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सर्वनाम्नः
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सर्वेषाम्
सर्वनाम्न: - VII. 1.52
....सर्वलोकात्- V.i. 43 (अवर्णान्त) सर्वनाम से उत्तर (आम को सट का आगम देखें-लोकसर्वलोकात Vin. होता है)।
सर्वस्य-1.1.54 सर्वनाम्नः- VII. iii. 115
(अनेकाल् एवं शिदादेश) सम्पूर्ण (षष्ठीनिर्दिष्ट) के स. (आबन्त) सर्वनाम अङ्ग से उत्तर (डित् प्रत्यय को स्याट् आगम होता है तथा उस आबन्त सर्वनाम को ह्रस्व सर्वस्य-v.ii. 6 भी हो जाता है)।
सर्व शब्द के स्थान में (स आदेश विकल्प से होता है. ...सर्वनाम्नाम्- V. iii. 72
दकारादि प्रत्यय के परे रहते)। देखें- अव्ययसर्वनाम्नाम् V. ii. 72
सर्वस्य- VI. 1. 185 सर्वपुरुषाभ्याम्-v.i. 10
(सुप् परे रहते) सर्व शब्द के (आदि को उदात्त होता (चतुर्थीसमर्थ) सर्व तथा पुरुष प्रातिपदिकों से (हित' है)। अर्थ में यथासंख्य ण तथा ढञ् प्रत्यय होते हैं)।
सर्वस्य- VIII.1.1 सर्वभूमि..-v.i. 40
(यहाँ से आगे 'पदस्य' VIII. i. 16 तक सूत्र से पहलेदेखें- सर्वभूमिपृथिवीभ्याम् V.i. 40
पहले जो भी कहेंगे, वहाँ) सब के स्थान में द्वित्व होता सर्वभूमिपृथिवीभ्याम्-v.i.40
है,ऐसा अर्थ होगा। यह अधिकारसूत्र है)। (षष्ठीसमर्थ) सर्वभूमि तथा पृथिवी प्रातिपदिकों से सर्वादीनि -I.1.27 (यथासङ्ख्य करके अण तथा अञ् प्रत्यय होते हैं 'कारण'
___सर्वादिगणपठित शब्दों (की सर्वनाम संज्ञा होती है)।
टिम अर्थ में, यदि वह कारण संयोग वा उत्पात हो तो)।
सर्वादः- V. 1.7 सर्वम्- IV. i. 100
सर्व शब्द आदि में है जिनके,ऐसे (द्वितीयासमर्थ पथिन, (बहुवचनविषय में वर्तमान जो.जनपद के समान ही।
अङ्ग, कर्म, पत्र तथा पात्र प्रातिपदिकों से 'व्याप्त होता क्षत्रियवाची प्रातिपदिक, उनको जनपद की भांति ही)
है' अर्थ में ख प्रत्यय होता है)। प्रकृति,प्रत्यय आदि सारे कार्य हो जाते है)।
....सर्वान..-.1.9 सर्वम्- VI. . 93
देखें- अनुपदसर्वान्न v.i.9 (गुणों की सम्पूर्णता अर्थ में वर्तमान पूर्वपद) सर्व शब्द
सर्वान्यत्- VIII. I. 31
र को (अन्तोदात्त होता है)।
(गति अर्थ वाले धातुओं के लोट् लकार से युक्त लुडन्त सर्वम्- VI. iii. 105
तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता, यदि कारक) सारा अन्य (उत्तरपदस्य' VII. ii. 10 सूत्र के अधिकार में कही (न हो तो)। हई जो वृद्धि,उस वृद्धि किये हुये शब्द के परे रहते) सर्व सर्वेभ्यः-III. iii. 20 शब्द (तथा दिक् शब्द पूर्वपद को अन्तोदात्त होता है)।
सब धातुओं से (परिमाण की आख्या गम्यमान हो तो सर्वम्- VIII. 1. 18
घञ् प्रत्यय होता है)। (यहाँ से आगे 'तिङि चोदात्तवति' VIII. 1.71 तक सर्वेषाम् -VI. 1. 48 जो कुछ कहेंगे, वहाँ पाद के आदि में न हो तो) सारा
सबको अर्थात दि.आपन तथा त्रिको (जो कछ भी कह (अनुदात्त होता है.ऐसा अधिकार जानना चाहिये)।
आए हैं, वह चत्वारिंशत् आदि सङ्ख्या उत्तरपद रहते ...सर्वयोः-III. 1. 41
बहुव्रीहि समास तथा अशीति को छोड़कर विकल्प करके देखें-पू.सर्वयोः III. 1.41
हो)।