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सदशातिरूपयोः
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सनि
सदशातिरूपयो: - VI. I. 11
सन्..-VI.1.9 सदृश तथा प्रतिरूप शब्द उत्तरपद रहते (सादृश्यवाची देखें- सन्यो : VI.1.9 तत्पुरुष समास में पूर्वपद प्रकृतिस्वर होता है)। सन्..-VI.1.31 सदेः- VIII. iii. 118
देखें-संशो : VI.1.31
सन्...- VI. iv. 42 (लिट् परे रहते) षद् धातु के (परवाले सकार को मूर्धन्य
देखें-सालो: VI. iv. 42 आदेश नहीं होता।
सन्...- VII. iii. 57 ..सदेशेषु - VI. II. 23
देखें-सन्लिटो: VII. iii.57 देखें- सविधसनीड VI. ii. 23
...सन...-III. 1.27 सब...-V.11.22
देखें- वनसन III. ii. 27 देखें- सद्य-परुतv.iil. 22
...सन...-III. ii.67 सापरुत्परायवमापरखव्ययपूर्वधुरन्यधुरन्यतरधुरितरपुर- देखें-जनसन III. 1.67 परेधुरघरेधुरुपयेधुरुत्तरेछुः - V. iii. 22 (सप्तम्यन्त प्रातिपदिकों से कालविशेष में) सद्यः, परुत्,
...सन...-VI. iv. 42 परारि, ऐषमस्, परेद्यवि, अद्य, पूर्वेद्युः, अन्येयुः, अन्यतरेधुः,
देखें- जनसनखनाम् VI. iv. 42 इतरेयः, अपरेद्यः, अधरेयः उभयेद्यः तथा उत्तरेद्यः शब्दों का सन-I. iii. 56 निपातन किया जाता है।
(ज्ञा, श्रु, स्मृ, दृश् -इन धातुओं के) सन्नन्त से परे सब-VI. 1.95
- (आत्मनेपद होता है)। (माद तथा स्थ उत्तरपद रहते वेदविषय में सह शब्द को) सनः-I. iii. 62 सघ आदेश होता है।
(सन प्रत्यय आने के पूर्व जो धातु आत्मनेपदी रही हो. . सधिः -VI. iii. 94
उससे) सन्नन्त से (भी पूर्ववत् आत्मनेपद होता है)। (सह शब्द को) सध्रि आदेश होता है,(वप्रत्ययान्त अञ्ज सन- VI. iv. 45 धातु के उत्तरपद रहते)।
(क्तिच् प्रत्यय परे रहते) सन् अङ्ग को (आकारादेश सन्-I. 1.8
हो जाता है तथा विकल्प से इसका लोप भी होता है)। (रुद,विद,मुष,ग्रह,स्वप तथा प्रच्छ-इन धातुओं से सनाधन्ता-III. I. 32 परे) सन् (और वत्त्वा) प्रत्यय (कित्वत् होते हैं)। सन् आदि प्रत्यय अन्त में हैं जिनके,ऐसे समुदाय (धातुसन्-I. 1. 26
संज्ञक होते है)। (इकार, उकार उपधावाली रलन्त एवं हलादि धातुओं ...सनाम्-VII. 1. 49 से परे सेट) सन् प्रत्यय (और सेट् क्त्वा प्रत्यय विकल्प देखें-इवन्तर्घO VII. 1. 49 से कित् नहीं होते)।
सनाशंसभिक्ष:-III. ii. 168 सन्...-II. iv.51
सन्नन्त धातुओं से तथा आपूर्वक शसि एवं भिक्ष देखें-संश्चडझे II. iv.51
धातुओं से (तच्छीलादि कर्ता हों, तो वर्तमानकाल में उ सन्-III. 1.5
प्रत्यय होता है)। (गुप्, तिज और कित् धातुओं से स्वार्थ में) सन् प्रत्यय
सनि - II. iv. 48 होता है।
(आर्धधातुक) सन् परे रहते (भी अबोधनार्थक इण को सन्...-III. II. 168 देखें-सनाशंस III. II. 168
गम् आदेश होता है)।