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लिम्प..
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लुक
लुक् -II. iv. 58 (ण्यन्त गोत्रप्रत्ययान्त,क्षत्रियवाची गोत्रप्रत्ययान्त.ऋषिवाची गोत्रप्रत्ययान्त तथा जित् गोत्रप्रत्ययान्त शब्द से युवापत्य में विहित अण् और इब् प्रत्ययों का) लुक् हो जाता है। लुक् -IV.i. 88
प्रारदीव्यतीय अर्थों में विहित अपत्य अर्थ से भिन्न द्विगुसम्बन्धी जो तद्धित, उसका) लुक होता है। लुक् -IV.i. 90
(प्राग्दीव्यतीय अजादि प्रत्यय की विवक्षा में युवा अर्थ में उत्पन्न प्रत्यय का) लुक् हो जाता है। लुक्-IV.i. 109 (आङ्गिरस गोत्रापत्य में जो यज् प्रत्यय, उसका स्त्री अभिधेय हो तो) लुक हो जाता है। लुक् -IV.i. 173 .
(क्षत्रियाभिधायी,जनपदवाची जो कम्बोज शब्द,उससे अपत्यार्थ में विहित तद्राजसंज्ञक प्रत्यय का) लुक् हो जाता
लिम्प.. -III. 1. 138
देखें-लिम्पविन्द० III. I. 138 लिम्पविन्दयारिपारिवेधुदेजिचेतिसातिसाहिन्यः - III. 1. 138
(उपसर्गरहित) लिप उपदेहे, विदल लाभे तथा णिच- त्ययान्त घृज् धारणे,पृ पालनपूरणयोः, विद चेतनाख्याननिवासेषु,उद्पूर्वक एज़ कम्पने,चिती संज्ञाने,साति (सौत्र) तथा षह मर्षणे-इन धातुओं से (भी श प्रत्यय होता है)। लियः -I. 1.70
(ण्यन्त) ली' धातु से (आत्मनेपद होता है; सम्मानन, शालीनीकरण और प्रलम्भन अर्थ में)। सम्मानन = पूजन। शालीनीकरण = अभिभवन, दबाना।। प्रलम्भन = ठगना। ....लिह...-III. 1. 141
देखें-श्याव्यय III. 1. 141 ...लिह...-VII. iii. 73
देखें-दुहदिहO VII. Iii. 73 लिह-III. ii. 32
'लिह' धातु से (वह और अभ कर्म उपपद रहते 'ख' प्रत्यय होता है)। वह = कन्धा ।
अन = बादल। ली...-VII. . 39
देखें-लीलो: VII. iii. 39 लीयते: - VI. 1. 50
ली धातु को (ल्यप परे रहते तथा एच के विषय में विकल्प से उपदेश अवस्था में ही आत्त्व हो जाता है)। लीलो: -VII. iii. 39
ली तथा ला अङ्गको (स्नेह = घतादि पदार्थ के पिघलना अर्थ में णि परे रहते विकल्प से क्रमशः नुक तथा लुक आगम होते है)। लुक्..-1.1.60
देखें-लुकालुलुपः I.i. 60 लुक्-I.ii. 49 (तद्धित के लक हो जाने पर उपसर्जन स्वीप्रत्यय का) लुक् = अदर्शन हो जाता है।
लुक् - IV.ii. 63 (द्वितीयासमर्थ-प्रोक्त प्रत्ययान्त प्रातिपदिक से अध्येतृ-वेदित-विषयक प्रत्यय का) लुक हो जाता है। लुक्-IV. iii. 34
(श्रविष्ठा,फल्गुनी,अनुराधा,स्वाति,तिष्य,पुनर्वसु,हस्त, विशाखा, अषाढा तथा बहुल प्रातिपदिकों से जातार्थ में उत्पन्न प्रत्यय का) लुक् होता है। लुक्-IV. iii. 107
(कठ और चरक शब्द से उत्पन्न प्रोक्त प्रत्यय का छन्द विषय में) लुक् होता है।
(फल अभिधेय हो तो विकार) और अवयव अर्थों में विहित प्रत्यय का) लुक् होता है। लुक् - IV. iii. 165
(षष्ठीसमर्थ कंसीय, परशव्य प्रातिपदिकों से विकार अर्थ में यथासङ्ख्य करके यञ् और अञ् प्रत्यय होते हैं तथा प्रत्यय के साथ साथ कंसीय और परशव्य का) लुक (भी) होता है।