________________
489
न्
करके) वुज, छण, क, ठच, इल, स, इनि,र, ढ, ण्य,य, फक, फिज, इब, ज्य, ककु, ठक चातुरर्थिक प्रत्यय होते
वुन् -III. 1.149
(प्र.स,लू धातुओं से समभिहार गम्यमान होने पर) वुन् प्रत्यय होता है। वुन्-IV. 1.60 (द्वितीयासमर्थ क्रमादि प्रातिपदिकों से अध्ययन तथा जानने का कर्ता अभिधेय होने पर) वुन् प्रत्यय होता है। वुन्-VIII. 28' (सप्तमीसमर्थ पूर्वाह्ण, अपराग, आर्द्रा, मूल, प्रदोष, अवस्कर प्रातिपदिकों से 'जात' अर्थ में) वुन् प्रत्यय होता
दुष्-V. iii. 27
(सप्तमीसमर्थ शरद् प्रातिपदिक से जात अर्थ में संज्ञाविषय होने पर) वुज प्रत्यय होता है। कुष् - IV. II. 45
(सप्तमीसमर्थ आश्वयुजी प्रातिपदिक से बोया हुआ अर्थ में) वुञ् प्रत्यय होता है।
आश्वयुजी = आश्विन मास की पूर्णिमा। दुष् - N. II. 49
(सप्तमीसमर्थ कालवाची ग्रीष्म और अवरसम प्रातिप- दिकों से देयमृणे' अर्थ में) वुब् प्रत्यय होता है।
| अथ म) वुत् प्रत्यय होता है। दुष्-IV.lil.77
(विद्यासम्बन्धवाची एवं योनिसम्बन्धवाची पञ्चमीसमर्थ प्रातिपदिकों से आगत अर्थ में) वुञ् प्रत्यय होता है। दुश् - IV. 1. 99
(प्रथमासमर्थ भक्तिसमानाधिकरणवाची गोत्र आख्या वाले तथा क्षत्रिय आख्या वाले प्रातिपदिकों से बहल करके) वुड् प्रत्यय होता है। दुश् - IV. II. 117
(तृतीयासमर्थ कुलालादि प्रातिपदिकों से संज्ञा गम्यमान होने पर कृत अर्थ में) वुञ् प्रत्यय होता है। कुष्-IV. iii. 125
(षष्ठीसमर्थ गोत्रवाची तथा चरणवाची प्रातिपदिकों से 'इदम्' अर्थ में) वुज् प्रत्यय होता है। कुष् - IV. II. 154
(षष्ठीसमर्थ उष्ट प्रातिपदिक से विकार और अवयव अर्थों में) वुज् प्रत्यय होता है। दुष्-V.I. 131
(षष्ठीसमर्थ यकार उपधावाले गुरु है उपोत्तम जिसका, ऐसे प्रातिपदिक से भाव और कर्म अर्थों में) वुज् प्रत्यय होता है। पुछकठजिलसेनिरडण्ययफक्फिविष्यकक्ठकः - IV.11.79 (अरीहण, कृशाश्व,ऋषि, कुमुद,काश, तृण,प्रेक्ष,अश्म, सखि, संकाश, बल, पक्ष, कर्ण, सुतकम, प्रगदिन, वराह, कुमुद आदि सत्रह गणों के प्रातिपदिकों से यथासङ्ख्य
आर्द्रा = छठा नक्षत्र । अवस्कर = विष्ठा, गुह्यदेश, गर्द । वुन् -IV. 1. 48 (सप्तमीसमर्थ कालवाची कलापि, अश्वत्थ, यव, बुस शब्दों से) वुन् प्रत्यय होता है, (देयमणे' विषय में)। कलापि = मोर, कोयल, अंजीरवृक्ष । अश्वत्थ = पीपल का पेड़। वुन् - IV. 1. 98 (प्रथमासमर्थ भक्तिसमानाधिकरणवाची वासुदेव तथा अर्जुन शब्दों से षष्ठ्यर्थ में) वुन् प्रत्यय होता है। छन् – IV. II. 124 (षष्ठीसमर्थ द्वन्द्वसंज्ञक प्रातिपदिक से 'इदम्' अर्थ में वैर, मैथुनिक अभिधेय हों तो) वुन् प्रत्यय होता है।
मैथुनिक = वुन् -V.1.62
(गोषदादि प्रातिपदिकों से मत्वर्थ में 'अध्याय' और 'अनुवाक' अभिधेय हों तो) वुन् प्रत्यय होता है। बुन् - V. iv.1 (सङ्ख्या आदि में है जिसके, ऐसे पाद और शत शब्द अन्तवाले प्रातिपदिकों से वीप्सा गम्यमान हो तो) वुन् प्रत्यय होता है (तथा प्रत्यय के साथ-साथ पाद और शत के अन्त का लोप भी हो जाता है)।