________________
अनाण्याने
31
अनितेः
.
अनाध्याने -I. iii.67
(अण्यन्तावस्था में जो कर्म.वही यदि ण्यन्तावस्था में कर्ता बन रहा हो तो,ऐसी ण्यन्त धातु से आत्मनेपद होता है) आध्यान = उत्कण्ठा-पूर्वक स्मरण अर्थ को छोड़कर। अनाम् -VIII. iv. 41
(पदान्त टवर्ग से उत्तर सकार और तवर्ग को षकार और टवर्ग नहीं होता),नाम् को छोड़कर । ...अनायास...- VII. ii. 18
देखें-मन्थमनस० VII. ii. 18 अनातवे-VI. 1.9
अनार्तवाची अर्थात ऋत में न होने वाले (शारद शब्द में) उत्तरपद परे रहते (तत्पुरुष समास में पूर्वपद को प्रकृतिस्वर होता है)। अनार्ययोः - IV. 1.78
(गोत्र में विहित) ऋष्यपत्य से भिन्न (अण् और इञ् प्रत्ययान्त उपोत्तम गुरुवाले) प्रातिपदिकों को (स्त्रीलिङ्ग में ष्यङ् आदेश होता है)। अनावे-1.1.16
अवैदिक (इति शब्द) परे रहते (सम्बुद्धिसंज्ञा के निमित्त- भूत ओकारान्त की प्रगृह्य सज्ञा होती है,शाकल्य आचार्य के अनुसार)। अनालोचने-III. 1.60
आलोचन = देखना से भिन्न अर्थ में वर्तमान (दश धातु से त्यदादि उपपद रहते कब और क्विन् प्रत्यय होते हैं)। अनालोचने - VIII. I. 25
न देखना' अर्थ में वर्तमान (ज्ञान अर्थवाले धातुओं के योग में भी युष्मद् अस्मद् शब्दों को पूर्वसूत्रों से प्राप्त वाम् नौ आदि आदेश नहीं होते)।
अनाव:-VI.i. 207 "(दो अचों वाले यत् प्रत्ययान्त शब्दों को आधुदात्त होता है), नौ शब्द को छोड़कर। अनाश्वान् -III.ii. 109 अनाश्वान् = नहीं खाया, शब्द निपातन से सिद्ध होता
अनास्यविहरणे -I. iii. 20 मुख को खोलने अर्थ से भिन्न अर्थ में (आङपर्वक डुदाञ् धातु से आत्मेनपद होता है)। अनिः -III. Iii. 112
(क्रोषपूर्वक चिल्लाना गम्यमान हो तो नब उपपद रहते धातु से, स्त्रीलिङ्ग कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में ) अनि प्रत्यय होता है। अनिगन्तः - VI. ii. 52
इक अन्त में नहीं है जिसके, ऐसे (गतिसज्जक) को (वप्रत्ययान्त अञ्च धातु के परे रहते प्रकृतिस्वर होता है)। अनि -V.iv. 124 (केवल पूर्वपद से परे जो धर्मशब्द, तदन्त बहुव्रीहि से समासान्त) अनिच् प्रत्यय होता है । अनिषः -IV.I. 122 (इकारान्त) इबन्त-भिन्न (व्यच) प्रातिपदिकों से (भी अपत्यार्थ में ढक् प्रत्यय होता है)। अनिटः -III. 1. 45
इट रहित जो (शलन्त और इगपध) धातु. उससे उत्तर (च्लि के स्थान में क्स होता है,लुङ् परे रहते)। अनिटः -VII. ii. 61 उपदेश में जो (अजन्त धातु, तास् के परे रहते नित्य) अनिट् ,उससे उत्तर (तास के समान ही थल को इट् आगम नहीं होता)। अनिटि-VI.i. 182
(स्वपादि धातुओं के तथा हिंस धातु के अजादि) अनिट् (लसार्वधातुक) परे हो तो विकल्प से आदि को उदात्त हो जाता है)। अनिटि-VI. iv.51
अनिडादि (आर्धधातुक) के परे रहते (णि का विकल्प से लोप होता है)। अनितिपरम् -I. iv. 61
इति शब्द जिससे परे नहीं है,ऐसा जो (अनुकरणवाची) शब्द,(उसकी भी गति और निपात संज्ञा होती है)। अनिते: - VIII. iv. 19
(उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर पद के अन्त में वर्तमान) अन धातु के (नकार को णकार आदेश होता है)।
अनासेक्ने -VII. iii. 102
(निस् के सकार को तपति परे रहते) अनासेवन = पुनः पुनःन करना अर्थ में (मूर्धन्य आदेश होता है)।