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ट् - प्रत्याहारसूत्र V
आचार्य पाणिनि द्वारा अपने पश्चम प्रत्याहारसूत्र में इत्स- क्षार्थ पठित वर्ण। ट.. -I.i. 45
देखें-टकिती I.1.45 ट-प्रत्याहारसूत्र x
आचार्य पाणिनि द्वारा अपने ग्यारहवें प्रत्याहार सत्र में पठित सप्तम वर्ण।
पाणिनि द्वारा अष्टाध्यायी के आदि में पठित वर्णमाला का छत्तीसवां वर्ण। ट.. - VI. iv. 145
देखें-टखो: VI. iv. 145 ८-III. I. 16
(चर धातु से अधिकरण सुबन्त उपपद रहते) ट प्रत्यय होता है। टक्-III. ii. 8 (गा और पा धातु से कर्म उपपद रहते) टक् प्रत्यय होता
....टा... -IV.1.2
देखें - स्वौजसमौट V.1.2 टा... - VII. I. 12
देखें - टाङसिङसाम् VII. I. 12. टाङसिङसाम् -VII.i. 12
(अदन्त अङ्ग से उत्तर) टा,ङसि तथा डस् के स्थान में (क्रमशः इन्, आत् व स्य आदेश होते हैं)। टाप-IV.i.4
(अजादिगण-पठित तथा अदन्त प्रातिपदिकों से स्त्रीलिङ्ग में) टाप् प्रत्यय होता है। टाप् - IV.i.9
(पादन्त प्रातिपदिक से स्त्रीलिङ्ग में ऋचा वाच्य हो तो) टाप् प्रत्यय होता है। टि-1.1.63
(अचों के मध्य में जो अन्त्य अच,वह अन्त्य अच् आदि है जिस समुदाय का, उस समुदाय की) टिसंज्ञा होती है। टिठन् - IV. iv. 67
(प्रथमासमर्थ श्राणा तथा मांसौंदन प्रातिपदिकों से 'इसको नियतरूप से दिया जाता है' - अर्थ में) टिठन् प्रत्यय होता है।
श्राणा = कांजी,यवागू। टिठन् -V.i. 25
(कंस प्रातिपदिक से तदर्हति'- पर्यन्त कथित अर्थों में) टिठन् प्रत्यय होता है। टित्.. - IV.i. 15
देखें - टिड्डाणज्यसo IV.I. 15 टिट्टाणब्यसदनमात्रतयप्ठक्ठकज्यवरपःIV.i. 15 टित, ढ,अण, अब, द्वयसच.दनच, मात्रच, तयप, ठक्, ठज,कञ् तथा क्वरप्-प्रत्ययान्त (अनुपसर्जन)प्रातिपदिकों से (स्त्रीलिङ्ग में डीप् प्रत्यय होता है)। टितः -III. iv.79
टित् अर्थात् लट्,लिट्, लुट्,लृट, लेट, लोट् लकारों के (जो त,आतामझ आदि आत्मनेपद आदेश,उनके टि भाग को एकार आदेश हो जाता है)।
ट -III. 1.52 (जाया और पति कर्म उपपद रहते लक्षणवान् कर्ता अभिधेय होने पर 'हन्' धातु से) टक प्रत्यय होता है। टकिती-I.1.45
(षष्ठीनिर्दिष्ट) टिदागम और किदागम (क्रमशः आधवयव और अन्तावयव होते हैं)। टखो: - VI. iv. 145
(अहन् अङ्ग के टि भाग का) ट तथा ख तद्धित प्रत्यय परे रहते (ही लोप होता है)। टच् - V. iv. 91
(राजन, अहन् तथा सखि-शब्दान्त प्रातिपदिकों से समासान्त) टच प्रत्यय होता है; (तत्पुरुष समास में)। ...टा... - II. 1.34
देखें - द्वितीयाटीस्सु II. v. 34
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