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वरुत -VII. ii. 34
वरुत शब्द (वेदविषय में) इडभावयक्त निपातन किया जाता है। वरूत-VII. ii.34
वरूतृ शब्द वेदविषय में इडभावयुक्त निपातित है। वख्वी : -VII. ii. 34
वरूत्रीः शब्द (वेदविषय में) इडभावयुक्त निपातन किया जाता है। ...वरे... -I.1.57
देखें- पदान्तवरेयलोपस्वरसवर्णानुस्वार० 1.1.57 वर्गान्तात् - IV. iii. 63
(सप्तमीसमर्थ) वर्ग अन्तवाले प्रातिपदिक से (तत्र भवः' अर्थ में छ प्रत्यय होता है)। वर्ग-v.i. 59
(पञ्चत और दशत-ये तिप्रत्ययान्त शब्द 'तदस्य परि- माणम' विषय में) वर्ग अभिधेय होने पर विकल्प से निपातन किये जाते है)। वर्यादयः -VI. ii. 131
(कर्मधारयवर्जित तत्पुरुष समास में उत्तरपद) वर्यादि शब्दों को (भी आधुदात्त होता है)। वर्चस: - V. iv.78
(ब्रह्म और हस्ति शब्द से उत्तर) जो वर्चस् शब्द,तदन्त प्रातिपदिक से (समासान्त अच् प्रत्यय होता है)। वर्चस्के -VI.1.143
अन्न का कचरा अभिधेय हो.तो (अवस्कर शब्द में सट आगम निपातन किया जाता है)। वर्जने -I. iv. 87
छोड़ना अर्थ की प्रतीति होने पर (अप,परि शब्दों की कर्मप्रवचनीय और निपात संज्ञा होती है)। वर्जने - VIII.1.5
छोड़ने अर्थ में (वर्तमान परि शब्द को द्वित्व होता है)। वर्ण्यमान... -VI. ii. 33
देखें-वर्ण्यमानाहोरात्रा० VI. ii. 33 वय॑मानाहोरात्रावयवेषु -VI. I. 33
(पूर्वपदभूत परि,प्रति,उप,अप-इन शब्दों को) वर्णमान = जो छोड़ा जा रहा है तथा दिन एवं रात्रि के अवयववाची शब्दों के परे रहते (प्रकतिस्वर हो जाता है।
...वर्ण... -III.i. 23 देखें-सत्यापपाशo III. 1.23
. ....वर्ण... -IV.i. 42
देखें-कृत्यमत्रावपना IV.i.42. वर्ण... -V.i. 123
देखें-वर्णदृढादिभ्यः V. 1. 122 वर्ण...-VI.ii. 112
देखें-वर्णलक्षणात् VI. ii. 112 ...वर्ण... -VI. 1.84
देखें-ज्योतिर्जनपद VI. ii. 84 वर्ण: -II. . 68
वर्णविशेषवाची (सुबन्त वर्णविशेषवाची समानाधिकरण सुबन्त के साथ विकल्प से समास को प्राप्त होता है
और वह समास तत्पुरुषसंज्ञक होता है)। वर्ण:-VI. 1.3
(वर्णवाची शब्द के उत्तरपद में रहते) वर्णवाची पूर्वपद को (तत्पुरुष समास में प्रकृतिस्वर हो जाता है)। वर्णलक्षणात् - VI. ii. 112
(बहुव्रीहि समास में) वर्णवाची तथा लक्षणवाची से परे (उत्तरपद कर्ण शब्द को आधुदात्त होता है)। वर्णात् - IV.1.39
वर्णवाची (अदन्त अनुपसर्जन अनुदात्तान्त तकार उपधा वाले) प्रातिपदिकों से विकल्प से स्त्रीलिङ्ग में डीप् प्रत्यय तथा तकार को नकारादेश हो जाता है)। वर्णात् - V.i. 134
वर्ण प्रातिपदिक से (मत्वर्थ' में इनि प्रत्यय होता है, ब्रह्मचारी वाच्य हो तो)। वर्णदृढादिभ्यः - V.1122
(षष्ठीसमर्थ) वर्णवाची तथा दृढादि प्रातिपदिकों से (भाव' अर्थ में ष्यब तथा इमनिच प्रत्यय होते है। ...वर्णान्तात् - V.ii. 132
देखें-धर्मशीलov.ii. 132 वणे-v.iv. 31
नित्यधर्मरहित) वर्ण अर्थ में (वर्तमान लोहित प्रातिपदिक से भी स्वार्थ में कन् प्रत्यय होता है)।