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वा-I. 1. 35
वाला हो, उससे इच्छा अर्थ में सन् प्रत्यय) विकल्प से (यज्ञकर्म में वषट्कार अर्थात् वषट् शब्द) विकल्प से होता है। (उदात्ततर होता है, पक्ष में एकश्रुति हो जाती है)। वा-III. 1. 31 वा -I. iii. 43
(आय आदि प्रत्यय आर्धधातुक विषय में विकल्प से (उपसर्गरहित क्रम् धातु से) विकल्प से (आत्मनेपद होता होते हैं)। है)।
वा-III.1.57 वा -I. iii.90
(इर्' इत् वाली धातुओं से उत्तर च्लि के स्थान में) (क्यष् प्रत्ययान्त धातु से) विकल्प करके (परस्मैपद हो- विकल्प से (अङ् आदेश होता है,कर्तृवाची परस्मैपद लुङ् ता है)।
परे रहते)। वा-I. iv.5
वा-III. 1.70 (इयङ्-उवङ्स्थानी स्त्री की आख्यावाले ईकारान्त, (टुप्राश,टुम्लाश, प्रमु,क्रम,क्लमु,सि,त्रुटि तथा लष् उकारान्त शब्दों की आम् परे रहते) विकल्प से (नदी- धातुओं से कर्तृवाची सार्वधातुक परे रहते) विकल्प से सज्जा नहीं होती,स्त्रीं शब्द को छोड़कर)।
(श्यन् प्रत्यय होता है)। वा-I. iv.9
वा-III. 1. 94 . (वेदविषय में षष्ठ्यन्त से युक्त पति शब्द) विकल्प से (इस धात्वधिकार में असमानरूपवाले अपवाद प्रत्यय) (घिसजक होता है)।
विकल्प से (बाधक होते हैं, 'स्त्री' अधिकार में विहित वा-II.1.17
प्रत्ययों को छोड़कर)। (पार और मध्य शब्दों का षष्ठ्यन्त सुबन्त के साथ) ...वा... -III. 1.2 विकल्प से (अव्ययीभाव समास होता है तथा समास के देखें-हावामः III. 1.2 सन्नियोग से इन शब्दों को एकारान्तत्व भी निपातन से
वा-III. ii. 106 हो जाता है)।
(वेदविषय में भूतकाल में विहित लिट् के स्थान में) वा-II. 1. 37
विकल्प से (कानच आदेश होता है)। (आहिताग्न्यादि-गणपठित निष्ठान्त शब्दों का बहुव्री- वा-III. 1. 14 हिसमास में) विकल्प से (पूर्व में प्रयोग होता है)। - (भविष्यकाल में विहित जो लुट्, उसके स्थान में सवा-II. iii. 71
त्संज्ञक शतृ और शानच् प्रत्यय) विकल्प से होते हैं। (कृत्यप्रत्ययान्तों के प्रयोग में) विकल्प से (षष्ठी होती वा-III. iii. 62 है,न कि कर्म में)।
(उपसर्गरहित स्वन तथा हस् धातुओं से कर्तृभिन्न वा-II.iv.55
कारक संज्ञा तथा भाव में) विकल्प से (अप् प्रत्यय होता (आर्धधातुक लिट् परे रहते चक्षिङ् धातु को) विकल्प से (ख्याब् आदेश होता है)।
वा-III. iii. 131
(वर्तमान के समीप अर्थात् निकट के भूत, निकट के वा-II. iv. 57
भविष्यत् काल में वर्तमान धातु से वर्तमान काल के (अज धातु को) वी आदेश होता है, (औणादिक युच् समान) विकल्प से (प्रत्यय होते है)। आर्धधातुक प्रत्यय के परे रहते)।
वा -III. iii. 141 वा-III.1.7
(उताप्योः समर्थयोलिङ्' से पहले पहले जितने सूत्र हैं, (इच्छाक्रिया के कर्म का अवयव जो धातु, इच्छाक्रिया उनमें लिङ् का निमित्त होने पर क्रिया की अतिपत्ति में का समानकर्तृक अर्थात् इष् धातु के साथ समान कर्ता- भूतकाल में) विकल्प से (लङ् प्रत्यय होता है)।