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अथुस्
अदूरात्
...अथुस्... - III. iv. 82
अदस: -1.1. 12 देखें-णलतुसुस्० III. iv. 82
अदस् शब्द के (मकार से परे ईदन्त,ऊदन्त और एदन्त अद-I.iv.69
शब्द की प्रगृह्य संज्ञा होती है)। (अनुपदेश विषय में) अदस् शब्द (क्रियायोग में गति
अदस: - VII. 1. 107 और निपात-संज्ञक होता है)।
__ अदस् अङ्ग को (सु परे रहते औ आदेश तथा सु का । अदः -II. iv. 36
लोप होता है)। अद् के स्थान में (जग्ध आदेश होता है, ल्यप् और
अदस: - VIII. ii. 80 तकारादि कित् आर्धधातुक परे रहते)।
(असकारान्त) अदस् शब्द के (दकार से उत्तर जो वर्ण, अदः -III. ii. 68
उसके स्थान में उवर्ण आदेश होता है तथा दकार को अद् धातु से (अन्न शब्द से भिन्न सुबन्त उपपद रहते मकारादेश भी होता है)। 'विट्' प्रत्यय होता है)।
...अदसोः -VII.i. 11 ...अदः - III. ii. 160
देखें-इदमदसो: VII.i. 11 देखें-संघस्यदः III. ii. 160
अदाप-I.1.29 अदः -III. iii. 59
दाप और दैप् धातुओं को छोड़कर (दा रूप वाली चार (उपसर्ग उपपद रहते हुए) अद् धातु से(अप् प्रत्यय होता और धा रूप वाली दो धातुओं की घु संज्ञा होती है)। .. है,कर्तृभिन्न कारक संज्ञा तथा भाव में)।
अदिक्खियाम् - V. iv.8 अदः-VII. iii. 100
दिशावाचक स्त्रीलिंग न हो तो (अञ्चति उत्तरपद वाले अद् अङ्ग से उत्तर (हलादि अपृक्त सार्वधातुक को सभी प्रातिपदिक से स्वार्थ में विकल्प से ख प्रत्यय होता है)। आचार्यों के मत में अट आगम होता है)।
...अदिति... - IV.1.85 ...अदन्तात् - VI. iii.8
देखें-दित्यदित्यादित्य IV.1.85 . देखें- हलदन्तात् VI. iii. 8 .
अदिप्रभृतिभ्यः -II. iv.72 अदन्तात् - VIII. iv.7.
अदादिगण-पठित धातुओं से उत्तर (शप का लुक होता हस्व अकारान्त (पूर्वपद में स्थित) निमित्त से उत्तर (अहन के नकार को णकारादेश होता है)।
....अदुपदेशात् - VI. 1. 1800
देखें- तास्यनुदात्तेत्० VI. 1. 180 अदर्शनम् - I.1.59 विद्यमान के अदर्शन = अनुपलब्धि या वर्णविनाश की
अदुपधात् -III.1.98 (लोप संज्ञा होती है)।
अकारोपध (पवर्गान्त) धातु से (यत् प्रत्यय होता है)। अदर्शनम् -I. ii. 55
...अदूर.. -II. ii. 25 (सम्बन्ध को वाचक मानकर-यदि संज्ञा हो तो भी उस
बोसो
देखें - अव्ययासन्नादूरा II. ii. 25 सम्बन्ध के हट जाने पर उस संज्ञा का) अदर्शन = न अदूरभवः-IV.ii. 69 दिखाई देना (होना चाहिये पर वह होता नहीं है)।
(षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिक से) पास होने के अर्थ में (भी अदर्शनम् -I. iv. 28
यथाविहित अण् आदि प्रत्यय होते है)। (व्यवधान के निमित्त जिससे) छिपना (चाहता हो. उस अदूरात् - VIII. ii. 107 कारक की अपादान संज्ञा होती है)।
दूर से (बुलाने के विषय से) भिन्न विषय में अप्रगृत्यअदर्शनात् -V.iv.76
सञ्जक एच् के पूर्वार्ध भाग को प्लुत करने के प्रसंग में दर्शन विषय से अन्यत्र वर्तमान (अक्षि-शब्दान्त प्राति- आकारादेश होता है तथा उत्तरवाले भाग को इकार उकार पदिक से समासान्त अच् प्रत्यय होता है)।
.. आदेश होते हैं)।