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निपातः
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...निराकृञ्...
निपातः - VIII. 1. 30
नियः -I. ill. 36 (यत्, यदि, हन्त, कुवित्, नेत्, चेत्, चण, कच्चित्, यत्र- (सम्मान, उत्सजन, आचार्यकरण, ज्ञान, विगणन, व्यय इन) निपातों से युक्त (तिङन्त को अनुदात्त नहीं होता)। इन अर्थों में वर्तमान) णीज् धातु से (आत्मनेपद होता है)। निपानम् - III. iii. 74
निय - III. ii. 26 निपान (जलाधार) अभिधेय हो, तो आङ् पूर्वक हेञ् (अव तथा उद् पूर्वक) नी धातु से (कर्तृभिन्न कारक धातु से अप् प्रत्यय, सम्प्रसारण, वृद्धि भी निपातन से संज्ञा तथा भाव में घज प्रत्यय होता है)। करके आहाव शब्द सिद्ध करते हैं,कर्तृभिन्न कारक संज्ञा
नियुक्त - IV. iv. 69 विषय में)।
(सप्तमीसमर्थ प्रातिपदिक से) 'नियुक्त' अर्थ में (ढक ...निपुण... - II. 1. 30
प्रत्यय होता है)। देखें-पूर्वसदृशसमो० II. 1. 30
नियुक्तम् -IV. iv.66 ....निपुणानाम्-VII. iii. 30 देखें- शुचीश्वर VII. iii. 30
(प्रथमासमर्थ प्रातिपदिक से 'इसके लिये) नियमपूर्वक ... निपुणाभ्याम्-II. iii. 43
(दिया जाता है' विषय में ढक् प्रत्यय होता है)। देखें-साधुनिपुणाभ्याम् II. iii. 43
नियुक्ते - VI. ii. 79. ...निग्रहण.. - II. iii. 56
(अणन्त शब्द के उत्तरपद रहते) नियुक्त = धारण देखें-जासिनिग्रहण: II. 1. 56
करना,तद्वाची समास में (पूर्वपद को आधुदात्त होता है)। निप्रहण = चोट लगाना, नष्ट करना।
...नियोज्यौ - VII. II. 68 ..निभ्यः - VIII. iii. 72
देखें -प्रयोज्यनियोज्यौ VII. iii. 68 देखें-अनुविपर्यभिO VIII. iii. 72
निर्.. - III. iii. 28 ....निमन्त्रण... -III. iii. 161 देखें -विधिनिमन्त्रण III. iii. 161
देखें-निरभ्योः III. 1. 28 निमाने - V. 1.47
...निर् -VIII. iii. 88 । (प्रथमासमर्थ सङ्ख्यावाची प्रातिपदिकों से 'इस भाग देखें - सुविनिर्दुW: VIII. iii. 88 का यह) मूल्य अर्थ में (मयट प्रत्यय होता है)।
...निर्... - VIII. iv.5 निमितम् -III. iii. 87 .
देखें -प्रनिरन्तः VIII. iv. 5 'सब ओर से बराबर (निमित) अभिधेय (हो तो नि पूर्वक हन् धातु से अप्प्रत्यय,टि भाग का लोप तथा घ आदेश
निरः - VII. ii. 46 निपातन करके निघ शब्द सिद्ध करते है)।
निर् पूर्वक (कुषः अङ्ग से उत्तर वलादि आर्धधातुक को निमित्तम् -V.i.37
विकल्प से इट् आगम होता है)। (षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से) निमित्त = 'कारण' अर्थ में ।
निरभ्योः -III. iii. 28 (यथाविहित प्रत्यय होते हैं, यदि वह कारण संयोग वा उत्पात हो तो)।
निर्,अभि पूर्वक (क्रमशः पु एवं लू धातुओं से कर्तृभिन्न
कारक संज्ञा तथा भाव में घञ् प्रत्यय होता है)। निमूल... - III. iv. 34 देखें - निमूलसमूलयोः III. iv. 34
....निराकृत... - III. II. 136 निमूलसमूलयोः - III. iv. 34
देखें - अलंकृनिराकृञ् III. ii. 136 निमूल तथा समूल कर्म उपपद रहते (कष् धातु से णमुल्
निराकृञ् = मना करना, प्रतिवाद करना, अस्वीकार ' प्रत्यय होता है)।
करना।