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प्रकृत्या
...पो: - III. ii. 8
देखें- गापोः III. ii. 8 पोटा... -II. 1.64
देखें -पोटायुवतिस्तोक II.1.64 पोटायुवतिस्तोककतिपयगृष्टिधेनुवशावेहष्कयणीप्रवक्त- श्रोत्रियाध्यापकपूतः - II. 1. 64 (जातिवाची सबन्त शब्द) पोटा.यवति.स्तोक कतिपय. गृष्टि,धेनु,वशा,वेहद् वष्कयणी,प्रवक्तृ,श्रोत्रिय,अध्यापक, धूर्त-इन(समानाधिकरणसमर्थ सुबन्तों) के साथ(समास को प्राप्त होता है और वह तत्पुरुष समास होता है)। ...पोत... - VI. iv. 11
देखें- अप्तन्त VI. iv. 11 ...पोवेषु - VIII. iii. 53
देखें-पतिपुत्र VIII. iii. 53 ...पौ-VIII. iii. 37
देखें-क पौVIII. 1.37 पौर्णमासी - IV.ii. 20 (प्रथमासमर्थ) पौर्णमासी विशेषवाची प्रातिपदिक से
को (अधिकरण अभिधेय होने पर यथाविहित अण प्रत्यय
होता है)। .....पौर्णमासी... - V. iv. 110
देखें-नदीपौर्णमास्याo v. iv. 110 पौत्रप्रभृति - IV. 1. 162
पौत्र से लेकर (जो सन्तान उसकी गोत्रसंज्ञा होती है)। पौरोडाश:.'-IViii.70
देखें - पौरोडाशपुरोडाशात् IV. il. 70 पौरोडाशपुरोडाशात् - IV. iii. 70
(षष्ठी, सप्तमीसमर्थ) पौरोडाश, पुरोडाश प्रातिपदिकों से (भव और व्याख्यान अर्थों में ष्ठन् प्रत्यय होता है)। प्यायः -VI. 1. 128
ओप्यायी धातु को (निष्ठा के परे रहते विकल्प से पी आदेश होता है)। ..प्यायिभ्यः -III. 1.61
देखें-दीपजन III.1.61 ...प्यायी... - VIII. iv. 33 . देखें- भाभूपू0 VIII. iv. 33
...प्र...-I. iii. 22
देखें -समवप्रविश्यः I.11.22 प्र..-I. iii. 42
देखें-प्रोपाभ्याम् I. iii. 42 प्र.. - I. iii. 64
देखें-प्रोपाभ्याम् I. iil.64 ...प्र... -III. 1. 180r
देखें-विप्रसम्भ्यः III. ii. 180 ...प्र.. - V. 1. 29
देखें-सम्प्रोदश्च v.ii. 29 प्र..-v.iv. 129
देखें-प्रसम्भ्याम् V. iv. 129 प्र.. -VI. iv. 157
देखें - प्रस्थस्फO VI. iv. 157 प्र..-VIII.1.6
देखें-प्रसमुपोदः VIII.1.6 ...प्रकथन..-I.ili.32 दख देखें-गन्धनावक्षेपण I. Hi. 32 प्रकाशन... -I. iii. 23
देखें - प्रकाशनस्थेयाख्ययोः I. Iii. 23 प्रकाशनस्थयाख्ययोः - I. 1. 23
अपने अभिप्राय के प्रकाशन में तथा विवाद का निर्णय करने वाले को कहने अर्थ में (भी स्था धातु से आत्मनेपद होता है)। प्रकृतवचने - V. iv.21
(प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से) 'प्रभूत' अर्थ में (मयट प्रत्यय होता है)। प्रकृति -1. iv. 30
(जन्यर्थ के कर्ता का) जो प्रकृति = उपादान कारण है, वह (कारक अपादान-संज्ञक होता है)। प्रकृतौ - V.i. 12
(चतुर्थीसमर्थ विकृतिवाची प्रातिपदिक से) प्रकृति = उपादान कारण अभिधेय होने पर(हित' अर्थ में यथाविहित प्रत्यय होता है,यदि वह उपादान कारण अपनी उत्तरावस्था जर विकृति के लिए हो तो)। प्रकृत्या-VI.I. 111 .
(पाद के मध्य में वर्तमान अकार के परे रहते एङ को) प्रकृतिभाव हो जाता है।