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अनकर्मधारयः
अनकर्मधारयः - II. iv. 19
नञ् तथा कर्मधारय वर्जित (तत्पुरुष नपुंसकलिंग होता
है ।
अनपूर्वे VII. 1. 37
नज् से भिन्न पूर्व अवयव है जिसमें, ऐसे (समास) में (क्त्वा के स्थान में ल्यप् आदेश- होता है)। अनञ्समासे - VI. 1. 128
ककार जिनमें नहीं है तथा ) जो नव् समास में वर्तमान नहीं है, ऐसे (एतत् तथा तत्) शब्दों के (सु का लोप हो जाता है, हल परे रहते, संहिता के विषय में)।
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अनपुर- VII. 1. 82
(सु परे रहते) अनडुह अङ्ग को (नुम् आगम होता है)।
... अनडुहाम् - VIII. ii. 72
देखें वसुखसुo VIII. ii. 72 ...अनडुहो
- VII. i. 98
देखें - चतुरनडुहो: VII. 1. 98
अनतः
VII. i. 5
अकारान्त अङ्ग से उत्तर (आत्मनेपद में वर्तमान जो प्रत्यय का झकार, उसके स्थान में अत् आदेश होता है)। अनत्यन्तगतौ - V. iv. 4
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(क्त प्रत्यय अन्त वाले प्रातिपदिकों से) निरन्तर सम्बन्ध गम्यमान न हो तो (कन् प्रत्यय होता है ) ।
अनत्याधाने - I. Iv. 74
अत्याधान चिपकाकर न रखने विषय में (उरसि तथा मनसि शब्दों की कृञ् धातु के योग में विकल्प से गति और निपात संज्ञा होती है)।
अनदिते: - VIII. iii. 50
(कः करत्, करति, कृषि, कृत इनके परे रहते) अदिति को छोड़कर (जो विसर्जनीय, उसको सकारादेश होता है, वेद-विषय में)।
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अनद्यतनवत् - III. iii. 135
(क्रियाप्रबन्ध तथा सामीप्य गम्यमान हो तो धातु से) अनद्यतन के समान (प्रत्ययविधि नहीं होती); अर्थात् सामान्यभूत में कहा हुआ लुङ और सामान्य भविष्यत् में कहा हुआ लद ही होंगे।
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क्रियाप्रबन्ध निरन्तरता के साथ क्रिया का अनुष्ठान । सामीप्य = तुल्यजातीय काल का व्यवधान न होना ।
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अनलने - III. II. 111
अनद्यतन = जो आज का नहीं है ऐसे (भूतकाल ) में वर्तमान (धातु से लङ् प्रत्यय होता है)।
अनन्तावसचेतिकात्
अनद्यतने - III. iii. 15
अनद्यतन = जो आज का नहीं है ऐसे (भविष्यत्काल) में (धातु से लुट् प्रत्यय होता है) ।
अनद्यतने - V. iii. 21
(सप्तम्यन्त किम्, सर्वनाम और बहु प्रातिपदिकों से हिल् प्रत्यय विकल्प से होता है), अनद्यतन काल विशेष को कहना हो तो ।
अनधिकरणवाचि - II. Iv. 13
अद्रव्यवाची (परस्परविरुद्ध अर्थ वाले शब्दों का (द्वन्द्व विकल्प से एकवद् होता है)।
अनध्वनि - II. III. 12
(चेष्टा क्रिया वाली गत्यर्थक धातुओं के) मार्ग रहित (कर्म) में (द्वितीया और चतुर्थी विभक्ति होती है)।
....अनन्त....
III. . 21
देखें - दिवाविभा० III. . 21
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अनन्त... - Viv. 23
देखें- अनन्तावसचेo Viv. 23 :
अनन्तरः
VI. ii. 49
(कर्मवाची क्तान्त उत्तरपद रहते पूर्वपदस्य) अव्यवहित (गति) को (प्रकृतिस्वर होता है) ।
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अनन्तरम् - VIII. 1. 37
( यावत् और यथा से युक्त) अव्यवहित (तिङन्त को पूजा विषय में अननुदान नहीं होता अर्थात् अनुदात्त ही होता है)।
अनन्तरम् - VIII. 1. 49
(अविद्यमान पूर्ववाले आहो उताहो से युक्त) व्यवधा नरहित (तिङ्) को (भी अनुदात्त नहीं होता है) ।
अनन्तराः - I. i. 7
व्यवधानरहित = जिनके बीच में अच् न हों, ऐसे (दो या दो से अधिक हलों की संयोग संज्ञा होती है)। अनन्तः पादम् - III. 1. 66
(हव्य सुबन्त उपपद रहते वेदविषय में वह धातु से युट् प्रत्यय होता है, यदि वह धातु) पाद के अन्तर अर्थात् मध्य में वर्तमान न हो तो ।
अनन्तावसथेतिह भेषजात् - V. iv. 23
अनन्त, आवसथ, इतिह तथा भेषज प्रातिपदिकों से (स्वार्थ में ञ्य प्रत्यय होता है) ।
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