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भाषितपुंस्कादनू
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भियः
भाषितपुंस्कादनूङ्-VI. ill. 33
भिक्षासेनादायेषु - III. ii. 17 एक ही अर्थ में अर्थात् एक ही प्रवृत्तिनिमित्त को लेकर भिक्षा, सेना, आदाय शब्द उपपद रहते (भी चर् धातु से कहा है पुंल्लिङ्ग अर्थ को जिस शब्द ने ऐसे कडवर्जित र प्रत्यय होता है)। भाषितपुंस्क (स्त्री शब्द) के स्थान में (पंल्लिङ्वाची शब्द भिक्षु... -IV. iii. 110 के समान रूप हो जाता है, पूरणी तथा प्रियादिवर्जित
देखें-भिक्षुनटसूत्रयो: IV. iii. 110 - स्त्रीलिङ्ग समानाधिकरण उत्तरपद परे हो तो)। भिक्षुनटसूत्रयोः - IV. iii. 110 ...भास्... - III. ii. 21
(तृतीयासमर्थ पाराशर्य, शिलालि प्रातिपदिकों से देखें-दिवाविभा० III. 1. 21
यथासङ्ख्य करके) भिक्षुसूत्र तथा नटसूत्र का प्रोक्त विषय
हो (तो णिनि प्रत्यय होता है)। ...भास... - III. ii. 161
भित्तम् - VIII. ii. 50 देखें- भञ्जमासमिदः III. ii. 161
भित्तम् शब्द में भिदिर् धातु से उत्तर क्त के नत्व का ....भास... - III. ii. 175
अभाव निपातन है, (यदि भित्तम् से टुकड़ा कहा जा रहा देखें - स्थेशभास III. ii. 175
हो तो)। ...भास... -III. ii. 177
....भिद... -III. ii. 61 देखें-प्राजभास III. I. 177
देखें - सत्सू० III. ii. 61 भासन... -I. iii.47
...भिदादिभ्यः - III. iii. 104 देखें- भासनोपसम्भाषा I. iii. 47
देखें-पिद्भिदादिभ्यः III. iii. 104 भासनोपसम्भाषाज्ञानयत्नविमत्युपमन्त्रणेषु -I. iii. 47 ...भिदि... - III. ii. 162
भासन = दीप्ति, उपसम्भाषा = सान्त्वना देना. ज्ञान. देखें - विदिभिदि० III. ii. 162 यल, विमति = विवाद करना, उपमन्त्रण = एकान्त में भिद्य... -III. I. 115 'सलाह करना-इन अर्थों में (वर्तमान वद धात से आत्म- देखें -भिद्योयो III. I. 115 नेपद होता है)।
भिद्योद्ध्यौ -III.i. 115 भि-VII. iv. 48
(नदी अभिधेय हो तो कर्ता में) भिद्य और उद्ध्य शब्द (अप अङ्ग को) भकारादि प्रत्यय के परे रहते (तका
क्यपत्ययान्त निपातन किये जाते हैं। रादेश होता है)।
...भिन्न... -VI. iii. 114 ...भिक्ष... - III. ii. 155
देखें - अविष्टाष्टOVI. iii. 114
भियः -III. ii. 174 देखें - जल्पभिक्ष० III. ii. 155
भी धातु से (तच्छीलादि कर्ता हो. तो वर्तमानकाल में ....भिक्ष: - III. ii. 168
क्रुक् तथा लुकन् प्रत्यय हो जाते है)। देखें - सनाशंस III. ii. 168
भिय: - VI. iv. 115 भिक्षा... -III. ii. 17
भी अङ्ग को (विकल्प करके इकारादेश होता है; हलादि देखें - भिक्षासेना III. ii. 17
कित् डित्, सार्वधातुक परे रहते)। भिक्षादिभ्यः - IV.ii. 37
भियः - VII. iii. 40 (षष्ठीसमर्थ) भिक्षादि प्रातिपदिकों से (समूह अर्थ में अण
___ जिभी भये' अङ्ग को (हेतुभय अर्थ में णि परे रहते षुक प्रत्यय होता है)।
आगम होता है)।