर्वक) स्तु धातु से (कर्तृभिन्न कारक संज्ञा विषय में घञ् प्रत्यय होता है)। स्तुसुधूश्य-VII. 1.71
टुज, षुब् तथा धूज् धातु से उत्तर (परस्मैपद परे रहते सिच् को इट् का आगम होता है)। ...स्तृ...- VII. iv.95
देखें- स्मदत्वरo VII. iv.95 स्तेनात्...-v.i. 124 .
(षष्ठीसमर्थ) स्तेन प्रातिपदिक से (भाव और कर्म अर्थ में यत् प्रत्यय होता है तथा स्तेन शब्द के न का लोप भी हो जाता है)। स्तो:- VIII. iv. 39 . (शकार और चवर्ग के योग में) सकार और तवर्ग के स्थान में (शकार और चवर्ग आदेश होते है)। स्तोक...-II.i. 38
देखें- स्तोकान्तिकदूरार्थ. II. 1. 38 ...स्तोक...-II.1.64
देखें-पोटायुवतिस्तोक II.1.64 स्तोक... - II. iii. 33
देखें-स्तोकाल्पकृच्छ्र II. iii. 33 . स्तोकादिभ्यः-VI. iii. 23
स्तोकादियों से उत्तर (पञ्चमी विभक्ति का उत्तरपट परे · रहते अलुक् होता है)।
स्तोकान्तिकदूरार्धकृच्छ्राणि-II. 1. 38 ' स्तोक = अल्प,अन्तिक = निकट तथा दूर अर्थ वाले (पञ्चम्यन्त सुबन्त) तथा कृच्छू-ये (पञ्चम्यन्त सुबन्त) शब्द (समर्थ क्तान्त सुबन्त के साथ विकल्प से समास को प्राप्त होते हैं और वह तत्पुरुष समास होता है)। स्तोकाल्पकृच्छ्रकतिपयस्य-II. iii. 33
(असत्ववाची) स्तोक, अल्प, कृच्छू, कतिपय -इन । शब्दों से (करण कारक में तृतीया और पञ्चमी विभक्ति होती है)। . ...स्तोपति.-VIII. iii. 65 • देखें-सुनोतिसुवतिO VIII. iii. 65 ...स्तोम...- VIII. I.82 ' देखें- स्तुत्स्तोमसोमः VIII. 1. 82
स्व-III. iii. 32 (प्र-पूर्वक) स्तृञ् आच्छादने धातु से (यज्ञविषय को छोड़कर कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। खिया-I. ii. 67
(पॅल्लिङ्ग शब्द) स्त्रीलिङ्ग शब्द के साथ (शेष रह जाता है, स्त्रीलिङ्ग शब्द हट जाता है, यदि उन शब्दों में स्त्रीत्व पुंस्त्वकृत ही विशेष हो, अन्य प्रकृति आदि सब समान ही हों)। खिया:-VI. iii. 33
(एक ही अर्थ में अर्थात् एक ही प्रवृत्तिनिमित्त को लेकर भाषित = कहा है पुंल्लिङ्ग अर्थ को जिस शब्द ने, ऐसे ऊवर्जित भाषितपुंस्क) स्त्री शब्द के स्थान में (पुल्लिङ्गवाची शब्द के समान रूप हो जाता है,पूरणी तथा प्रियादिवर्जित स्त्रीलिङ्ग समानाधिकरण परे हो तो)। खियाः-VI. iv.79
स्वी शब्द को (अजादि प्रत्यय परे रहते इयङ् आदेश होता है)। खियाम् -III. iii. 43
(क्रिया का अदल-बदल गम्यमान हो तो) स्त्रीलिङ्ग में (धातु से कर्तृभिन्न कारक संज्ञाविषय तथा भाव में णच प्रत्यय होता है)।