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तिलयवाभ्याम्
...ति... -III. 1.5
तिरः -I. iv.70 देखें - गुप्तिकियः II. 1.5
(व्यवधान अर्थ में) तिर: शब्द (क्रिया के योग में गति तित् - VI. 1. 179
और निपातसंज्ञक होता है।) तकार इत्सञ्जक है जिसका, उसको (स्वरित होता है)। तिरस: - VI. iii. 93 तितिक्षायाम् -I. ii. 20
तिरस् को (तिरि आदेश होता है, व-प्रत्ययान्त अछु .. तितिक्षा = क्षमा करने अर्थ में वर्तमान (मृष् धातु से
धातु के उत्तरपद रहते, यदि अङ्गु का लोप न हुआ हो परे निष्ठा प्रत्यय कित नहीं होता है)।
तो)।
तिरस: -VIII. iii. 42 तितुत्रतथसिसुसरकसेषु - VII. ii.9
तिरस् के (विसर्जनीय को विकल्प करके सकारादेश (कृत्सञ्जक) ति, तु, त्र, त, थ, सि, सु, सर, क,स-इन ।
होता है; कवर्ग, पवर्ग परे रहते)। प्रत्ययों के परे रहते (भी इट् आगम नहीं होता)।
तिरि -VI. iii.93 तित्तिरि... - IV. iii. 102 .
(तिरस् को) तिरि आदेश होता है (व-प्रत्यययान्त अछु ।' देखें - तित्तिरिवरतन्तु० IV. iii. 102
धातु के उत्तरपद रहते, यदि अञ्च का लोप न हुआ हो तित्तिरिवरतन्तुखण्डिकोखात् - IV. iii. 102 तो)।
तित्तिरि,वरतन्तु,खण्डिका,उखा प्रातिपदिकों से (छन्दो- तिर्यचि-III. iv.60 विषयक प्रोक्त अर्थ में छण प्रत्यय होता है)।
तिर्यक् शब्द उपपद रहते (अपवर्ग गम्यमान होने पर .. तित्याज-VI.1.35
कृञ् धातु से क्त्वा और णमुल् प्रत्यय होते हैं)। (वेदविषय में)तित्याज शब्द का निपातन किया जाता है।
तिल्... - V. iv. 41 तिथुक् - v. ii. 52
देखें-तिल्तातिलौ V.iv. 41 (षष्ठीसमर्थ बहु, पूग, गण, सङ्घ-इनको 'पूरण' अर्थ तिल... -IV. iii. 146 . में विहित डट् प्रत्यय के परे रहते) तिथुक् आगम होता
देखें-तिलयवाभ्याम् IV.ii. 146
...तिल... -V.1.7 तियोः - III. iv. 107 (लिङ् - सम्बन्धी) तकार और थकार को (सुट् का
देखें - खलयवमाव० V.1.7 आगम होता है)।
तिल.. -V.ii.4 तिप्... - III. iv.78
देखें-तिलमाषो० v. ii. 4 देखें-तिप्तस्मि III. iv. 78
तिलमाषोमाभगाणुभ्यः - V.ii. 4 तिपि - VIII. I. 73
(षष्ठीसमर्थ धान्यविशेषवाची) तिल, माष, उमा, भङ्गा (अस् को छोड़कर जो संकारान्त पद,उसको) तिप परे और अणु प्रातिपदिकों से (उत्पत्तिस्थान' अभिधेय हो तो रहते (दकारादेश होता है)।
विकल्प करके यत् प्रत्यय होता है.यदि वह उत्पत्तिस्थान तिप्तरिझसिम्यस्थमिव्यस्मस्तातांझथासाथाम्ध्यमिड्वहि
खेत हो तो)। महिङ् -III. iv. 78
तिलयवाभ्याम् - IV. iii. 146 (लकार = लट्,लिट् आदि के स्थान में) तिप.तस,झि, (षष्ठीसमर्थ) तिल,यव प्रातिपदिकों से (संज्ञा गम्यमान सिप,थसाथ,मिप.वस.मस.त,आताम्,झ,थास, आथाम, न हो तो विकार और अवयव अर्थों में मयट् प्रत्यय होता ध्वम्,इड्, वहि,महिङ्-(ये १८ प्रत्यय होते हैं)।