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त... -VIII. ii.40
तछील... - III. ii. 134 देखें-तथो: VIII. 1. 40
देखे - तच्छीलतद्धर्म III. 1. 134 त:-IV.i. 39
तच्छीलतद्धर्मतत्साधुकारिषु - III. 1. 134 (वर्णवाची अदन्त अनुपसर्जन अनुदात्तान्त तकार उप- (प्राजभास III.ii. 177.इस सूत्र से विहित क्विपधावाले प्रातिपदिकों से विकल्प से स्त्रीलिङ्ग में डीप् प्रत्यय __ पर्यन्त जितने प्रत्यय कहे हैं,वे सब) तच्छील = फल की तथा) तकार को (नकारादेश हो जाता है)।
आकांक्षा बिना किये स्वभाव से ही उस क्रिया में प्रवृत्त
होने वाला, तद्धर्म = स्वभाव के बिना भी अपना धर्म ." त: - VII.i.41
समझकर उस क्रिया में प्रवृत्त होने वाला तथा तत्साधुकारी (वेद-विषय में आत्मनेपद में वर्तमान) तकार का (लोप
= उस क्रिया को कुशलता से करने वाला कर्ता अर्थों में : हो जाता है)।
जानने चाहिए। त:-VII. iii. 32
तझयोः - III. iv. 81 .. (हन् अङ्ग को) तकारादेश होता है, (चिण तथा ण्यत् लिट् के स्थान में जो) त और झ आदेश, उनको .. प्रत्ययों को छोड़कर जित, णित् प्रत्यय परे रहते)। (यथासङख्य करके एश् और इरेच आदेश होते है)। त: - VII. iii. 42
तत् -I.1.62 (अगति अर्थ में वर्तमान 'शदल शातने' अङ्गको) तका- जिस समुदाय के अचों में आदि अच् वृद्धिसंज्ञक हो) . रादेश होता है।
वह (समुदाय वृद्धसंज्ञक होता है)। त:-VII. iv.47
तत् -I. 1.53 (अजन्त उपसर्ग से उत्तर घुसंज्ञक दा अङ्ग को तकारादि _ वह उपर्युक्त युक्तवद्भाव (= पूरा-पूरा शासन विहित कित् प्रत्यय परे रहते) तकारादेश होता है। नहीं किया जा सकता, उसके लौकिक व्यवहार के अधीन तक्षः -III. 1.76
होने से)। तथू धातु से (तनूकरण = छीलने अर्थ में विकल्प से ...तत्... -III. 1. 21 श्नु प्रत्यय होता है, कर्तृवाची सार्वधातुक परे रहने पर)। देखें-दिवाविषा III. 1. 21 ...तक्षशिलादिभ्यः - IV. 1. 93
तत् - IV. 1.56 देखे - सिन्धुतक्षशिलादिश्य - IV. 1.3 प्रथमासमर्थ (प्रहरण समानाधिकरणवाले प्रातिपदिकों तक्ष्णः - V. iv. 95
से सप्तम्यर्थ में ण प्रत्यय होता है.यदि अस्यां' से क्रीडा
निर्दिष्ट हो)। (पाम तथा कौट शब्दों से उत्तर) तक्षन्-शब्दान्त (तत्पुरुष) से (भी समासान्त टच् प्रत्यय होता है)।
तत् -IV.ii. 58.
द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक से (अध्ययन करता है' अर्थ तङ् -I. iv.99
में यथाविहित अण् प्रत्यय होता है, इसी प्रकार द्वितीयादेखें - तडानौ I. iv.99
समर्थ प्रातिपदिक से 'जानता है' अर्थ में यथाविहित अण ...तङ् - VI. iii. 132
प्रत्यय होता है)। देखें - तुनुपम VI. ii. 132
तत् - IV.ii. 58 तडानौ- I. iv.99
(द्वितीयासमर्थ प्रातिपदिक से 'अध्ययन करता है' अर्थ तङ् और आन (आत्मनेपद संज्ञक होते हैं)। में यथाविहित अण प्रत्यय होता है. इसी प्रकार) द्वितीयातङ = त से लेकर महिङ तक प्रत्यय।
समर्थ प्रातिपदिक से (जानता है' अर्थ में यथाविहित अण आन = शानच, कानन्।
प्रत्यय होता है)।