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अधूत्तरपद
.. अधूत्तरपद... - II. 1. 29
देखें- अन्यारादिस्तें० 11. III. 29
3:-V. iii. 30
(दिशा, देश और काल अर्थों में वर्त्तमान सप्तम्यन्त, पञ्चम्यन्त तथा प्रथमान्त) अड्नु धातु अन्त वाले (दिशाषाची) प्रातिपदिकों से उत्पन्न (अस्ताति प्रत्यय का लुक होता है)। अच्छे - Viv. 8
( दिशावाचक स्त्रीलिङ्ग न हो तो ) अति उत्तरपद वाले प्रातिपदिक से ( स्वार्थ में विकल्प से ख प्रत्यय होता है)। 3:- VI. i. 164
अञ्जु धातु से उत्तर (वेदविषय में सर्वनामस्थानभिन्न विभक्ति उदात्त होती है ) ।
अछे
- VI. iv. 30
(पूजा अर्थ में) अशु अङ्ग की उपधा के नकार का लोप
-
नहीं होता है)।
अछेः
- VII. ii. 53
-
अनु धातु से उत्तर (पूजा अर्थ में क्त्वा प्रत्यय तथा निष्ठा
को इट् आगम होता है)।
अले: - V. Iv. 102
(द्वि तथा त्रि शब्दों से उत्तर) जो अञ्जलि शब्द, तदन्त (तत्पुरुष) से (समासान्त टच् प्रत्यय होता है ) ।
... अञ्जस् - VI. ii. 187
देखें स्फिगपूतo VI. II. 187
... अज्जू... - II. 1. 74
देखें स्म्पूि VII. 1. 74
33:- VII. ii. 71
अश्रू धातु से उत्तर (सिच् को इट् का आगम होता है)। अग्नी - IV. 1. 105
-
(तीर तथा रूप्य उत्तरपद वाले प्रातिपदिकों से यथासङ्ख्य करके शैषिक ) अञ् तथा यञ् प्रत्यय होते हैं । अञ्ठञ - IV. iii. 7
(ग्राम के अवयववाची तथा जनपद के अवयववाची दिशा पूर्वपदवाले अर्धान्त प्रातिपदिक से शैषिक) अब् तथा ठञ् प्रत्यय होते हैं ।
3fsure-I. ii. 1
(गाड् तथा कुटादिगणस्य धातुओं से परे) जित् तथा णित् भिन्न प्रत्यय (ङिद्वत् होते हैं) ।
अञ्यञिञम् - IV. iii. 126
(सङ्घ, अङ्क तथा लक्षण अभिधेय हो तो गोत्रप्रत्ययान्त) अञन्त, यजन्त तथा इञन्त षष्ठीसमर्थ प्रातिपदिकों से (इदम् अर्थ में अण प्रत्यय होता है)।
14
अव्यतौ
-
FV. i. 161
(मनु शब्द से जाति को कहना हो तो) अञ् तथा यत् प्रत्यय होते है, तथा मनु शब्द को पुक आगम भी हो जाता है)।
अद्... III. iv. 94
देखें- अडाटौ III. iv. 94
अट् - VI. iv. 71
(लुङ, लड् तथा लृह के परे रहते अनं को) अट् का
आगम होता है (और वह अट् उदात्त भी होता है)। अट् VII. 1. 99
(रुदादि पांच अङ्गों से उत्तर हलादि अपृक्त सार्वधातुक को) अट् आगम होता है, (गार्ग्य तथा गालव आचार्यों के मत में ) ।
अद
VIII. iv. 2
देखें - अकुप्वाइο] VIII. iv. 2 अट्कुप्वाड्नुम्व्यवाये - VIII. iv. 2
-
अडज्युची
-
(रेफ तथा षकार से उत्तर) अट, कवर्ग, पवर्ग, आङ् तथा नुम् का व्यवधान होने पर (भी नकार को णकार हो जाता है) ।
अटि - VIII. iii. 3
अट् परे रहते (रु से पूर्व आकार को नित्य अनुनासिक आदेश होता है) ।
अटि - VIII. iii. 9
(दीर्घ से उत्तर नकारान्त पद को ) अट् परे रहते (पादबद्ध मन्त्रों में रु होता है, यदि निमित्त और निमित्ती दोनों एक ही पाद में हों)।
अटि - VIII. iv. 61
(झय् प्रत्याहार से उत्तर शकार के स्थान में ) अट् परे रहते (विकल्प से छकार आदेश होता है)। अठच् - V. 1. 35
(सप्तमीसमर्थ कर्मन् प्रातिपदिक से 'चेष्टा करने वाला' अर्थ में) अठच् प्रत्यय होता है ।
अइच्... V.iii. 80 देखें- अडज्युची VIII. 80
अडज्युचौ - V. iii. 80
(उप शब्द आदि वाले बच् मनुष्यनामधेय प्रातिपदिक ति और अनुकम्पा गम्यमान होने पर) अडच् एवं वुच् (तथा धन्, इलच् और ठच्) प्रत्यय (विकल्प से) होते हैं, (प्राग्देशीय आचार्यों के मत में)।