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...तिलस्य
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...तिलस्य-VI. 1.70
तिसृभ्यः - VI. 1. 160 देखें - श्येनतिलस्य VI. iii. 70
तिस शब्द से उत्तर (जस् को अन्तोदात्त होता है)। तिल्तातिलौ-v.iv. 41
तिहो: - VII. ii. 104 (प्रशंसाविशिष्ट' अर्थ में वर्तमान वृक तथा ज्येष्ठ प्राति
तकारादि तथा हकारादि विभक्तियों के परे रहते (किम् पदिकों से यथासङ्ख्य करके) तिल तथा तातिल् प्रत्यय
को कु आदेश होता है)। (भी) होते हैं, वेदविषय में)। '...तिष्ठ.. - VII. iii. 78
... तीक्ष्ण.. -VI. 1. 161 देखें-पिबजिन VII. iii. 78
देखें- तन्नन Vii. 161 तिष्ठति -IV. iv. 36
तीय-v.ii.54 द्वितीयासमर्थ परिपन्थ प्रातिपदिक से बैठता है तथा (षष्ठीसमर्थ द्वि प्रातिपदिक से 'पूरण' अर्थ में) तीय 'मारता है' अर्थों में ठक् प्रत्यय होता है)।
प्रत्यय होता है। तिष्ठते: - VII. iv.5
तीयात्-v.iii. 48 'ष्ठा' अङ्गकी (उपधा को चङ्परक णि परे रहते इका- (भाग' अर्थ में वर्तमान पूरणार्थ) तीयप्रत्ययान्त प्रातिरादेश होता है)।
पदिकों से (स्वार्थ में अन् प्रत्यय होता है)। तिष्ठद्गुप्रतीनि II.1.16
तीर... - IV. 1. 105 तिष्ठद्गु इत्यादि समुदाय रूप शब्द (भी निपातन से . देखें - तीररूप्योत्तर IV. 1. 105 अव्ययीभावसजक होते हैं)।
...तीर... - VI. 1. 121 . तिष्य..-I. 1.73
देखें-कूलतीर० VI. ii. 121 देखें - तिष्यपुनर्वस्वोः I. ii. 73
तीररूप्योत्तरपदात् - IV.ii. 105 ...तिष्य.. - IV. ii. 34
तीर तथा रूप्य उत्तरपदवाले प्रातिपदिकों से देखें - अविष्ठाफल्गुन्यनु IV. 1. 34
(यथासङ्ख्य करके शैषिक अब तथा ज प्रत्यय होते है)। ...तिष्य.. - VI. iv. 149
तीर्थे -VI. iii. 86 देखें - सूर्यतिष्या. VI. iv. 149
तीर्थ शब्द उत्तरपद हो तो (य प्रत्यय परे रहते समान तिष्यपुनर्वस्वोः -I. 1.63
शब्द को स आदेश होता है)। तिष्य और पुनर्वसु शब्दों के (नक्षत्रविषयक द्वन्द्वसमास तु-I. ii. 37 में बहुवचन के स्थान में नित्य ही द्विवचन हो जाता है)। (सब्रह्मण्या माम वाले निगद में एकश्रुति नहीं होती, तिस... - VI. iv. 4
किन्तु उस निगद में जो स्वरित. उसको उदात्त) तो (हो देखें - तिसूचतस VI. iv.4
जाता है)। तिस... - VII. 1. 99
तु... -I. iii.4 देखें-तिस्चतस VII. 1. 99
देखें - तुस्माः I. il. 4 तिसूचतस - VI. iv. 4
तु-IV.1.163 . तिस,चतसृ अङ्ग को (नाम् परे रहते दीर्घ नहीं होता है)। (पौत्र से परवर्ती जो अपत्य, उसकी पिता इत्यादि के तिसूचतस - VII. ii. 99
जीवित रहते युवा संज्ञा) ही (होती है)। (त्रि तथा चतुर् अङ्गों को स्त्रीलिङ्ग में क्रमश) तिस, ...तु... - V. II. 138 चतस आदेश होते हैं,(विभक्ति परे रहते)।
देखें - बायुस्० V. 1. 138