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हुण्-V.1.61
(त्रिंशत् तथा चत्वारिंशत् प्रातिपदिकों से संज्ञा-विषय में 'तदस्य परिमाणम्' अर्थ को कहने में) डण् प्रत्यय होता है,(बाह्मणग्रन्थ अभिधेय हों तो)। इतम - V. 1.93
(जाति को पूछने के विषय में किम् यत् तथा तत् प्रातिपदिकों से बहुतों में से एक का निर्धारण गम्यमान हो तो विकल्प से) डतमच प्रत्यय होता है। इतर -V.III. 92
(किम्, यत् तथा तत् प्रातिपदिकों से 'दो में से एक का पृथक्करण' अर्थ में) डतरच प्रत्यय होता है। इतरादिभ्यः -VII. I. 25
डतर आदि में है जिसके, ऐसे (सर्वादिगणपठित पांच) शब्दों से उत्तर (सु तथा अम् को अह आदेश होता है)। उति-I.1.24
डतिप्रत्ययान्त (संख्यावाची) शब्द (की भी षट् संज्ञा होती है)। ...उति-1.1.25
देखें-बहुगणवतुडति 1.1.25 इति-v.1.41
(सङ्ख्या के परिमाण अर्थ में वर्तमान प्रथमासमर्थ किम् प्रातिपदिक से षष्ठ्यर्थ में) डति प्रत्यय (तथा वतुप प्रत्यय होते हैं तथा उस वतुप के वकार के स्थान में धकार आदेश हो जाता है)। डवः -1.11.5
देखें-जिटायः 1. 1.5 डा.. -II. iv.85 देखें-परीरसII.IN.85 ...डा... -VII.1.39
देखें - सुलु VII. 1. 39 डाच - V.IN.57
(अव्यक्त शब्द के अनुकरण से जिसमें अर्धभाग दो अच् वाला हो; उससे क.भू तथा अस के योग में) डाच प्रत्यय होता है, (यदि इति शब्द परे न हो तो)।
...डाय-1.11.60
देखें - ऊर्यादिविडायः I. 1.60 ...डाव्यः -III. 1. 13
देखें-लोहतादिहाव्य III. 1. 13 छाप-IV.I. 13
(दोनों से अर्थात् ऊपर कहे गये मनन्त प्रातिपदिकों से तथा बहुव्रीहि समास में जो अन्नन्त प्रातिपदिक- उनसे स्त्रीलिङ्ग में विकल्प से) डाप् प्रत्यय होता है। डारीरस:-II.iv.85 (लुट् लकार के प्रथम पुरुष के स्थान में क्रमशः) डा,रौ और रस् आदेश होते हैं। डिति -VI. iv. 142
(भसज्जक विंशति अङ्ग के ति का) डित् प्रत्यय परे रहते (लोप होता है)।
-III. II. 180 (संज्ञा गम्यमान न हो तो वि,प्र तथा सम्पूर्वक भू धातु से) डु प्रत्यय होता है, (वर्तमानकाल में)। दुपच् - V. III. 89
(छोटा' अर्थ गम्यमान हो तो कुतू प्रातिपदिक से) डुपच् प्रत्यय होता है।
कुतू = तेल डालने के लिये चमड़े की बनी कुप्प। इमतुप-V...86 “(कुमुद, नड और वेतस प्रातिपदिकों से चातुरर्थिक) इमतुप् प्रत्यय होता है। कुमुद = सफेद कुमुदिनी, लाल कमल। नड = नरकुल। वेतस = नरकुल,बेंत। झ्याइयो - IV. 1.8 (तृतीयासमर्थ वामदेव प्रातिपदिक से देखा गया साम' अर्थ में) ड्यत् और ड्य प्रत्यय होते हैं। स्याइयो - IV.IN.113
(सप्तमीसमर्थ स्रोतस् प्रातिपदिक से वेद-विषय में भवार्थ में विकल्प से) ड्यत, ड्य दोनों प्रत्यय होते हैं।