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शमिता
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शरि
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शमिता - VI. iv. 54
...शर... -VI. iii. 15 (यज्ञकर्म में) इडादि तच परे रहते 'शमिता' पद निपातन देखें-वर्षक्षरशरवरात् VI. iii. 15 किया जाता है।
...शर... - VIII. iv.5 शमिति -III. ii. 141
देखें-प्रनिरन्त: VIII. iv.5 शमादि (आठ) धातुओं से (तच्छीलादि कर्ता हों तो शर: - VIII. iv. 48 वर्तमानकाल में घिनुण प्रत्यय होता है)। .
(अच् परे रहते) शर् प्रत्याहार को (द्वित्व नहीं होता)। ...शमी... - V. iii. 88
...शरत्... - VI. iii. 14 देखें-कुटीशमीov.iii. 88
देखें - प्रावृट्शरत VI. iii. 14 ...शमीवत्... - V. iii. 118
शरत्प्रभृतिभ्यः -V. iv. 107 देखें- अभिजिद V. iii. 118
(अव्ययीभाव समास में वर्तमान) शरदादि प्रातिपदिकों ...शम्ब... - V. iv. 58
से (समासान्त टच् प्रत्यय होता है)। देखें -द्वितीयतृतीय० V. iv. 58
शरदः - IV. iii. 12 शम्या : - IV. iii. 39
(कालवाची) शरत् शब्द से (श्राद्ध अभिधेय हो, तो (षष्ठीसमर्थ) शमी प्रातिपदिक से (विकार और अवयव शैषिक ठञ् प्रत्यय होता है)। अर्थों में ट्लञ् प्रत्यय होता है)।
शरदः - IV. iii. 27. शमी = एक वृक्ष, फली, सेम।
(सप्तमीसमर्थ) शरद् प्रातिपदिक से (जात अर्थ में संज्ञाशय... - IV. iii. 17
विषय होने पर वुञ् प्रत्यय होता है)। देखें-शयवासवासिषु VI. iii. 17
शरद्वच्छनकदर्भात् – IV.i. 102 शयग्लिक्षु - VII. iv. 28
शरद्वत्, शुनक और दर्भ- इन प्रातिपिदकों से (ऋकारान्त अङ्ग को) श, यक तथा (यकारादि सार्वधा
(यथासङ्ख्य करके भृगु, वत्स.आग्रायणगोत्रस्थ वाच्य हो तुकभिन्न) लिङ् परे रहते (रिङ् आदेश होता है)।
तो फक् प्रत्यय होता है)। ....शयन... - VI.ii. 151
शुनक = भृगुवंशीय ऋषि, कुत्ता। देखें - मन्वितन्० VI. ii. 151 शयवासवासिषु - VI. iii. 17
शरदत्... -IV.i. 102
देखें-शरद्वच्छनक० ... 102 शय,वास तथा वासिन् शब्दों के उत्तरपद रहते (काल
...शरादिभ्यः - IV. iii. 141 वाचियों से भिन्न शब्दों से उत्तर सप्तमी का विकल्प से
देखें-वृद्धशरादिभ्य: IV. iii. 141 अलुक् होता है)।
शरादीनाम् -VI. iii. 119 शयित: - IV. iv. 108
शरादि शब्दों को (भी सञ्जाविषय में मतुप परे रहते (सप्तमीसमर्थ समानोदर प्रातिपदिक से) 'शयन किया।
दीर्घ होता है)। हुआ' अर्थ में (यत् प्रत्यय होता है तथा समानोदर शब्द के ओकार को उदात्त होता है)।
...शरावेषु - VI. ii. 29. शयितरि - IV. ii. 14
देखें- इगन्तकाल. VI. ii. 29 (सप्तमीसमर्थ स्थण्डिल प्रातिपदिक से) सोने वाला
शरि -VIIL iii. 28 अभिधेय हो (तो व्रत गम्यमान होने पर यथाविहित प्रत्यय
(पदान्त उकार तथा णकार को यथासङ्ख्य करके होता है)।
विकल्प से कुक तथा टुक् आगम होते हैं। शर प्रत्याहार स्थण्डिल = भूखण्ड,बंजर भूमि,सीमा।
परे रहते)।