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...फि... -IV. 1.79
देखें-दुज्छण्कठ०V.ii.79 ...फिजो: - IV. 1. 91
देखें-फक्फिो : IV.1.91 ...फिजौ-V.i. 150
देखें- णफिजौ IV.i. 150 फिन् -IV.1.160
(अवृद्धसंज्ञक प्रातिपदिक से अपत्यार्थ में बहुल करके) फिन् प्रत्यय होता है, (प्राच्य आचार्यों के मत में, अन्यथा इब)। फुल्ल... -VIII. 1.54 देखें-फुल्लक्षीब VIII. ii. 54.
फुल्लक्षीवकृशोल्लाघा - VIII. ii. 54
(उपसर्ग से उत्तर न होने पर) फुल्ल, क्षीब, कृश तथा उल्लाघ शब्द निपातन किये जाते है। फे: - IV.i. 149
फिजन्त (वृद्धसंज्ञक) प्रातिपदिक (सौवीर गोत्रापत्य) से (कुत्सित युवापत्य को कहने में छ तथा ठक् प्रत्यय बहुल करके होता है)। फेनात् - V. 1. 99
फेन प्रातिपदिक से (मत्वर्थ में इलच् प्रत्यय और लच् प्रत्यय विकल्प से होते है)।
ब-प्रत्याहारसूत्र x
(तथा जो षष्ठी से निर्दिष्ट हो,वह करभ = ऊंट का छोटा भगवान् पाणिनि द्वारा अपने दशम प्रत्याहारसूत्र में बच्चा हो तो)। पठित द्वितीय वर्ण।
बन्धने -I. iv.77 पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला
(प्राध्वम्' शब्द की) बन्धन अर्थ में (कृञ् के योग में का छब्बीसवां वर्ण।
नित्य गति और निपात संज्ञा होती है)। । ब... -V. 1. 138
बन्धने - IV. iv. 96 देखें-बभयुसov.ii. 138
(षष्ठीसमर्थ हृदय शब्द से) बन्धन अर्थ में (भी वेद बदा... - V. 1.9 देखें- बद्घाभक्षयति V. 1.9
अभिधेय होने पर यत् प्रत्यय होता है)। बद्धाभक्षयतिनेयेषु-v.i.9 ।
बन्धुनि-V.v.9 (द्वितीयासमर्थ अनुपद,सर्वान्न तथा आनय प्रातिपदिकों (जाति शब्द अन्त वाले प्रातिपदिक से) द्रव्य गम्यमान
होतो (स्वार्थ में छप्रत्यय होता है)। से यथासङ्ख्य करके) 'सम्बद्ध'.'खाता है' तथा 'ले जाने हो तो (स्वार्थ में र योग्य' अर्थों में (ख प्रत्यय होता है)।
बन्थुनि - VI. 1. 14 ...बघ.. -III. 1.6
बन्धु शब्द उत्तरपद हो तो (बहुव्रीहि समास में ष्यङ् देखें-मान्बधदान्शायः III. 1.6
को सम्प्रसारण होता है)। ...बध्नातिषु -VI. iii. 118
बन्धुनि - VI. ii. 109 देखें-इन्सिबमातिषु VI. iii. 18
(बहुव्रीहि समास में) बन्धु शब्द उत्तरपद रहते (नद्यन्त बन्यः -III. iv.41
पूर्वपद को अन्तोदात्त होता है)। (अधिकरणवाची शब्द उपपद हों तो) बन्ध धातु से। (णमुल् प्रत्यय होता है)।
...बन्युभ्यः -IV. 1.42
देखें-ग्रामजनबन्धु IV. ii. 42 बन्धनम् - V. ii. 79
(प्रथमासमर्थ शृङ्खल प्रातिपदिक से षष्ठयर्थ में कन ...बन्युपु-VI. iii. 84 प्रत्यय होता है), यदि वह प्रथमासमर्थ बन्धन बन रहा हो
देखें-ज्योतिर्जनपदO VI. iii. 84