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अन्तपादम्
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अन्तिकार्येभ्यः
अन्त -I. iv. 28
व्यवधान के कारण जिससे अपना छिपना चाहता हो, उस कारक की अपादान संज्ञा होती है)। अन्तौं -I. iv. 60 व्यवधान अर्थ में तिरः शब्द की क्रिया के योग में गति और निपात संज्ञा होती है)। अन्तर्बहिर्म्याम् - Viv. 117
अन्तर् तथा बहिस् शब्दों से उत्तर (भी जो लोमन् शब्द, तदन्त बहुव्रीहि से समासान्त अप प्रत्यय होता है)। अन्तर्वत्... -IV.I. 32
देखें- अन्तर्वत्पतिवतो: IV. 1. 32 अन्तर्वत्पतिवतो: - V.1.32 ___ अन्तर्वत और पतिवत शब्दों से (स्त्रीलिंग में डीप प्रत्यय होता है तथा उसके सन्नियोग से नुक आगम भी हो जाता
अन्तःपादम् -VI.i. 111
पाद के मध्य में वर्तमान (अकार के परे रहते एक को प्रकृतिभाव हो जाता है)। अन्तपादम् -VIII. iii. 103
(इण तथा कवर्ग से उत्तर सकार को तकारादि युष्मद, तत् तथा ततक्षुस् परे रहते मूर्धन्यादेश होता है, यदि वह सकार) पाद के मध्य में वर्तमान हो तो । अन्त पूर्वपदात् - IV. iii. 60
अन्तः शब्द पूर्वपद में है जिसके.ऐसे (सप्तमीसमर्थ अव्ययीभावसंज्ञक) प्रातिपदिक से (भवार्थ में ठब प्रत्यय होता है)। अन्तरतमः-I.1.49
(स्थान में प्राप्त होने वाले आदेशों में) सर्वाधिक सादश्य वाला (आदेश होवे)। अन्तरम् - I. 1. 35 (बहियोग = बाह्य तथा उपसंव्यान = वस्त्र गम्यमान होने पर) अन्तर शब्द की (जस सम्बन्धी कार्य में विकल्प करके सर्वनाम संज्ञा होती है)। अन्तरम् -VI. ii. 166 (व्यवधायकवाची शब्द से उत्तर) अन्तर शब्द को (बहु- व्रीहि समास में अन्तोदात्त होता है)। ...अन्तरयोः - III. 1. 179
देखें-संज्ञान्तरयोः III. ii. 179 अन्तरा... - II. lil. 4 देखें- अन्तरान्तरेणयुक्ते II. ill. 4 अन्तरान्तरेणयुक्ते - II. II. 4
अन्तरा और अन्तरेणशब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है)। अन्तराले-II. 1. 26
अन्तराल बीच का हिस्सा वाच्य होने पर (दिशा के नामवाची सुबन्तों का परस्पर विकल्प से समास होता है
और वह बहुव्रीहि समास होता है)। ...अन्तरेणयुक्ते - II. II. 4
देखें- अन्तरान्तरेणयुक्ते II. III. 4 अन्तर्धनः-III. 1.78 दिश अभिधेय हो तो कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में) अन्तर्धन शब्द में अन्तर पूर्वक हन् धातु से अप्प्रत्यय तथा हन को घन आदेश निपातन किया जाता है।
...अन्तवचनेषु-II. 1.6
देखें -विभक्तिसमीपसमृद्धि II.1.6 अन्तस्य-VII. 1.2 (अकार के) समीप वाले रेफान्त तथा लकारान्त) अङ्ग के (अकार के स्थान में ही वृद्धि होती है, परस्मैपदपरक सिच के परे रहते)। अन्तात्यन्ताम्वदूरपारसर्वानन्तेषु - III. 1. 48
अन्त, अत्यन्त, अध्व, दूर, पार, सर्व, अनन्त (कमों) के उपपद रहते (गम् धातु से ड प्रत्यय होता है) अन्तादिवत् -VI.1.82
(एक:पूर्वपरयो के अधिकार में जो पूर्व परको एकादेश कहा है,वह एकादेश) पूर्व से कार्य पड़ने पर पूर्व के अन्त के समान माना जाये,तथा पर से कार्य पड़ने परपरके आदि के समान माना जाये। ...अन्तिक... - II. I. 38
देखें-स्तोकान्तिकदार्थ II. 1. 38 अन्तिक... - V. iii. 63
देखें - अन्तिकबाढयो: V. 1.63 अन्तिकबाढयो: - V. iii. 63
अन्तिक तथा बाढ शब्दों को (यथासङ्ख्य करके नेद तथा साध आदेश होते है,अजादि अर्थात् इष्ठन् ईयसुन प्रत्यय क पर रहत)। ..अन्तिकार्येश्य-II. I. 35 देखें-दूरान्तिकाया . 11.35