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सामीप्ये
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साल्यावयवात्यप्रथकलकूटाश्मकात्
सामीप्ये -VI. 1. 23
सार्वधातुके-III. 1. 67 (सविध,सनीड समर्याद,सवेश,सदेश-इन शब्दों के सार्वधातुक प्रत्यय परे रहते (भाव और कर्मवाची धातु उत्तरपद रहते) सामीप्यवाची (तत्पुरुष समास) में (पूर्वपद मात्र से 'यक' प्रत्यय होता है)। को प्रकृतिस्वर होता है)।
सार्वधातुके- VI. iv. 87 सामीप्ये- VIII. I.7
(ह तथा श्नु प्रत्ययान्त अनेकाच अङ्ग का.संयोग पर्व (उपरि अधि, अघस -इन शब्दों को) समीपता अर्थ में नहीं है जिससे.ऐसा जो उवर्ण.उसको अजादि) सार्वकहना हो तो द्वित्व होता है)।
धातुक प्रत्यय परे रहते (यणादेश होता है)। ...साम्न-V.ii. 59
सार्वधातुके-VI. iv. 110 देखें-सूक्तसाम्नः V.ii. 59
(उकार प्रत्ययान्त कृ अङ्ग के स्थान में उकारादेश हो साम्प्रतिके-IV.ili.9 .
जाता है; कित्, डिस्) सार्वधातुक परे रहते। (मध्य शब्द से) साम्प्रतिक अर्थ गम्यमान हो (तो शैषिक
- सार्वधातुके- VII. 1.76 .. अप्रत्यय होता है)।
(रुदादि पाँच धातुओं से उत्तर वलादि) सार्वधातुक को साम्प्रतिक = वर्तमान काल सम्बन्धी उचित ।
(इट् आगम होता है)। सायम्..- IV. iii. 23 देखें- सायंचिरंपाहणे IV. iii. 23
सार्वधातुके-VII. ill. 87 सायंचिरंपाहणेप्रगेऽव्ययेभ्यः- IV. iii. 23
(अभ्यस्तसजक अङ्ग की लघु उपधा इक् को अजादि (कालवाची) सायं चिरं प्राणे प्रगे तथा अव्यय प्राति
पित् सार्वधातुक परे रहते (गुण नहीं होता)। पदिकों से (ट्यु तथा ट्युत् प्रत्यय होते हैं तथा इन प्रत्ययों
सार्वधातुके- VII. it. 95 को तुट का आगम भी होता है)।
(तु, रु,ष्टुञ् शम तथा अम धातुओं से उत्तर हलादि) ...सायपूर्वस्य-VI. iii. 109
सार्वधातुक को (विकल्प से ईट् आगम होता है)। देखें-संख्याविसाय VI. iii. 109
सार्वधातुके- VII. iv. 21 . ....सारथिषु-VI. ii. 41 .
(शीङ् अङ्ग को) सार्वधातुक परे रहते (गुण होता है)। देखें-सादसादिOVI. ii. 41 .
...साल्व...-IV, ii. 75 ...सारव...-VI. iv. 174
देखें-सौवीरसाल्व IV. ii. 75 देखें-दाण्डिनायन VI. iv. 174
साल्वात्-IV.ii. 134 सार्वधातुक...-VII. iii. 84
साल्व शब्द से (अपदाति अर्थात् पैरों से निरन्तर न देखें-सार्वधातुकार्धधातु0 VII. iii. 84
चलने वाला मनुष्य तथा मनुष्यस्थ कर्म अभिधेय हो तो सार्वधातुकम्- I.ii. 4
शैषिक वुञ् प्रत्यय होता है)। (पदभिन्न) सार्वधातुक प्रत्यय (ङित्वत् होते हैं)।
साल्वावयव...- IV.i. 171 सार्वधातुकम्- III. iv. 113
देखें-साल्वावयवप्रत्यय IV.i. 171 ' (धातु से विहित तिङ् तथा शित् प्रत्ययों की) सार्वधातुक
साल्वावयवप्रत्यप्रथकलकूटाश्मकात् - IV.i. 171 संज्ञा होती है।
(क्षत्रियाभिधायी जनपदवाची) साल्व = एक विशेष ..सार्वधातुकयो:- VII. iv. 25 देखें-अकृत्सा
क्षत्रियनाम के अवयववाची तथा प्रत्यपथ, कलकूट एवं VII. iv. 25
अश्मक प्रातिपदिकों से (अपत्य अर्थ में इञ् प्रत्यय होता सार्वधातुकार्धधातुकयो:- VII. iii. 84
है)। सार्वधातुक तथा आर्धधातुक प्रत्यय परे रहते (इगन्त
प्रत्यग्रथ = नया, दुहराया हुआ, विशुद्ध । . अङ्गको गुण होता है)।
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अश्मक प्रति अवयवदानाका साल