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...णोः
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...णो:-VIII. iii. 28
- VII. iv. 1 देखें - गो: VIII. iii. 28
(चपरक) णि के परे रहते (अङ्ग की उपधा को हस्व णोपदेशस्य-VIII. iv. 14 .
होता है)। (उपसर्ग में स्थित निमित्त से उत्तर) णकार उपदेश में है। ण्य..-II. iv.58 जिसके, ऐसे धातु के (नकार को असमास में तथा अपि- देखें- ण्यक्षत्रियार्वत्रितः II. iv. 58 ग्रहण से समास में भी णकार आदेश होता है)।
..ण्य..- IV. 1.79 णौ-I. iii.67
देखें- वुच्छण्कठ० IV. i. 79 (अण्यन्तावस्था में जो कर्म, वही यदि) ण्यन्तावस्था में
ण्य:- IV. 1.85 (कर्ता बन रहा हो तो ऐसी ण्यन्त धातु से आत्मनेपद होता है,आध्यान = उत्कण्ठापूर्वक स्मरण अर्थ को छोड़कर)।
(दिति,अदिति, आदित्य तथा पति उत्तरपद वाले समर्थ
प्रातिपदिकों से प्राग्दीव्यतीय अथों में) ण्य प्रत्यय होता णौ-I. iv. 52 (गत्यर्थक, बुद्ध्यर्थक, भोजनार्थक तथा शब्दकर्मवाली और अकर्मक धातुओं का जो अण्यन्तावस्था में कर्ता.वह) ण्यः-IV. 1. 151 ण्यन्तावस्था में (कर्मसंज्ञक हो जाता है)।
(कुरु आदि प्रातिपदिकों से अपत्य अर्थ में) ण्य प्रत्यय णी-II. iv. 46
होता है। (आर्धधातुक) णिच् परे रहते (अबोधनार्थक इण् को गम् ण्यः - IV.i. 170 आदेश होता है)।
(क्षत्रियाभिधायी जनपदवाची कुरु तथा नकार आदि णौ-II.iv. 51
वाले प्रातिपदिकों से अपत्य अर्थ में) ण्य प्रत्यय होता है। (सनपरक चपरक) णिच परे रहते (भी इङ को गाङ ण्य:-IV.iv.44 आदेश विकल्प से होता है)।
द्वितीयासमर्थ परिषद् प्रातिपदिक से समवेत होता है' णौ-VI.I. 31
अर्थ में) ण्य प्रत्यय होता है। (सन् हो या चङ् परे हो जिस णिच् के, ऐसे) णि के परे ण्य: - IV. iv. 101 रहते (भी टुओश्वि धातु को विकल्प से सम्प्रसारण हो (सप्तमीसमर्थ परिषद् प्रातिपदिक से साधु अर्थ में) ण्य जाता है)।
प्रत्यय होता है। जौ-VI.1.47
ण्यक्षत्रियाजितः - II. iv. 58 (डुक्रीज इङ् तथा जि धातुओं के एच् के स्थान में) णिच् ण्यन्त गोत्रप्रत्ययान्त, क्षत्रियवाची गोत्रप्रत्ययान्त, ऋषिप्रत्यय के परे रहते (आकारादेश हो जाता है)।
वाची गोत्रप्रत्ययान्त तथा ब जिनका इत्सजक हो ऐसे णौ - VI.1.53
जो गोत्रप्रत्ययान्त शब्द- उनसे (युवापत्य में विहित अण (चि तथा स्फुर् धातुओं के एच् के स्थान में) णिच् प्रत्यय और इञ् प्रत्ययों का लुक् होता है)। के परे रहते (विकल्प से आत्व हो जाता है)।
ण्यत् -III. 1. 125 णौ - VI. iv. 90
(ऋवर्णान्त और हलन्त धातुओं से) ण्यत् प्रत्यय होता (दोष अङ्ग की उपधा को ऊकार आदेश होता है) णि है। परे रहते।
ण्यत् -V.i.82 णौ -VII. iii. 36
(षण्मास प्रातिपदिक से अवस्था अभिधेय हो तो 'हो (ऋ, ही, ब्ली,री,क्नूयी, मायी तथा आकारान्त अङ्ग चुका' अर्थ में) ण्यत् प्रत्यय (और यप् प्रत्यय होते हैं तथा को) णिच् परे रहते (पुक् आगम होता है)।
औत्सर्गिक ठञ् प्रत्यय भी)।